मुंबई : एक तरफ जहां इन दिनों बॉक्स ऑफिस पर देश भक्ति से जुड़ी फिल्मों का लगातार आना एक परंपरा सी बन गई है. वहीं इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए इस सप्ताह जॉन अब्राहम की फिल्म भी रिलीज़ हो रही है. जी हां ये फिल्म है "रॉ" यानी "रोमियो अकबर वॉल्टर"!.. आपको बता दें कि जॉन की यह फिल्म 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश के जन्म की पृष्ठभूमि पर बनाई गई है.
क्या है फिल्म की कहानी?.....
रोमियो एक बैंक में काम करता है और रॉ के लोग उसे एक एजेंट के रूप में चुनकर अकबर मल्लिक बनाकर पाकिस्तान भेज देते हैं. इस दौरान में रोमियो वहां से कई महत्वपूर्ण जानकारियां भेजता है. इस बीच उसे किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है और रोमियो से अकबर मल्लिक बना यह रॉ एजेंट वाल्टर कैसे बनता है, इसी ताने-बाने पर बुनी गई है फिल्म "रॉ".
कितना सफल रहा अभिनय?...
अभिनय की बात करें तो जॉन अब्राहम अपने किरदार में रमे नजर आते हैं. सिकंदर खेर का अभिनय भी दमदार है. रॉ प्रमुख की भूमिका में जैकी श्रॉफ खासा प्रभावित करते हैं, जबकि मौनी रॉय के पास बहुत कुछ करने का स्कोप नहीं था. बहरहाल, फिल्म की प्रोडक्शन वैल्यू कमाल की है. जिस तरह के लोकेशंस चुने गए हैं वो फिल्म को विश्वसनीयता प्रदान करते हैं.
कमी कहां?.....
रॉ की सबसे बड़ी कमजोरी है उसका स्क्रीनप्ले! जब आप जासूसी जैसी विषय पर फिल्म बनाते हैं तो आपको आपके किरदार से कहीं ज्यादा दिमाग लगाना पड़ेगा ताकि नायक विश्वसनीय लगे. दुश्मनों की पार्टी में हीरोइन से संवाद करना, बीच सड़क पर टैक्सी में बैठ कर रोमांस करना आदि एक रॉ एजेंट के लिए कतई मूर्खतापूर्ण काम है. इससे उसकी विश्वसनीयता कम होती है.
इंटरवल के बाद की कहानी......
इंटरवल के पहले की बात करें तो फिल्म काफी बोझिल जान पड़ती है. इंटरवल के बाद फिल्म की रफ्तार ठीक है, मगर तब तक दर्शकों का ध्यान फिल्म पर वापस खींच लाना मुश्किल काम है. कुल मिलाकर यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि अगर रॉबी ग्रेवाल अपने स्क्रीनप्ले पर और काम करते तो फिल्म का स्वरूप कुछ अलग होता.
आखिर क्या है दिलचस्प?.....
अगर आप देश भक्ति पर आधारित फिल्म देखना पसंद करते हैं और अगर आप इतिहास में झांकना चाहते हैं तो एक बार यह फिल्म देख सकते हैं.
Film Review: एक मिशन कई अवतार....सच्चे देश भक्त की कहानी है "रोमियो अकबर वॉल्टर"!
मुंबई : एक तरफ जहां इन दिनों बॉक्स ऑफिस पर देश भक्ति से जुड़ी फिल्मों का लगातार आना एक परंपरा सी बन गई है. वहीं इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए इस सप्ताह जॉन अब्राहम की फिल्म भी रिलीज़ हो रही है. जी हां ये फिल्म है "रॉ" यानी "रोमियो अकबर वॉल्टर"!.. आपको बता दें कि जॉन की यह फिल्म 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश के जन्म की पृष्ठभूमि पर बनाई गई है.
क्या है फिल्म की कहानी?.....
रोमियो एक बैंक में काम करता है और रॉ के लोग उसे एक एजेंट के रूप में चुनकर अकबर मल्लिक बनाकर पाकिस्तान भेज देते हैं. इस दौरान में रोमियो वहां से कई महत्वपूर्ण जानकारियां भेजता है. इस बीच उसे किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है और रोमियो से अकबर मल्लिक बना यह रॉ एजेंट वाल्टर कैसे बनता है, इसी ताने-बाने पर बुनी गई है फिल्म "रॉ".
कितना सफल रहा अभिनय?...
अभिनय की बात करें तो जॉन अब्राहम अपने किरदार में रमे नजर आते हैं. सिकंदर खेर का अभिनय भी दमदार है. रॉ प्रमुख की भूमिका में जैकी श्रॉफ खासा प्रभावित करते हैं, जबकि मौनी रॉय के पास बहुत कुछ करने का स्कोप नहीं था. बहरहाल, फिल्म की प्रोडक्शन वैल्यू कमाल की है. जिस तरह के लोकेशंस चुने गए हैं वो फिल्म को विश्वसनीयता प्रदान करते हैं.
कमी कहां?.....
रॉ की सबसे बड़ी कमजोरी है उसका स्क्रीनप्ले! जब आप जासूसी जैसी विषय पर फिल्म बनाते हैं तो आपको आपके किरदार से कहीं ज्यादा दिमाग लगाना पड़ेगा ताकि नायक विश्वसनीय लगे. दुश्मनों की पार्टी में हीरोइन से संवाद करना, बीच सड़क पर टैक्सी में बैठ कर रोमांस करना आदि एक रॉ एजेंट के लिए कतई मूर्खतापूर्ण काम है. इससे उसकी विश्वसनीयता कम होती है.
इंटरवल के बाद की कहानी......
इंटरवल के पहले की बात करें तो फिल्म काफी बोझिल जान पड़ती है. इंटरवल के बाद फिल्म की रफ्तार ठीक है, मगर तब तक दर्शकों का ध्यान फिल्म पर वापस खींच लाना मुश्किल काम है. कुल मिलाकर यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि अगर रॉबी ग्रेवाल अपने स्क्रीनप्ले पर और काम करते तो फिल्म का स्वरूप कुछ अलग होता.
आखिर क्या है दिलचस्प?.....
अगर आप देश भक्ति पर आधारित फिल्म देखना पसंद करते हैं और अगर आप इतिहास में झांकना चाहते हैं तो एक बार यह फिल्म देख सकते हैं.
मुंबई : एक तरफ जहां इन दिनों बॉक्स ऑफिस पर देश भक्ति से जुड़ी फिल्मों का लगातार आना एक परंपरा सी बन गई है. वहीं इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए इस सप्ताह जॉन अब्राहम की फिल्म भी रिलीज़ हो रही है. जी हां ये फिल्म है "रॉ" यानी "रोमियो अकबर वॉल्टर"!.. आपको बता दें कि जॉन की यह फिल्म 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश के जन्म की पृष्ठभूमि पर बनाई गई है.
क्या है फिल्म की कहानी?.....
रोमियो एक बैंक में काम करता है और रॉ के लोग उसे एक एजेंट के रूप में चुनकर अकबर मल्लिक बनाकर पाकिस्तान भेज देते हैं. इस दौरान में रोमियो वहां से कई महत्वपूर्ण जानकारियां भेजता है. इस बीच उसे किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है और रोमियो से अकबर मल्लिक बना यह रॉ एजेंट वाल्टर कैसे बनता है, इसी ताने-बाने पर बुनी गई है फिल्म "रॉ".
कितना सफल रहा अभिनय?...
अभिनय की बात करें तो जॉन अब्राहम अपने किरदार में रमे नजर आते हैं. सिकंदर खेर का अभिनय भी दमदार है. रॉ प्रमुख की भूमिका में जैकी श्रॉफ खासा प्रभावित करते हैं, जबकि मौनी रॉय के पास बहुत कुछ करने का स्कोप नहीं था. बहरहाल, फिल्म की प्रोडक्शन वैल्यू कमाल की है. जिस तरह के लोकेशंस चुने गए हैं वो फिल्म को विश्वसनीयता प्रदान करते हैं.
कमी कहां?.....
रॉ की सबसे बड़ी कमजोरी है उसका स्क्रीनप्ले! जब आप जासूसी जैसी विषय पर फिल्म बनाते हैं तो आपको आपके किरदार से कहीं ज्यादा दिमाग लगाना पड़ेगा ताकि नायक विश्वसनीय लगे. दुश्मनों की पार्टी में हीरोइन से संवाद करना, बीच सड़क पर टैक्सी में बैठ कर रोमांस करना आदि एक रॉ एजेंट के लिए कतई मूर्खतापूर्ण काम है. इससे उसकी विश्वसनीयता कम होती है.
इंटरवल के बाद कहानी कितनी सफल?......
इंटरवल के पहले की बात करें तो फिल्म काफी बोझिल जान पड़ती है. इंटरवल के बाद फिल्म की रफ्तार ठीक है, मगर तब तक दर्शकों का ध्यान फिल्म पर वापस खींच लाना मुश्किल काम है. कुल मिलाकर यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि अगर रॉबी ग्रेवाल अपने स्क्रीनप्ले पर और काम करते तो फिल्म का स्वरूप कुछ अलग होता.
आखिर फिल्म में क्या है दिलचस्प?.....
अगर आप देश भक्ति पर आधारित फिल्म देखना पसंद करते हैं और अगर आप इतिहास में झांकना चाहते हैं तो एक बार यह फिल्म देख सकते हैं.
Conclusion: