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'रिवर्स स्विंग के लिए हाथ से हुई है पिंक बॉल की सिलाई'

ऐतिहासिक दिन-रात टेस्ट मैच से पहले बीसीसीआई के अधिकारियों ने कहा है कि रिवर्स स्विंग हासिल करने के लिए गुलाबी गेंद की सिलाई हाथ से की गई है.

पिंक बॉल
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Published : Nov 19, 2019, 7:23 PM IST

नई दिल्ली: कोलकाता स्थित ईडन गार्डन्स स्टेडियम पहली बार भारत और बांग्लादेश के बीच शुक्रवार से शुरू होने वाले पहले ऐतिहासिक दिन-रात टेस्ट मैच के लिए पूरी तरह से तैयार है.

दिन-रात टेस्ट मैच गुलाबी गेंद से खेला जाएगा और इस मैच को लेकर अब सबकी नजरें इस बात पर लगी हुई हैं कि क्या इस मैच में ये गेंद रिवर्स स्विंग होगी या नहीं.

इस बीच, बीसीसीआई के अधिकारियों ने कहा है कि मैदान पर रिवर्स स्विंग हासिल करने के लिए गुलाबी गेंद की सिलाई हाथ से की गई है ताकि ये रिवर्स स्विंग में मददगार साबित हो सके.

अधिकारी ने कहा,"गुलाबी गेंद को हाथ से सिलकर तैयार किया गया है ताकि ये अधिक से अधिक रिवर्स स्विंग हो सके. इसलिए गुलाबी गेंद से स्विंग हासिल करने में अब कोई समस्या नहीं होनी चाहिए."

पिंक बॉल
पिंक बॉल

गुलाबी गेंद को बनाने में लगभग सात से आठ दिन का समय लगाता है और फिर इसके बाद इस पर गुलाबी रंग के चमड़े लगाए जाते हैं. एक बार जब चमड़ा तैयार हो जाता है तो फिर उन्हें टुकड़ों में काट दिया जाता है, जो बाद में गेंद को ढंक देता है.

इसके बाद इसे चमड़े की कटिंग से सिला जाता है और एक बार फिर से रंगा जाता है और फिर इसे सिलाई करके तैयार किया जाता है. गेंद के भीतरी हिस्से की सिलाई पहले ही कर दी जाती है और फिर बाहर के हिस्से की सिलाई होती है.

एक बार मुख्य प्रक्रिया पूरी हो जाती है तो फिर गेंद को अंतिम रूप से तौलने और उसे बाहर भेजने से पहले उस पर अच्छी तरह से रंग चढ़ाया जाता है.

गुलाबी गेंद पारंपरिक लाल गेंद की तुलना में थोड़ा भारी है.

नई दिल्ली: कोलकाता स्थित ईडन गार्डन्स स्टेडियम पहली बार भारत और बांग्लादेश के बीच शुक्रवार से शुरू होने वाले पहले ऐतिहासिक दिन-रात टेस्ट मैच के लिए पूरी तरह से तैयार है.

दिन-रात टेस्ट मैच गुलाबी गेंद से खेला जाएगा और इस मैच को लेकर अब सबकी नजरें इस बात पर लगी हुई हैं कि क्या इस मैच में ये गेंद रिवर्स स्विंग होगी या नहीं.

इस बीच, बीसीसीआई के अधिकारियों ने कहा है कि मैदान पर रिवर्स स्विंग हासिल करने के लिए गुलाबी गेंद की सिलाई हाथ से की गई है ताकि ये रिवर्स स्विंग में मददगार साबित हो सके.

अधिकारी ने कहा,"गुलाबी गेंद को हाथ से सिलकर तैयार किया गया है ताकि ये अधिक से अधिक रिवर्स स्विंग हो सके. इसलिए गुलाबी गेंद से स्विंग हासिल करने में अब कोई समस्या नहीं होनी चाहिए."

पिंक बॉल
पिंक बॉल

गुलाबी गेंद को बनाने में लगभग सात से आठ दिन का समय लगाता है और फिर इसके बाद इस पर गुलाबी रंग के चमड़े लगाए जाते हैं. एक बार जब चमड़ा तैयार हो जाता है तो फिर उन्हें टुकड़ों में काट दिया जाता है, जो बाद में गेंद को ढंक देता है.

इसके बाद इसे चमड़े की कटिंग से सिला जाता है और एक बार फिर से रंगा जाता है और फिर इसे सिलाई करके तैयार किया जाता है. गेंद के भीतरी हिस्से की सिलाई पहले ही कर दी जाती है और फिर बाहर के हिस्से की सिलाई होती है.

एक बार मुख्य प्रक्रिया पूरी हो जाती है तो फिर गेंद को अंतिम रूप से तौलने और उसे बाहर भेजने से पहले उस पर अच्छी तरह से रंग चढ़ाया जाता है.

गुलाबी गेंद पारंपरिक लाल गेंद की तुलना में थोड़ा भारी है.

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'रिवर्स स्विंग के लिए हाथ से हुई है पिंक बॉल की सिलाई'



 



ऐतिहासिक दिन-रात टेस्ट मैच से पहले बीसीसीआई के अधिकारियों ने कहा है कि रिवर्स स्विंग हासिल करने के लिए गुलाबी गेंद की सिलाई हाथ से की गई है.





नई दिल्ली: कोलकाता स्थित ईडन गार्डन्स स्टेडियम पहली बार भारत और बांग्लादेश के बीच शुक्रवार से शुरू होने वाले पहले ऐतिहासिक दिन-रात टेस्ट मैच के लिए पूरी तरह से तैयार है.



दिन-रात टेस्ट मैच गुलाबी गेंद से खेला जाएगा और इस मैच को लेकर अब सबकी नजरें इस बात पर लगी हुई हैं कि क्या इस मैच में ये गेंद रिवर्स स्विंग होगी या नहीं.



इस बीच, बीसीसीआई के अधिकारियों ने कहा है कि मैदान पर रिवर्स स्विंग हासिल करने के लिए गुलाबी गेंद की सिलाई हाथ से की गई है ताकि ये रिवर्स स्विंग में मददगार साबित हो सके.



अधिकारी ने कहा,"गुलाबी गेंद को हाथ से सिलकर तैयार किया गया है ताकि ये अधिक से अधिक रिवर्स स्विंग हो सके. इसलिए गुलाबी गेंद से स्विंग हासिल करने में अब कोई समस्या नहीं होनी चाहिए."



गुलाबी गेंद को बनाने में लगभग सात से आठ दिन का समय लगाता है और फिर इसके बाद इस पर गुलाबी रंग के चमड़े लगाए जाते हैं. एक बार जब चमड़ा तैयार हो जाता है तो फिर उन्हें टुकड़ों में काट दिया जाता है, जो बाद में गेंद को ढंक देता है.



इसके बाद इसे चमड़े की कटिंग से सिला जाता है और एक बार फिर से रंगा जाता है और फिर इसे सिलाई करके तैयार किया जाता है. गेंद के भीतरी हिस्से की सिलाई पहले ही कर दी जाती है और फिर बाहर के हिस्से की सिलाई होती है.



एक बार मुख्य प्रक्रिया पूरी हो जाती है तो फिर गेंद को अंतिम रूप से तौलने और उसे बाहर भेजने से पहले उस पर अच्छी तरह से रंग चढ़ाया जाता है.



गुलाबी गेंद पारंपरिक लाल गेंद की तुलना में थोड़ा भारी है.


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