नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि अंगदान के लिए जीवनसाथी से इजाजत लेना जरूरी नहीं है. जस्टिस यशवंत वर्मा ने कहा कि अस्पताल का अंगदान के लिए डोनर पर दबाव बनाना अंगदान से जुड़े कानून के खिलाफ होने के साथ-साथ डोनर के अपने शरीर पर नियंत्रण से जुड़े मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन है.
दरअसल एक महिला अपने बीमार पिता को अपना किडनी डोनेट करना चाहती है. डॉक्टरों ने महिला के पिता को किडनी ट्रांसप्लांट करने की सलाह दी थी. लेकिन संबंधित अस्पताल किडनी ट्रांसप्लांट करने के महिला के आवेदन पर प्रक्रिया शुरू करने के लिए उसके पति से अनापत्ति लाने पर जोर दे रहा है. सुनवाई के दौरान महिला ने अपने पति के साथ रिश्तों में तनाव की बात बताई. महिला ने कहा कि उसे अपने पिता को किडनी डोनेट करने की अनुमति दी जाए. महिला ने कहा कि इसके लिए पति की मंजूरी लेने का दबाव न डाला जाए.
महिला ने कहा कि अस्पताल प्रशासन को निर्देश दिया जाए कि उसके पिता की सर्जरी की तय तारीख पर जल्दी करने का अस्पताल को दिशा-निर्देश जारी किए जाएं. कोर्ट ने अस्पताल प्रशासन को निर्देश दिया कि वह संबंधित नियमों को ध्यान में रखते हुए महिला के आवेदन पर प्रक्रिया शुरू करे. महज पति से मंजूरी न मिलने पर आवेदन ठुकराया नहीं जाए. कोर्ट ने कहा कि ट्रांसप्लांट ऑफ ह्यूमन ऑर्गंस एंड टिशुज रुल्स के संबंधित नियमों पर गौर करते हुए कहा कि कानून जीवनसाथी से मंजूरी लेने पर जोर नहीं देता है.
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