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Disruption of global peace : पश्चिम एशिया में हिंसा रोकने के लिए शांति वार्ता का रास्ता अपनाया जाना चाहिए - Eenadu Editorial

हमास के हमले के बाद इजरायल सैन्य कार्रवाई कर रहा है, जिसका खामियाजा गाजा शहर के लोग भुगत रहे हैं. पश्चिम एशिया में हिंसा को रोकने के लिए शांति वार्ता का रास्ता अपनाया जाना चाहिए. City of Gaza, Disruption of global peace, Palestinians in northern Gaza, Benjamin Netanyahu, stop violence in West Asia. path of peace talks should be adopted, Israel action on Hamas.

Israeli action on Hamas
हमास पर इजरायल की कार्रवाई
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 16, 2023, 4:12 PM IST

हैदराबाद : मात्र 360 वर्ग किलोमीटर में बसा गाजा शहर (City of Gaza), जो 23 लाख निवासियों का घर है, अब लगातार हमले का खामियाजा भुगत रहा है. इज़रायली सेनाएं अनगिनत असहाय बच्चों और महिलाओं को अकथनीय पीड़ा पहुंचा रही हैं.

पश्चिम एशिया में अंतहीन हिंसा को रोकने के लिए जैसा कि भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने रेखांकित किया है कि शांति वार्ता के माध्यम से मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर एक स्वतंत्र, संप्रभु फिलिस्तीन की स्थापना अनिवार्य है.

सामूहिक विनाश के हथियार केवल मानवीय संकट को बढ़ाने का काम करते है, ये सद्भाव को बढ़ावा नहीं दे सकते. शांति की कल्पना ही निर्दोषों के खून से सनी मिट्टी को सुखा सकती है. पश्चिम एशियाई क्षेत्र में संघर्ष की वर्तमान वृद्धि इस गंभीर वास्तविकता का एक स्पष्ट प्रमाण है.

हमास आतंकियों के क्रूर हमले के जवाब में इजरायल गाजा को लगातार तबाह करने में लगा हुआ है. मात्र 360 वर्ग किलोमीटर के दायरे में सिमटा शहर जो 23 लाख निवासियों का घर है, निरंतर हमले का खामियाजा भुगत रहा है. इजरायली सेनाएं अनगिनत असहाय बच्चों और महिलाओं को अकथनीय पीड़ा पहुंचा रही हैं, जबकि सभी यह दावा कर रहे हैं कि उनका इरादा गाजा के लोगों के खिलाफ युद्ध छेड़ने का नहीं है.

घटनाओं के एक खतरनाक मोड़ में उत्तरी गाजा में एक करोड़ दस लाख फिलिस्तीनियों को आसन्न खतरे से बचने के लिए 24 घंटे की कठिन समय सीमा के भीतर अपने घरों से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा. इस विनाशकारी संघर्ष की छाया में आम नागरिकों की दुर्दशा और भी अधिक अनिश्चित हो गई है. ऐसे में यह सवाल बड़ा है कि आठ दिन पहले घटी प्रलयंकारी घटनाओं की चिंगारी किसने भड़काई, जिसकी परिणति उस अनवरत हिंसा के रूप में हुई जो आज हम देख रहे हैं?

दिसंबर 2022 में इज़रायल में प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुए बेंजामिन नेतन्याहू ने अपनी चुनावी जीत को सुरक्षित करने के लिए दूर-दराज़ चरमपंथी गुटों के समर्थन का इस्तेमाल किया, जिससे देश के इतिहास में सबसे सांप्रदायिक सरकार का उदय हुआ.

उनकी कैबिनेट नियुक्तियों में फ़िलिस्तीनी अस्तित्व के प्रति ज़बरदस्त घृणा रखने वाले कई नस्लवादी व्यक्ति शामिल थे. उनके समर्थन से उत्साहित होकर इजरायली निवासियों ने वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम पर अनियंत्रित आक्रामकता की बाढ़ ला दी है. अकेले जून महीने में फिलिस्तीनियों के खिलाफ आगजनी सहित लगभग 310 हमले हुए, जबकि इस साल की पहली छमाही में वेस्ट बैंक में 200 से अधिक फिलिस्तीनियों को जान गंवानी पड़ी.

यहां तक ​​कि इज़रायल के विपक्षी नेता बेनी गैंट्ज़ ने भी हिंसा के इन कृत्यों की निंदा करने से परहेज नहीं किया है, और इन्हें यहूदी राष्ट्रवाद के गुमराह तनाव से उत्पन्न आतंकवाद की खतरनाक अभिव्यक्तियां बताया है.

काफी समय से चिंता की आवाजें गूंज रही थीं, जिसमें चेतावनी दी गई थी कि नेतन्याहू के नेतृत्व में इजरायली सरकार फिलिस्तीनी आबादी के साथ दुर्व्यवहार के साथ संभावित विनाशकारी परिणामों के बीज बो रही है. अफसोस की बात है कि ये अशुभ भविष्यवाणियां अब सच हो गई हैं, क्योंकि संघर्ष के निरंतर तांडव के बीच आम नागरिकों का जीवन बेरहमी से छीन लिया गया है.

इज़रायल में अत्याचार करने और कई इज़रायलियों के अपहरण के लिए जिम्मेदार संगठन हमास की उत्पत्ति का पता ऐतिहासिक, राजनीतिक और क्षेत्रीय कारकों के जटिल जाल से लगाया जा सकता है. इस संघर्ष के मूल कारण उथल-पुथल भरे इतिहास में गहराई से छिपे हुए हैं.

साढ़े पांच दशक से भी पहले इजरायल ने वेस्ट बैंक, पूर्वी यरुशलम और गाजा पट्टी पर कब्ज़ा कर लिया था, जिसने इस क्षेत्र में एक लंबे संघर्ष के लिए मंच तैयार किया था.

इन क्षेत्रीय अधिग्रहणों के जवाब में, यासिर अराफात के फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) ने गुरिल्ला युद्ध का अभियान शुरू किया. पीएलओ के धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद के मंच को शुरू में आत्मनिर्णय चाहने वाले फिलिस्तीनियों का समर्थन मिला. हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया, यह दृष्टिकोण फिलिस्तीनी आबादी के अधिक रूढ़िवादी वर्गों के लिए अभिशाप बन गया, जिन्हें बाद में अराफात के नेतृत्व के खिलाफ इज़रायल द्वारा लामबंद किया गया.

हमास फिलिस्तीनी समुदाय के भीतर विभाजन पैदा करने की इजरायल की रणनीति के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में उभरा. हमास ने उस समय हिंसक प्रतिरोध में विश्वास रखा जब अराफात का पीएलओ अंतरराष्ट्रीय मंच पर फिलिस्तीनी मुद्दे को उठाने के लिए निरस्त्रीकरण प्रयासों और राजनयिक प्रयासों में सक्रिय रूप से लगा हुआ था.

धीरे-धीरे, हमास ने स्थानीय समर्थन हासिल किया और इज़रायल के पक्ष में एक महत्वपूर्ण कांटे के रूप में विकसित हुआ. इसे हिजबुल्लाह और अन्य इस्लामिक जिहाद संगठनों के साथ एकजुटता मिली, जबकि इज़रायल के पारंपरिक विरोधी ईरान ने भी देश को निशाना बनाया.

मध्य पूर्व में गतिशीलता समय के साथ बदल गई है, कई अरब देश तेल अवीव के साथ बेहतर संबंधों की मांग कर रहे हैं. इसके साथ ही इज़रायल ने संयुक्त राज्य अमेरिका के समर्थन से कब्जे वाले क्षेत्रों में बढ़ती लापरवाही के साथ कार्य करते हुए फिलिस्तीनी मुद्दे को बड़े पैमाने पर नजरअंदाज कर दिया है.

इसने 1967 के युद्ध के दौरान हासिल किए गए क्षेत्र से वापसी और यरुशलम में 'ग्रीन लाइन' का सम्मान करने के संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का पालन करने से इनकार कर दिया है. इस तरह का आधिपत्यवादी अहंकार इजरायल की अपनी सुरक्षा को खतरे में डालता है.

यूक्रेन में रूस की घुसपैठ सहित दुनिया में चल रहे संकटों के बीच, इज़रायल में बढ़ता संघर्ष हमें और भी खतरनाक भंवर में डाल रहा है. पश्चिम एशिया में अंतहीन हिंसा को रोकने के लिए, जैसा कि भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने रेखांकित किया है कि शांति वार्ता के माध्यम से मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर एक स्वतंत्र, संप्रभु फिलिस्तीन की स्थापना अनिवार्य है.

सवाल यह है कि क्या इज़रायल इस आह्वान पर ध्यान देगा और ऐसा करके युद्ध की आग को बुझाएगा, जो न केवल इस क्षेत्र को बल्कि पूरे विश्व को अपनी चपेट में लेने की धमकी दे रही है.

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(ईनाडु में प्रकाशित संपादकीय का अनुवादित संस्करण)

हैदराबाद : मात्र 360 वर्ग किलोमीटर में बसा गाजा शहर (City of Gaza), जो 23 लाख निवासियों का घर है, अब लगातार हमले का खामियाजा भुगत रहा है. इज़रायली सेनाएं अनगिनत असहाय बच्चों और महिलाओं को अकथनीय पीड़ा पहुंचा रही हैं.

पश्चिम एशिया में अंतहीन हिंसा को रोकने के लिए जैसा कि भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने रेखांकित किया है कि शांति वार्ता के माध्यम से मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर एक स्वतंत्र, संप्रभु फिलिस्तीन की स्थापना अनिवार्य है.

सामूहिक विनाश के हथियार केवल मानवीय संकट को बढ़ाने का काम करते है, ये सद्भाव को बढ़ावा नहीं दे सकते. शांति की कल्पना ही निर्दोषों के खून से सनी मिट्टी को सुखा सकती है. पश्चिम एशियाई क्षेत्र में संघर्ष की वर्तमान वृद्धि इस गंभीर वास्तविकता का एक स्पष्ट प्रमाण है.

हमास आतंकियों के क्रूर हमले के जवाब में इजरायल गाजा को लगातार तबाह करने में लगा हुआ है. मात्र 360 वर्ग किलोमीटर के दायरे में सिमटा शहर जो 23 लाख निवासियों का घर है, निरंतर हमले का खामियाजा भुगत रहा है. इजरायली सेनाएं अनगिनत असहाय बच्चों और महिलाओं को अकथनीय पीड़ा पहुंचा रही हैं, जबकि सभी यह दावा कर रहे हैं कि उनका इरादा गाजा के लोगों के खिलाफ युद्ध छेड़ने का नहीं है.

घटनाओं के एक खतरनाक मोड़ में उत्तरी गाजा में एक करोड़ दस लाख फिलिस्तीनियों को आसन्न खतरे से बचने के लिए 24 घंटे की कठिन समय सीमा के भीतर अपने घरों से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा. इस विनाशकारी संघर्ष की छाया में आम नागरिकों की दुर्दशा और भी अधिक अनिश्चित हो गई है. ऐसे में यह सवाल बड़ा है कि आठ दिन पहले घटी प्रलयंकारी घटनाओं की चिंगारी किसने भड़काई, जिसकी परिणति उस अनवरत हिंसा के रूप में हुई जो आज हम देख रहे हैं?

दिसंबर 2022 में इज़रायल में प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुए बेंजामिन नेतन्याहू ने अपनी चुनावी जीत को सुरक्षित करने के लिए दूर-दराज़ चरमपंथी गुटों के समर्थन का इस्तेमाल किया, जिससे देश के इतिहास में सबसे सांप्रदायिक सरकार का उदय हुआ.

उनकी कैबिनेट नियुक्तियों में फ़िलिस्तीनी अस्तित्व के प्रति ज़बरदस्त घृणा रखने वाले कई नस्लवादी व्यक्ति शामिल थे. उनके समर्थन से उत्साहित होकर इजरायली निवासियों ने वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम पर अनियंत्रित आक्रामकता की बाढ़ ला दी है. अकेले जून महीने में फिलिस्तीनियों के खिलाफ आगजनी सहित लगभग 310 हमले हुए, जबकि इस साल की पहली छमाही में वेस्ट बैंक में 200 से अधिक फिलिस्तीनियों को जान गंवानी पड़ी.

यहां तक ​​कि इज़रायल के विपक्षी नेता बेनी गैंट्ज़ ने भी हिंसा के इन कृत्यों की निंदा करने से परहेज नहीं किया है, और इन्हें यहूदी राष्ट्रवाद के गुमराह तनाव से उत्पन्न आतंकवाद की खतरनाक अभिव्यक्तियां बताया है.

काफी समय से चिंता की आवाजें गूंज रही थीं, जिसमें चेतावनी दी गई थी कि नेतन्याहू के नेतृत्व में इजरायली सरकार फिलिस्तीनी आबादी के साथ दुर्व्यवहार के साथ संभावित विनाशकारी परिणामों के बीज बो रही है. अफसोस की बात है कि ये अशुभ भविष्यवाणियां अब सच हो गई हैं, क्योंकि संघर्ष के निरंतर तांडव के बीच आम नागरिकों का जीवन बेरहमी से छीन लिया गया है.

इज़रायल में अत्याचार करने और कई इज़रायलियों के अपहरण के लिए जिम्मेदार संगठन हमास की उत्पत्ति का पता ऐतिहासिक, राजनीतिक और क्षेत्रीय कारकों के जटिल जाल से लगाया जा सकता है. इस संघर्ष के मूल कारण उथल-पुथल भरे इतिहास में गहराई से छिपे हुए हैं.

साढ़े पांच दशक से भी पहले इजरायल ने वेस्ट बैंक, पूर्वी यरुशलम और गाजा पट्टी पर कब्ज़ा कर लिया था, जिसने इस क्षेत्र में एक लंबे संघर्ष के लिए मंच तैयार किया था.

इन क्षेत्रीय अधिग्रहणों के जवाब में, यासिर अराफात के फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) ने गुरिल्ला युद्ध का अभियान शुरू किया. पीएलओ के धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद के मंच को शुरू में आत्मनिर्णय चाहने वाले फिलिस्तीनियों का समर्थन मिला. हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया, यह दृष्टिकोण फिलिस्तीनी आबादी के अधिक रूढ़िवादी वर्गों के लिए अभिशाप बन गया, जिन्हें बाद में अराफात के नेतृत्व के खिलाफ इज़रायल द्वारा लामबंद किया गया.

हमास फिलिस्तीनी समुदाय के भीतर विभाजन पैदा करने की इजरायल की रणनीति के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में उभरा. हमास ने उस समय हिंसक प्रतिरोध में विश्वास रखा जब अराफात का पीएलओ अंतरराष्ट्रीय मंच पर फिलिस्तीनी मुद्दे को उठाने के लिए निरस्त्रीकरण प्रयासों और राजनयिक प्रयासों में सक्रिय रूप से लगा हुआ था.

धीरे-धीरे, हमास ने स्थानीय समर्थन हासिल किया और इज़रायल के पक्ष में एक महत्वपूर्ण कांटे के रूप में विकसित हुआ. इसे हिजबुल्लाह और अन्य इस्लामिक जिहाद संगठनों के साथ एकजुटता मिली, जबकि इज़रायल के पारंपरिक विरोधी ईरान ने भी देश को निशाना बनाया.

मध्य पूर्व में गतिशीलता समय के साथ बदल गई है, कई अरब देश तेल अवीव के साथ बेहतर संबंधों की मांग कर रहे हैं. इसके साथ ही इज़रायल ने संयुक्त राज्य अमेरिका के समर्थन से कब्जे वाले क्षेत्रों में बढ़ती लापरवाही के साथ कार्य करते हुए फिलिस्तीनी मुद्दे को बड़े पैमाने पर नजरअंदाज कर दिया है.

इसने 1967 के युद्ध के दौरान हासिल किए गए क्षेत्र से वापसी और यरुशलम में 'ग्रीन लाइन' का सम्मान करने के संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का पालन करने से इनकार कर दिया है. इस तरह का आधिपत्यवादी अहंकार इजरायल की अपनी सुरक्षा को खतरे में डालता है.

यूक्रेन में रूस की घुसपैठ सहित दुनिया में चल रहे संकटों के बीच, इज़रायल में बढ़ता संघर्ष हमें और भी खतरनाक भंवर में डाल रहा है. पश्चिम एशिया में अंतहीन हिंसा को रोकने के लिए, जैसा कि भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने रेखांकित किया है कि शांति वार्ता के माध्यम से मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर एक स्वतंत्र, संप्रभु फिलिस्तीन की स्थापना अनिवार्य है.

सवाल यह है कि क्या इज़रायल इस आह्वान पर ध्यान देगा और ऐसा करके युद्ध की आग को बुझाएगा, जो न केवल इस क्षेत्र को बल्कि पूरे विश्व को अपनी चपेट में लेने की धमकी दे रही है.

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(ईनाडु में प्रकाशित संपादकीय का अनुवादित संस्करण)

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