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Delhi High Court ने ऑटो और टैक्सी चालकों के लिए अनिवार्य वर्दी को चुनौती देने वाली याचिका की खारिज - mandatory uniform for auto and taxi drivers

ऑटो व टैक्सी चालकों के लिए अनिवार्य वर्दी को चुनौती देने वाली याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि यह जनहित याचिका का दुरुपयोग है. इससे पहले याचिकाकर्ता ने कानून अस्पष्ट होने के बावजूद वर्दी न पहनने पर भारी चालान काटे जाने का आरोप लगाया था.

Delhi High Court
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Published : Jul 4, 2023, 3:13 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को शहर में ऑटो रिक्शा और टैक्सी चालकों के लिए अनिवार्य वर्दी को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी. मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने याचिका खारिज कर दी और मौखिक रूप से कहा कि यह एक जनहित याचिका (पीआईएल) का घोर दुरुपयोग है. उच्च न्यायालय का आदेश चालक संघ चालक शक्ति की याचिका पर आया, जिसने ऑटो रिक्शा और टैक्सी चालकों के लिए अनिवार्य वर्दी को चुनौती दी है और आरोप लगाया है कि इस तरह लेबलिंग संविधान का उल्लंघन है.

याचिकाकर्ता के वकील ने पहले कहा था कि वर्दी निर्धारित करने से ड्राइवरों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कम हो जाती है और यह उनकी स्थिति के प्रतीक के रूप में भी काम करता है. वहीं दिल्ली सरकार के वकील ने कहा था कि वर्दी के संबंध में कुछ अनुशासन का पालन करना होगा. इसपर हाई कोर्ट ने सरकारी वकील से पहले यह स्पष्ट करने को कहा था कि राष्ट्रीय राजधानी में ऑटो चालकों के लिए खाकी या ग्रे रंग की वर्दी निर्धारित है या नहीं.

अपनी याचिका में याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि राष्ट्रीय राजधानी में वर्दी न पहनने पर ड्राइवरों पर 20,000 रुपये तक के भारी चालान काटे जा रहे हैं, जबकि इस विषय पर कानून अस्पष्ट है. इसने प्रस्तुत किया है कि ड्यूटी पर ऑटो चालकों द्वारा पहनी जाने वाली वर्दी के रंग के बारे में पूरी अस्पष्टता है क्योंकि दिल्ली मोटर वाहन नियम, 1993 के नियम सात में खाकी रंग निर्धारित है, लेकिन राज्य अधिकारियों द्वारा निर्धारित परमिट शर्तों में ग्रे रंग अनिवार्य है.

यह भी पढ़ें-दो हजार का नोट बंद करने के मामले में RBI के अधिकारक्षेत्र को चुनौती देने वाली याचिका को हाई कोर्ट ने किया खारिज

याचिका में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि खाकी और ग्रे दोनों के दर्जनों प्रमुख शेड हैं. चूंकि कोई विशेष शेड निर्धारित नहीं किया गया था, इसलिए प्रवर्तन अधिकारियों के पास इस बारे में बहुत बड़ा विवेक था कि वे किसके खिलाफ मुकदमा चलाना चाहते हैं. इसमें यह भी कहा गया है कि वर्दी को पैंट-शर्ट, सफारी सूट या कुर्ता-पायजामा के रूप में परिभाषित नहीं किया गया है. यहां तक कि कपड़े, ट्रिम्स और सहायक उपकरण के विनिर्देश भी अनुपस्थित हैं. इसके अलावा, याचिका में कहा गया है कि वर्दी के संबंध में अस्पष्टता से होने वाली पीड़ा और क्षति बहुत अधिक है. वहीं लंदन, न्यूयॉर्क, हांगकांग, सिडनी और दुबई जैसे अधिकांश प्रसिद्ध महानगरीय शहरों ने टैक्सी चालकों के लिए कोई वर्दी निर्धारित नहीं की है.

यह भी पढ़ें-HC ने हज पोर्टल ऑपरेटरों को दी राहत, 17 पंजीकृत हज समूहों के लिए सेवाएं शुरू

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को शहर में ऑटो रिक्शा और टैक्सी चालकों के लिए अनिवार्य वर्दी को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी. मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने याचिका खारिज कर दी और मौखिक रूप से कहा कि यह एक जनहित याचिका (पीआईएल) का घोर दुरुपयोग है. उच्च न्यायालय का आदेश चालक संघ चालक शक्ति की याचिका पर आया, जिसने ऑटो रिक्शा और टैक्सी चालकों के लिए अनिवार्य वर्दी को चुनौती दी है और आरोप लगाया है कि इस तरह लेबलिंग संविधान का उल्लंघन है.

याचिकाकर्ता के वकील ने पहले कहा था कि वर्दी निर्धारित करने से ड्राइवरों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कम हो जाती है और यह उनकी स्थिति के प्रतीक के रूप में भी काम करता है. वहीं दिल्ली सरकार के वकील ने कहा था कि वर्दी के संबंध में कुछ अनुशासन का पालन करना होगा. इसपर हाई कोर्ट ने सरकारी वकील से पहले यह स्पष्ट करने को कहा था कि राष्ट्रीय राजधानी में ऑटो चालकों के लिए खाकी या ग्रे रंग की वर्दी निर्धारित है या नहीं.

अपनी याचिका में याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि राष्ट्रीय राजधानी में वर्दी न पहनने पर ड्राइवरों पर 20,000 रुपये तक के भारी चालान काटे जा रहे हैं, जबकि इस विषय पर कानून अस्पष्ट है. इसने प्रस्तुत किया है कि ड्यूटी पर ऑटो चालकों द्वारा पहनी जाने वाली वर्दी के रंग के बारे में पूरी अस्पष्टता है क्योंकि दिल्ली मोटर वाहन नियम, 1993 के नियम सात में खाकी रंग निर्धारित है, लेकिन राज्य अधिकारियों द्वारा निर्धारित परमिट शर्तों में ग्रे रंग अनिवार्य है.

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याचिका में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि खाकी और ग्रे दोनों के दर्जनों प्रमुख शेड हैं. चूंकि कोई विशेष शेड निर्धारित नहीं किया गया था, इसलिए प्रवर्तन अधिकारियों के पास इस बारे में बहुत बड़ा विवेक था कि वे किसके खिलाफ मुकदमा चलाना चाहते हैं. इसमें यह भी कहा गया है कि वर्दी को पैंट-शर्ट, सफारी सूट या कुर्ता-पायजामा के रूप में परिभाषित नहीं किया गया है. यहां तक कि कपड़े, ट्रिम्स और सहायक उपकरण के विनिर्देश भी अनुपस्थित हैं. इसके अलावा, याचिका में कहा गया है कि वर्दी के संबंध में अस्पष्टता से होने वाली पीड़ा और क्षति बहुत अधिक है. वहीं लंदन, न्यूयॉर्क, हांगकांग, सिडनी और दुबई जैसे अधिकांश प्रसिद्ध महानगरीय शहरों ने टैक्सी चालकों के लिए कोई वर्दी निर्धारित नहीं की है.

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