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नाबालिग बच्चों के अपहरण के मामले समझौते के आधार पर खत्म नहीं हो सकते, दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश - बच्चों के अपहरण के मामलों का नहीं हो सकता समझौता

child kidnapping case: नाबालिग बच्चों के अपहरण और तस्करी के मामलों को समझौते के आधार पर खत्म करने पर दिल्ली हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की है. गुरुवार को अहम फैसला देते हुए कोर्ट ने कहा कि ऐसे समझौते न तो नैतिक रूप से स्वीकार्य हैं और न ही कानूनी रूप से.

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Dec 7, 2023, 8:05 PM IST

नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि नाबालिग बच्चों के अपहरण और तस्करी के मामले समझौते के जरिए नहीं सुलझाए जा सकते हैं. जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा की बेंच ने गुरुवार को कहा कि समझौते के आधार पर इन मामलों में दर्ज एफआईआर को निरस्त नहीं किया जा सकता है.

कोर्ट ने कहा कि बच्चों के अपहरण और तस्करी एक गंभीर अपराध है. इसका समाज पर बुरा प्रभाव पड़ता है. जिन बच्चों का अपहरण होता है उनके भविष्य और विकास पर असर होता है. नाबालिग बच्ची के माता-पिता की ओर से किए गए समझौते पर गौर करते हुए कोर्ट ने कहा कि ऐसी परंपरा को माफ नहीं किया जा सकता, क्योंकि बच्ची कोई वस्तु नहीं है. ऐसा न्याय के सिद्धांत के खिलाफ जाता है.

यह भी पढ़ेंः 1984 सिख विरोधी दंगों के जनकपुरी मामले में सज्जन कुमार के खिलाफ दो गवाहों ने दर्ज कराए बयान

कोर्ट ने कहा कि ऐसे समझौते न तो नैतिक रूप से स्वीकार्य हैं और न ही कानूनी रूप से. कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसे समझौते स्वीकार किए गए तो इसका बच्चों के पुनर्वास पर असर तो पड़ेगा ही ये बच्चों के अधिकारों और उनकी गरिमा के खिलाफ होगा. इससे ऐसी परिपाटी को बल मिलेगा जो कानून और न्याय के अनुरूप नहीं है.

दरअसल, एक तीन वर्षीया नाबालिग बच्ची के अपहरण के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते के आधार पर एफआईआर को निरस्त करने की मांग की गई थी. कोर्ट ने कहा कि सरकार और कोर्ट को अपने फैसलों के जरिए ऐसे मामलों में एक मजबूत संदेश देना चाहिए ताकि बच्चों के लिए एक सुरक्षित वातावरण बन सके.

यह भी पढ़ेंः ISIS के लिए फंड जुटाने के आरोपी को तिहाड़ जेल से इंजीनियरिंग की परीक्षा देने की मिली अनुमति

नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि नाबालिग बच्चों के अपहरण और तस्करी के मामले समझौते के जरिए नहीं सुलझाए जा सकते हैं. जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा की बेंच ने गुरुवार को कहा कि समझौते के आधार पर इन मामलों में दर्ज एफआईआर को निरस्त नहीं किया जा सकता है.

कोर्ट ने कहा कि बच्चों के अपहरण और तस्करी एक गंभीर अपराध है. इसका समाज पर बुरा प्रभाव पड़ता है. जिन बच्चों का अपहरण होता है उनके भविष्य और विकास पर असर होता है. नाबालिग बच्ची के माता-पिता की ओर से किए गए समझौते पर गौर करते हुए कोर्ट ने कहा कि ऐसी परंपरा को माफ नहीं किया जा सकता, क्योंकि बच्ची कोई वस्तु नहीं है. ऐसा न्याय के सिद्धांत के खिलाफ जाता है.

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कोर्ट ने कहा कि ऐसे समझौते न तो नैतिक रूप से स्वीकार्य हैं और न ही कानूनी रूप से. कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसे समझौते स्वीकार किए गए तो इसका बच्चों के पुनर्वास पर असर तो पड़ेगा ही ये बच्चों के अधिकारों और उनकी गरिमा के खिलाफ होगा. इससे ऐसी परिपाटी को बल मिलेगा जो कानून और न्याय के अनुरूप नहीं है.

दरअसल, एक तीन वर्षीया नाबालिग बच्ची के अपहरण के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते के आधार पर एफआईआर को निरस्त करने की मांग की गई थी. कोर्ट ने कहा कि सरकार और कोर्ट को अपने फैसलों के जरिए ऐसे मामलों में एक मजबूत संदेश देना चाहिए ताकि बच्चों के लिए एक सुरक्षित वातावरण बन सके.

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