नई दिल्ली: शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है. पहले दिन माता शैलपुत्री के पूजन के बाद दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी के पूजन-अर्चन का विधान है. ब्रह्म का अर्थ होता है 'तपस्या' और अर्थ है 'आचरण' करने वाली. ज्योतिषाचार्य शिवकुमार शर्मा ने बताया कि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से व्यक्ति को अहंकार, स्वार्थ, ईर्ष्या आदि प्रवृत्तियों से मुक्ति मिलती है विवेक और धैर्य में वृद्धि होती है. इतना ही नहीं, माता की आराधना से ज्ञान, संयम, तप और त्याग की भावना की भी प्राप्ति होती है.
पूजन विधि: कुछ लोग नवरात्रि में घर में कलश स्थापना कर मां भगवती की पूजा करते हैं. ऐसे में उन्हें कई विधि विधान का पालन करना होता है. पूजन करने से पहले साफ वस्त्र पहनें और मां ब्रह्मचारिणी का ध्यान करें. इसके बाद उन्हें पुष्प अर्पित कर मिश्री का भोग लगाएं. फिर धूप दीप जलाकर दुर्गा सप्तशती का पाठ करें. अगर ऐसा नहीं कर सकते तो दुर्गा चालीसा का पाठ अवश्य करें. पूजा के समय 'ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः' मंत्र की एक माला जाप करें. इससे माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है. इसके बाद माता ब्रह्मचारिणी की आरती करें जो इस प्रकार है-
मां ब्रह्मचारिणी की आरती
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।
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