नई दिल्ली : दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने भारत सरकार के गृह सचिव को पत्र लिखकर खराब जांच और मुक़दमे से संबंधित उन मुद्दों की जांच करने के लिए उच्च स्तरीय समिति की मांग की है. मालीवाल के मुताबिक जिस वजह से छावला में 19 साल की लड़की के सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में आरोपियों बरी हो गए. कोर्ट में सुनवाई के दौरान कुछ चूकों के साथ-साथ दिल्ली पुलिस द्वारा की गई अनुचित जांच पर भी प्रकाश डाला है.
स्वाति मालीवाल ने पत्र में कहा है कि कोर्ट में आरोपी व्यक्तियों की टीआई परेड पुलिस द्वारा नहीं की गई थी, आरोपी व्यक्तियों की कार को जब्त करने से लेकर प्रयोगशाला भेजे जाने तक की हिरासत अस्पष्ट थी और मामले में फोरेंसिक नमूने पुलिस स्टेशन के मालखाने में रखे रहे और 13 दिन बाद इन्हें जांच के लिए CFSL भेजा गया था. कोर्ट ने कहा कि चूंकि नमूने 13 दिनों तक पुलिस मालखाने में रहे, इसलिए उनके साथ छेड़छाड़ की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने यह भी पाया कि अभियोजन पुलिस अधिकारियों और दस भौतिक गवाहों की जांच करने में विफल रहा.
पत्र में उन्होंने कहा है कि जब फोरेंसिक साक्ष्य में आरोपी व्यक्तियों को दोषी ठहराया, तब भी विभिन्न प्रक्रियाओं का पालन करने के तरीकों से एक संदेह का एक तत्व पैदा हुआ, जिससे अंततः आरोपी व्यक्तियों को लाभ हुआ और उन्हें बरी कर दिया गया था. उन्होंने आगे कहा है कि इस मामले का दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है. उन्होंने कहा है कि हाल के एक मामले में दिल्ली पुलिस ने पीड़िता के विसरा नमूने जमा करने में देरी की है जो दो महीने पहले एकत्र किए गए थे. प्रीत विहार के एक स्पा में रहस्यमयी परिस्थितियों में एक महिला की मौत हो गई थी. लेकिन अभी तक मामले में प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई. दुर्भाग्य से, पुलिस द्वारा फोरेंसिक नमूनों को फोरेंसिक प्रयोगशाला में भेजने में लंबी देरी नियमित है न कि अपवाद.
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दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष ने सिफारिश की है कि दिल्ली पुलिस, फोरेंसिक प्रयोगशाला के साथ-साथ ट्रायल कोर्ट के कामकाज को मजबूत करने के लिए व्यापक सुधारों का सुझाव देने के लिए गृह सचिव, पुलिस आयुक्त, दिल्ली महिला आयोग अध्यक्ष और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों सहित एक उच्च स्तरीय समिति का तत्काल गठन किया जाए. इसके अलावा, दिल्ली पुलिस को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी किया जाना चाहिए कि फोरेंसिक नमूने संग्रह के 48 घंटे के भीतर प्रयोगशाला में भेजे जाएं और यदि समय सीमा पार हो जाती है, तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए.
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