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विश्व पोलियो दिवस : वैश्विक पटल पर लोगों में जागरूकता फैलाना इसका उद्देश्य

दुनिया भर में पोलियो उन्मूलन तथा पोलियो टीकाकरण को लेकर लोगों में जन जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 24 अक्टूबर को विश्व पोलियो दिवस मनाया जाता है.

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Published : Oct 24, 2022, 4:50 PM IST

भारत को पोलियो मुक्त राष्ट्र कहा जाता है, लेकिन दुनिया में अभी भी कुछ देश है जहां इस जटिल बीमारी से पूरी तरह से मुक्ति अभी तक संभव नहीं हुई है. दशकों से विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा दुनिया के लगभग सभी देशों के कई सरकारी व गैर सरकारी संगठन इस रोग के उन्मूलन तथा इस रोग से बचाव के लिए हर बच्चे को वैक्सीन की सुरक्षा मिल सके, इसके लिए कई स्वास्थ्य परक तथा सामाजिक जनजागरूकता कार्यक्रम व अभियान चला रहे हैं. उनकी इसी मुहिम को दिशा देने तथा पोलियो उन्मूलन तथा पोलियो टीकाकरण को लेकर वैश्विक पटल पर लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 24 अक्टूबर को विश्व पोलियो दिवस (World Polio Day) मनाया जाता है. इस वर्ष यह विशेष दिवस 'माताओं और बच्चों के लिए एक स्वस्थ भविष्य' (A healthier future for mothers and children) थीम पर मनाया जा रहा है.

भारत सरकार के प्रयास

गौरतलब है कि 30 वर्ष पहले तक पोलियो भारत में एक आम बीमारी माना जाता था. लेकिन भारत सरकार के पल्स पोलियो अभियान सहित कई सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं के विभिन्न अभियानो तथा प्रयासों का नतीजा रहा है कि 27 मार्च 2014 को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भारत को पोलियो से मुक्त घोषित कर दिया गया. इससे पूर्व 1995 में भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक पोलियो उन्मूलन प्रयास के परिणामस्वरूप पल्‍स पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी. जिसके तहत 5 वर्ष से कम आयु के सभी बच्‍चों को हर साल दिसम्बर और जनवरी माह में ओरल पोलियो टीके की दो खुराक दी जाती थी. इस अभियान में भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ यूनिसेफ और रोटरी इंटरनेशनल जैसी संस्थाओं ने भी अहम भूमिका निभाई हैं. अभी भी भारत सरकार के पल्स पोलियो अभियान के तहत घर-घर जाकर बच्चों को पोलियो की खुराक पिलाई जाती है.

इतिहास

विश्व पोलियो दिवस के इतिहास के बारें में बात करें तो इस दिवस को मनाये जाने की शुरुआत रोटरी इंटरनेशनल द्वारा की गई थी. पोलियो के टीके की खोज करने वाले वैज्ञानिक जोनास साल्क के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में हर साल 24 अक्टूबर को यह दिवस मनाया जाता है. गौरतलब है कि जोनास साल्क व उनकी टीम ने वर्ष 1955 में पोलियो के टीके की खोज की थी.

क्या है पोलियो

पोलियो दरअसल एक संक्रामक बीमारी है जो ना सिर्फ विकलांगता का कारण बन सकती है बल्कि यह जानलेवा भी हो सकती है. पोलियोमेलाइटिस नाम से भी चर्चित इस संक्रामक वायरल बीमारी में तंत्रिकाएं गंभीर रूप में प्रभावित हो जाती है जिसके कारण रीढ़ की हड्डियों एवं मस्तिष्क को नुकसान पहुंच सकता है, साथ ही पक्षाघात यानी लकवा तथा सांस लेने में कठिनाई जैसी समस्याएं हो सकती हैं. कभी-कभी इसकी वजह से भी मृत्यु हो जाती है. यह ज्यादातर 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में होती है और ताउम्र उन्हें प्रभावित करती हैं. इसलिए पोलियो से बचाव के लिए 0 से 5 वर्ष तक के बच्चों को पोलियो दवा की खुराक देना बहुत जरूरी माना जाता है.

पोलियो के कारणों की बात करें तो इसका वायरस दूषित पानी, भोजन, संक्रमित मल के पास जाने, संक्रमित व्यक्ति के छींकने तथा वायरस से संक्रमित व्यक्ति के साथ सीधे संपर्क में आने से फैलता हैं. वहीं इस वायरस के प्रभाव में आने पर पहले बच्चों में हलके फ्लू के लक्षण नजर आते हैं जो लगभग 10 दिनों तक नजर आते रहते है. इसके अलावा पीड़ितों में बुखार, सिरदर्द, थकान, उल्टी, गले में खराश, गर्दन में दर्द, मांसपेशियो में कमजोरी होना, मेनिनजाइटिस, बाहों या पैरों में दर्द या ऐठन होना तथा पीठ में दर्द जैसे लक्षण भी नजर आ सकते हैं.

सावधानी जरूरी

भले ही हमारा देश पोलियो मुक्त देश कहलाता है, लेकिन आने वाली पीढ़ी भी इस जटिल रोग से बची रहे इसके लिए सतत प्रयास बेहद जरूरी हैं. इसलिए हमारे देश में सरकार द्वारा बच्चों को पोलियो की खुराक उनके घर, आंगनबाड़ी केंद्र, डिस्पेंसरी तथा स्कूल सहित हर संभव नजदीकी जगह उपलब्ध कराई जाती है. बच्चों को सिर्फ पोलियो ही नहीं बल्कि कई अन्य जटिल बीमारियों से बचाए रखने के लिए बहुत जरूरी है की उनका पूरा टीकाकरण कराया जाए . विशेषकर पोलियो से बचाव के लिए छोटे बच्चों को सही समय पर टीके तथा नियमित पोलियो की दवा की खुराक पिलानी चाहिए. ग़ौरतलब है कि प्लस पोलियो अभियान के तहत बच्चों को आईवीपी के अनुसार चार खुराक दिए जाते है. इसमें 2 महीने, 4 महीने, 6 से 18 महीने, और 4 से 6 वर्ष में एक पोलियो का बूस्टर दिया जाता है.

भारत को पोलियो मुक्त राष्ट्र कहा जाता है, लेकिन दुनिया में अभी भी कुछ देश है जहां इस जटिल बीमारी से पूरी तरह से मुक्ति अभी तक संभव नहीं हुई है. दशकों से विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा दुनिया के लगभग सभी देशों के कई सरकारी व गैर सरकारी संगठन इस रोग के उन्मूलन तथा इस रोग से बचाव के लिए हर बच्चे को वैक्सीन की सुरक्षा मिल सके, इसके लिए कई स्वास्थ्य परक तथा सामाजिक जनजागरूकता कार्यक्रम व अभियान चला रहे हैं. उनकी इसी मुहिम को दिशा देने तथा पोलियो उन्मूलन तथा पोलियो टीकाकरण को लेकर वैश्विक पटल पर लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 24 अक्टूबर को विश्व पोलियो दिवस (World Polio Day) मनाया जाता है. इस वर्ष यह विशेष दिवस 'माताओं और बच्चों के लिए एक स्वस्थ भविष्य' (A healthier future for mothers and children) थीम पर मनाया जा रहा है.

भारत सरकार के प्रयास

गौरतलब है कि 30 वर्ष पहले तक पोलियो भारत में एक आम बीमारी माना जाता था. लेकिन भारत सरकार के पल्स पोलियो अभियान सहित कई सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं के विभिन्न अभियानो तथा प्रयासों का नतीजा रहा है कि 27 मार्च 2014 को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भारत को पोलियो से मुक्त घोषित कर दिया गया. इससे पूर्व 1995 में भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक पोलियो उन्मूलन प्रयास के परिणामस्वरूप पल्‍स पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी. जिसके तहत 5 वर्ष से कम आयु के सभी बच्‍चों को हर साल दिसम्बर और जनवरी माह में ओरल पोलियो टीके की दो खुराक दी जाती थी. इस अभियान में भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ यूनिसेफ और रोटरी इंटरनेशनल जैसी संस्थाओं ने भी अहम भूमिका निभाई हैं. अभी भी भारत सरकार के पल्स पोलियो अभियान के तहत घर-घर जाकर बच्चों को पोलियो की खुराक पिलाई जाती है.

इतिहास

विश्व पोलियो दिवस के इतिहास के बारें में बात करें तो इस दिवस को मनाये जाने की शुरुआत रोटरी इंटरनेशनल द्वारा की गई थी. पोलियो के टीके की खोज करने वाले वैज्ञानिक जोनास साल्क के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में हर साल 24 अक्टूबर को यह दिवस मनाया जाता है. गौरतलब है कि जोनास साल्क व उनकी टीम ने वर्ष 1955 में पोलियो के टीके की खोज की थी.

क्या है पोलियो

पोलियो दरअसल एक संक्रामक बीमारी है जो ना सिर्फ विकलांगता का कारण बन सकती है बल्कि यह जानलेवा भी हो सकती है. पोलियोमेलाइटिस नाम से भी चर्चित इस संक्रामक वायरल बीमारी में तंत्रिकाएं गंभीर रूप में प्रभावित हो जाती है जिसके कारण रीढ़ की हड्डियों एवं मस्तिष्क को नुकसान पहुंच सकता है, साथ ही पक्षाघात यानी लकवा तथा सांस लेने में कठिनाई जैसी समस्याएं हो सकती हैं. कभी-कभी इसकी वजह से भी मृत्यु हो जाती है. यह ज्यादातर 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में होती है और ताउम्र उन्हें प्रभावित करती हैं. इसलिए पोलियो से बचाव के लिए 0 से 5 वर्ष तक के बच्चों को पोलियो दवा की खुराक देना बहुत जरूरी माना जाता है.

पोलियो के कारणों की बात करें तो इसका वायरस दूषित पानी, भोजन, संक्रमित मल के पास जाने, संक्रमित व्यक्ति के छींकने तथा वायरस से संक्रमित व्यक्ति के साथ सीधे संपर्क में आने से फैलता हैं. वहीं इस वायरस के प्रभाव में आने पर पहले बच्चों में हलके फ्लू के लक्षण नजर आते हैं जो लगभग 10 दिनों तक नजर आते रहते है. इसके अलावा पीड़ितों में बुखार, सिरदर्द, थकान, उल्टी, गले में खराश, गर्दन में दर्द, मांसपेशियो में कमजोरी होना, मेनिनजाइटिस, बाहों या पैरों में दर्द या ऐठन होना तथा पीठ में दर्द जैसे लक्षण भी नजर आ सकते हैं.

सावधानी जरूरी

भले ही हमारा देश पोलियो मुक्त देश कहलाता है, लेकिन आने वाली पीढ़ी भी इस जटिल रोग से बची रहे इसके लिए सतत प्रयास बेहद जरूरी हैं. इसलिए हमारे देश में सरकार द्वारा बच्चों को पोलियो की खुराक उनके घर, आंगनबाड़ी केंद्र, डिस्पेंसरी तथा स्कूल सहित हर संभव नजदीकी जगह उपलब्ध कराई जाती है. बच्चों को सिर्फ पोलियो ही नहीं बल्कि कई अन्य जटिल बीमारियों से बचाए रखने के लिए बहुत जरूरी है की उनका पूरा टीकाकरण कराया जाए . विशेषकर पोलियो से बचाव के लिए छोटे बच्चों को सही समय पर टीके तथा नियमित पोलियो की दवा की खुराक पिलानी चाहिए. ग़ौरतलब है कि प्लस पोलियो अभियान के तहत बच्चों को आईवीपी के अनुसार चार खुराक दिए जाते है. इसमें 2 महीने, 4 महीने, 6 से 18 महीने, और 4 से 6 वर्ष में एक पोलियो का बूस्टर दिया जाता है.

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