नई दिल्ली: दिल्ली संवाद एवं विकास आयोग (डीडीसीडी) के उपाध्यक्ष पद से हटाए जाने को लेकर एलजी विनय कुमार सक्सेना के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में दायर जैस्मीन शाह की याचिका पर सुनवाई टाल दी है. अब इस मामले में सुनवाई के लिए 24 मई की तारीख निर्धारित की गई है.
एलजी विनय कुमार सक्सेना और योजना निदेशक ने बुधवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया कि डीडीसीडी के उपाध्यक्ष पद से हटाने के खिलाफ जैस्मीन शाह की याचिका समय से पहले है. इस पर अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन ने न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह से कहा कि कोर्ट को इस मामले पर फैसला करने से पहले एलजी की तरफ से भारत के राष्ट्रपति को उनके निष्कासन के मुद्दे पर किए गए फैसले का इंतजार करना चाहिए.
एलजी के उस फैसले के खिलाफ शाह की याचिका पर सुनवाई के दौरान ये दलीलें दी गईं. जिसमें मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को उन्हें पद से हटाने और उपाध्यक्ष के रूप में कार्यों के निर्वहन से प्रतिबंधित करने के लिए कहा गया था. पिछले साल 17 नवंबर को निदेशक (योजना) विजेंद्र सिंह रावत के माध्यम से दिए गए एक आदेश में उपराज्यपाल ने केजरीवाल से राजनीतिक गतिविधियों के लिए सार्वजनिक कार्यालय का कथित रूप से दुरुपयोग करने के आरोप में शाह को उनके पद से हटाने का अनुरोध किया था. उपराज्यपाल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय जैन ने दलील दी कि सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने उस तरीके से संबंधित मुद्दे पर निर्णय सुरक्षित रखा है, जिसमें एलजी की तरफ से सेवाओं के संबंध में मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह मांगी जाती है.
उन्होंने यह भी दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के परिणाम का इंतजार किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे शाह की याचिका पर असर पड़ेगा. दूसरी तरफ शाह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दयान कृष्णन ने दलील दी कि मामला संवैधानिक पीठ द्वारा विचार किए गए सेवाओं के अर्थ के अंतर्गत नहीं आता है. इस प्रकार संवैधानिक पीठ के फैसले का इंतजार करने की कोर्ट को कोई आवश्यकता नहीं है. इस पर संजय जैन ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के नियमों का हवाला देते हुए कहा कि कोर्ट को इस मुद्दे पर पूर्वाग्रह नहीं करना चाहिए और भारत के राष्ट्रपति के आदेश का इंतजार करना चाहिए. दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि चूंकि इस मामले में संदर्भ पहले ही दिया जा चुका है. इसलिए कोर्ट को राष्ट्रपति के फैसले का इंतजार करना चाहिए.
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उल्लेखनीय है कि सितंबर 2022 में भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा ने एक शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि शाह मीडिया के सामने आम आदमी पार्टी के आधिकारिक प्रवक्ता के रूप में काम कर रहे हैं. साथ ही इसे सार्वजनिक पद का दुरुपयोग बताया था. इसके बाद जैस्मिन शाह को योजना विभाग के निदेशक की तरफ से कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था. शाह को केजरीवाल सरकार की तरफ से राजनीतिक थिंक टैंक के रूप में वर्ष 2020 में नियुक्त किया गया था.
कारण बताओ नोटिस पर शाह ने उपमुख्यमंत्री (मंत्री योजना) के माध्यम से मुख्यमंत्री को अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने का विकल्प चुना था. योजना विभाग के मुताबिक, एलजी ने पहले मुख्यमंत्री कार्यालय से जवाब की एक प्रति मांगी थी, लेकिन वह उपलब्ध नहीं कराई गई. अपनी राजनीतिक गतिविधियों का बचाव करते हुए शाह ने अपनी याचिका में तर्क दिया है कि 'राजनीतिक तटस्थता' की अपेक्षा केवल 'सरकारी कर्मचारियों' से जुड़ी है, जो भारत द्वारा अपनाई गई लोकतंत्र की संसदीय प्रणाली में 'स्थायी कार्यकारी' का गठन करते हैं. उन्होंने यह भी कहा है कि उन्होंने कभी भी किसी भी टेलीविजन बहस या मीडिया से बातचीत के लिए सार्वजनिक संसाधान का इस्तेमाल ननहीं किया है जैसा कि शिकायत में आरोप लगाया गया है. साथ ही उनको पद से हटाने के विवादित आदेश में रबर की मुहर लगी है.
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