नई दिल्ली/गाजियाबाद: शारदीय नवरात्रि की शुरुआत के साथ घरों से लेकर पंडालों तक मां भगवती का पूजन-अर्चन अर्चन शुरू हो चुका है. नवरात्रि के चौथे दिन, मां कूष्मांडा के पूजन का विधान है. कहते हैं कि मां कूष्मांडा ब्रह्मांड को संचालित करती हैं. आइए जानते हैं माता की पूजा कैसे करें और क्या है उसका महत्व. ज्योतिषाचार्य शिवकुमार शर्मा ने बताया कि मां कुष्मांडा की पूजा अर्चना करने से शारीरिक और मानसिक विकारों से मुक्ति मिलती है और भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. साथ ही जीवन में आ रही बाधाएं दूर होने के साथ सौभाग्य में वृद्धि होती है.
पूजन विधि: सबसे पहले मंदिर की सफाई करें. यदि कलश स्थापित किया है तो माता कूष्मांडा का ध्यान कर उनका आह्वान करें. इसके बाद माता को लाल पुष्प और कुमकुम चढ़ाकर नैवेद्य, हलवा और दही का भोग लगाएं. फिर घी का दीपक जलाकर दुर्गा सप्तशती का पाठ करें. यदि यह करना संभव न हो तो दुर्गा चालिसा का पाठ कर माता की आरती करें. इसके साथ माता कुष्मांडा के मंत्र का जाप भी कर सकते हैं. साथ ही दीपक को पूरे घर में दिखाएं. कहा जाता है कि माता के सामने जलाए दीपक की रोशनी घर के जिस कोने में जाती है, वहां से नकारात्मकता समाप्त हो जाती है. माता कूष्मांडा के मंत्र का जाप करने से वह बहुत जल्द प्रसन्न होती हैं.
मां कुष्मांडा मंत्र
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।
मां कुष्मांडा की आरती
कुष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी मां भोली भाली॥
कुष्मांडा जय जग सुखदानी।
लाखों नाम निराले तेरे।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
कुष्मांडा जय जग सुखदानी।
सबकी सुनती हो जगदम्बे।
सुख पहुंचती हो मां अम्बे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
कुष्मांडा जय जग सुखदानी।
मां के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो मां संकट मेरा॥
कुष्मांडा जय जग सुखदानी।
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
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