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गुलजार देहलवी की जैसी शख्सियत सदियों में भी पैदा नहीं हो सकती: अलीम - Gulzar Dehalvi death update

ईटीवी भारत से बात करते हुए शेख अलीम उद्दीन ने गुलजार देहलवी की मौत पर कहा कि उनकी जैसी शख्सियत सदियों में भी पैदा नहीं हो सकती है.

Sheikh Alim Uddin mourns on the death of Gulzar Dehalvi
Sheikh Alim Uddin mourns on the death of Gulzar Dehalvi
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Published : Jun 15, 2020, 10:36 PM IST

नई दिल्ली: उर्दू के नामवर शायर पंडित आनंद मोहन जुत्शी के निधन पर उनके साथ काम करने वाले शेख अलीम उद्दीन ने कहा कि हम गुलजार देहलवी के साथ 1972 से हिन्दू-मुस्लिम भाई चारे के लिए काम कर रहे थे. मेरा ताल्लुक उनसे शायरी से नहीं था क्योंकि वो शायर जमीयत के थे और हमारा उलमा के साथ संबंध है. इसलिए हम उनके नजदीक थे.

गुलजार देहलवी के निधन पर जताया शोक


ईटीवी भारत से बात करते हुए शेख अलीम उद्दीन ने कहा कि गुलजार देहलवी जमीयत के जलसों में शामिल होते थे. मौलाना अहमद सईद और मौलाना मोहम्मद मियां पर जब सेमिनार हुआ तो मौलाना महमूद मदनी ने मुझे कहा कि किसी भी तरह गुलजार देहलवी को सेमिनार में लाओ और उनका भाषण कराओ. इससे पता चलता है कि गुलजार देहलवी कितनी बड़ी शख्सियत थे कि देश की बड़ी बड़ी जमातें उन्हें अपने यहां बुलाती थी.


शेख अलीम उद्दीन ने कहा कि गुलजार देहलवी का चले जाना बड़ी दुख की बात है और दुख इस बात का भी है कि वो भारत में हिन्दू-मुस्लिम इत्तेहाद के सबसे बड़े अमीन थे. जिन्होंने 1947 से लेकर अपने निधन से दो महीने पहले तक हर जगह उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम इत्तेहाद की बात की. वो अपने घर में महफिलें रखते थे जिनका मकसद हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई इत्तेहाद का पैगाम होता था. उनके जैसी शख्सियत सदियों में भी पैदा नहीं हो सकती.

नई दिल्ली: उर्दू के नामवर शायर पंडित आनंद मोहन जुत्शी के निधन पर उनके साथ काम करने वाले शेख अलीम उद्दीन ने कहा कि हम गुलजार देहलवी के साथ 1972 से हिन्दू-मुस्लिम भाई चारे के लिए काम कर रहे थे. मेरा ताल्लुक उनसे शायरी से नहीं था क्योंकि वो शायर जमीयत के थे और हमारा उलमा के साथ संबंध है. इसलिए हम उनके नजदीक थे.

गुलजार देहलवी के निधन पर जताया शोक


ईटीवी भारत से बात करते हुए शेख अलीम उद्दीन ने कहा कि गुलजार देहलवी जमीयत के जलसों में शामिल होते थे. मौलाना अहमद सईद और मौलाना मोहम्मद मियां पर जब सेमिनार हुआ तो मौलाना महमूद मदनी ने मुझे कहा कि किसी भी तरह गुलजार देहलवी को सेमिनार में लाओ और उनका भाषण कराओ. इससे पता चलता है कि गुलजार देहलवी कितनी बड़ी शख्सियत थे कि देश की बड़ी बड़ी जमातें उन्हें अपने यहां बुलाती थी.


शेख अलीम उद्दीन ने कहा कि गुलजार देहलवी का चले जाना बड़ी दुख की बात है और दुख इस बात का भी है कि वो भारत में हिन्दू-मुस्लिम इत्तेहाद के सबसे बड़े अमीन थे. जिन्होंने 1947 से लेकर अपने निधन से दो महीने पहले तक हर जगह उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम इत्तेहाद की बात की. वो अपने घर में महफिलें रखते थे जिनका मकसद हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई इत्तेहाद का पैगाम होता था. उनके जैसी शख्सियत सदियों में भी पैदा नहीं हो सकती.

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