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ईरान में हेड स्कार्फ के खिलाफ नहीं थम रहे विरोध, उदारवादियों-रूढ़िवादियों के बीच चौड़ी हुई खाई

ईरान में हेड स्कार्फ के खिलाफ विरोध प्रदर्शन रुकने का नाम नहीं ले रहा है. यह ईरान के 80 शहरों तक फैल चुका है. इस आंदोलन की वजह से उदारवादियों और इस्लामी रूढ़िवादियों के बीच एक बड़ा गैप आ गया है. ईरानी उदारवादी, अल्पसंख्यकों के साथ हाथ मिला रहे हैं. इसने सरकार के लिए कानून और व्यवस्था बनाए रखना चुनौतीपूर्ण कर दिया है. पेश है ईटीवी भारत के न्यूज एडिटर बिलाल भट का एक विश्लेषण.

protest in iran etv bharat
स्कार्फ के खिलाफ ईरान में विरोध
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Published : Nov 11, 2022, 7:59 PM IST

Updated : Nov 12, 2022, 10:29 AM IST

22 वर्षीय कुर्द महिला महासा अमिनी के मारे जाने के बाद हेडस्कार्फ के खिलाफ ईरान में जिस विरोध प्रदर्शन की शुरुआत हुई, वह रूकने का नाम नहीं ले रहे हैं, बल्कि यह ईरान के 80 शहरों तक फैल गए हैं. अमिनी को कुर्दिस्तान प्रांत के सैकक्वेज शहर में दफनाया गया. यहां की कुर्द आबादी सुन्नी इस्लाम को मानती है. ईरानी प्रथा के अनुसार, उसकी मृत्यु के 40वें दिन पर जब उनके सगे-संबंधी उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे, तो उस दिन भी विवाद हो गया. वहां एक हिंसक घटना हो गई. कई लोग मारे गए. कई लोग घायल भी हुए. यह घटना आतंकी संगठन आईएसआईएस द्वारा प्रायोजित थी. घटना के बाद इस आतंकी संगठन ने इसे स्वीकार भी किया.

कुर्द आबादी सीरिया में आईएस के खिलाफ लड़ती रही है. आईएस का यह मानना है कि कुर्द अमेरिकी शह पर उनके खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं. इसके बावजूद स्कार्फ के खिलाफ विरोध नहीं रूका. सैकक्वेज में विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों ने अपने सिर से स्कार्फ हटा लिए, उन्हें सार्वजनिक रूप से जलाया. यह खुले तौर पर देश के नियमों की अवहेलना करने वाला पहला ईरानी शहर बन गया. विरोध के हिंसक होने के बाद, वे नियंत्रण से बाहर हो गए, और ईरान की केंद्र सरकार को विद्रोह को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर कार्रवाई शुरू करनी पड़ी.

विरोध का सिलसिला अब भी जारी है. विरोध के दौरान जिनकी भी मौतें हुईं, उसने प्रदर्शनकारियों के हौंसले नहीं तोड़े. ईरानी रिवाज के अनुसार, लोग अपने प्रियजनों के निधन के 40 वें दिन शोक व्यक्त करने और शोक संतप्त परिवार के लिए एकजुटता व्यक्त करने के लिए एकत्र होते हैं. लोगों का मानना ​​है कि अमिनी को इसलिए मार दिया गया, क्योंकि वह एक कुर्द थी. ईरानी क्रांति के समय से ही पश्चिमी ईरान के कुर्द इलाकों में विद्रोह होता रहा है और उन्हें संदेह के नजरिए से देखा जाता रहा है.

विरोध के स्वर सिर्फ कुर्दिस्तान में ही नहीं उठ रहे, बल्कि ईशफहान और जाहेदान जैसे शहरों से भी उन्हें समर्थन मिलने लगा है. इन शहरों में भी चोरी-छिपे विरोध जताए जा रहे हैं. ईशफहान में करीब 20 हजार फारसी यहूदी रहते हैं. यह कला और शिल्प का शहर माना जाता है. ईशफहान की महिलाएं भी ईरान के अन्य हिस्सों की महिलाओं के साथ एकजुटता दिखाते हुए सड़कों पर उतरीं और अमिनी की हत्या और सैकड़ों लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग की.

ईशफहान काफी हद तक एक शांत शहर रहा है. व्यापार और पर्यटन में लोग लगे रहते हैं. यही वजह है कि ईरान क्रांति, 1979, के बाद भी यहां के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खोमैनी ने उन्हें रहने की अनुमति दी और उनके 13 पूजा स्थलों (सिनेगॉग) को भी यूं ही रहने दिया गया.

ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खोमैनी द्वारा हाल ही में की गई टिप्पणियों के आलोक में ईशफहान में उथल-पुथल का अधिक महत्व है. खोमैनी ने कहा कि पश्चिम और जायोनिवादियों की वजह से ईरान में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. हालांकि, उन्होंने अपने बयान में कहीं भी फारसी यहूदियों का जिक्र नहीं किया. न ही उन्होंने उन क्षेत्रों का कोई स्पष्ट उल्लेख किया, जो सुन्नियों या अन्य अल्पसंख्यकों के प्रभुत्व वाले इलाके हैं.

लेकिन उन्होंने अमेरिका पर खुलकर निशाना साधा. चूंकि कुर्दों को संयुक्त राज्य अमेरिका से सैन्य सहायता प्राप्त होती है, इसलिए ईरान को स्पष्ट रूप से चिंतित होने की आवश्यकता है. इस तथ्य के बावजूद कि कई शहरों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, सरकार ईशफहान, जाहेदान और सैकक्वेज पर अधिक फोकस कर रही है. इन शहरों में हताहतों की संख्या भी अधिक रही है. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने इस भेदभाव पर सवाल उठाए हैं. उनका आरोप है कि ईरान इन इलाकों में विद्रोह के स्वर को दबाने के लिए नरसंहार और दमनात्मक रवैया अपना रहा है.

जाहेदान उन कुछ ईरानी शहरों में से एक है जहां सुन्नी मुसलमानों का बहुमत है. उन्होंने ईरानी सरकार पर सुन्नी महिलाओं की आवाज को दबाने के लिए बल प्रयोग करने का आरोप लगाया. यह शहर सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत की राजधानी है और विरोध प्रदर्शनों के बाद से यहां सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं. किसी भी संभावित विरोध को समाप्त करने के लिए शुक्रवार को मस्जिदों के सामने बड़ी तैनाती की जाती है.

मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि 300 से अधिक नागरिकों की मौतें हुई हैं और देश भर में करीब 14,000 लोगों को या तो हिरासत में लिया गया है या जेल में डाल दिया गया है. सितंबर में अमिनी की मौत के बाद इस बार जो अशांति है, उससे केंद्र सरकार बड़ी चिंता में है. विरोध कर रहे युवाओं को उनके कारण से भटकाने के लिए कई तरह की रणनीतियां अपनाई गईं, लेकिन उनका कोई नतीजा नहीं निकला. उनमें से एक कासिम सुलेमानी की मौत का बदला लेने की धारणा को पुनर्जीवित करना था, जो जनता द्वारा की गई मांगों में से एक थी, जब वह 2020 में इराक में एक अमेरिकी ड्रोन द्वारा मारा गया था.

सरकार द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सभी रणनीति विफल रही और उनके लिए कोई सफलता नहीं मिली. ऐसा प्रतीत होता है कि यह ईरानी प्रणाली में भी प्रवेश कर गया है. इस हफ्ते, बैंकॉक में एशियाई चैंपियनशिप में प्रतिस्पर्धा कर रहे ईरानी वाटर पोलो एथलीटों ने राष्ट्रगान गाने से मना कर दिया. चेन्नईयिन फुटबॉल क्लब के एक फुटबॉल खिलाड़ी वफा हखामनेशी ने बंगाल के खिलाफ स्कोर करने के बाद महिलाओं का विरोध करने के लिए समर्थन में प्रदर्शन किया.

ईरानी प्रशासन संदेह के मुद्दे से जूझ रहा है. इसके परिणामस्वरूप, उदारवादियों और इस्लामी रूढ़िवादियों के बीच एक बड़ा विभाजन हो गया है. ईरानी उदारवादी अब जाहेदान, इशफहान, सैकक्वेज, आदि जैसे शहरों में अल्पसंख्यकों के साथ हाथ मिला रहे हैं. इसने सरकार के लिए कानून और व्यवस्था बनाए रखना चुनौतीपूर्ण कर दिया है. नतीजतन, ईरान के तथाकथित बिलिवर्स खुद अपने ही देश में अल्पसंख्यकों जैसा महूसस कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें : कर्नाटक से ईरान तक : हिजाब के पक्ष या विपक्ष में रुख नरम होना चाहिए, जबरदस्ती नहीं

22 वर्षीय कुर्द महिला महासा अमिनी के मारे जाने के बाद हेडस्कार्फ के खिलाफ ईरान में जिस विरोध प्रदर्शन की शुरुआत हुई, वह रूकने का नाम नहीं ले रहे हैं, बल्कि यह ईरान के 80 शहरों तक फैल गए हैं. अमिनी को कुर्दिस्तान प्रांत के सैकक्वेज शहर में दफनाया गया. यहां की कुर्द आबादी सुन्नी इस्लाम को मानती है. ईरानी प्रथा के अनुसार, उसकी मृत्यु के 40वें दिन पर जब उनके सगे-संबंधी उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे, तो उस दिन भी विवाद हो गया. वहां एक हिंसक घटना हो गई. कई लोग मारे गए. कई लोग घायल भी हुए. यह घटना आतंकी संगठन आईएसआईएस द्वारा प्रायोजित थी. घटना के बाद इस आतंकी संगठन ने इसे स्वीकार भी किया.

कुर्द आबादी सीरिया में आईएस के खिलाफ लड़ती रही है. आईएस का यह मानना है कि कुर्द अमेरिकी शह पर उनके खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं. इसके बावजूद स्कार्फ के खिलाफ विरोध नहीं रूका. सैकक्वेज में विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों ने अपने सिर से स्कार्फ हटा लिए, उन्हें सार्वजनिक रूप से जलाया. यह खुले तौर पर देश के नियमों की अवहेलना करने वाला पहला ईरानी शहर बन गया. विरोध के हिंसक होने के बाद, वे नियंत्रण से बाहर हो गए, और ईरान की केंद्र सरकार को विद्रोह को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर कार्रवाई शुरू करनी पड़ी.

विरोध का सिलसिला अब भी जारी है. विरोध के दौरान जिनकी भी मौतें हुईं, उसने प्रदर्शनकारियों के हौंसले नहीं तोड़े. ईरानी रिवाज के अनुसार, लोग अपने प्रियजनों के निधन के 40 वें दिन शोक व्यक्त करने और शोक संतप्त परिवार के लिए एकजुटता व्यक्त करने के लिए एकत्र होते हैं. लोगों का मानना ​​है कि अमिनी को इसलिए मार दिया गया, क्योंकि वह एक कुर्द थी. ईरानी क्रांति के समय से ही पश्चिमी ईरान के कुर्द इलाकों में विद्रोह होता रहा है और उन्हें संदेह के नजरिए से देखा जाता रहा है.

विरोध के स्वर सिर्फ कुर्दिस्तान में ही नहीं उठ रहे, बल्कि ईशफहान और जाहेदान जैसे शहरों से भी उन्हें समर्थन मिलने लगा है. इन शहरों में भी चोरी-छिपे विरोध जताए जा रहे हैं. ईशफहान में करीब 20 हजार फारसी यहूदी रहते हैं. यह कला और शिल्प का शहर माना जाता है. ईशफहान की महिलाएं भी ईरान के अन्य हिस्सों की महिलाओं के साथ एकजुटता दिखाते हुए सड़कों पर उतरीं और अमिनी की हत्या और सैकड़ों लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग की.

ईशफहान काफी हद तक एक शांत शहर रहा है. व्यापार और पर्यटन में लोग लगे रहते हैं. यही वजह है कि ईरान क्रांति, 1979, के बाद भी यहां के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खोमैनी ने उन्हें रहने की अनुमति दी और उनके 13 पूजा स्थलों (सिनेगॉग) को भी यूं ही रहने दिया गया.

ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खोमैनी द्वारा हाल ही में की गई टिप्पणियों के आलोक में ईशफहान में उथल-पुथल का अधिक महत्व है. खोमैनी ने कहा कि पश्चिम और जायोनिवादियों की वजह से ईरान में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. हालांकि, उन्होंने अपने बयान में कहीं भी फारसी यहूदियों का जिक्र नहीं किया. न ही उन्होंने उन क्षेत्रों का कोई स्पष्ट उल्लेख किया, जो सुन्नियों या अन्य अल्पसंख्यकों के प्रभुत्व वाले इलाके हैं.

लेकिन उन्होंने अमेरिका पर खुलकर निशाना साधा. चूंकि कुर्दों को संयुक्त राज्य अमेरिका से सैन्य सहायता प्राप्त होती है, इसलिए ईरान को स्पष्ट रूप से चिंतित होने की आवश्यकता है. इस तथ्य के बावजूद कि कई शहरों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, सरकार ईशफहान, जाहेदान और सैकक्वेज पर अधिक फोकस कर रही है. इन शहरों में हताहतों की संख्या भी अधिक रही है. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने इस भेदभाव पर सवाल उठाए हैं. उनका आरोप है कि ईरान इन इलाकों में विद्रोह के स्वर को दबाने के लिए नरसंहार और दमनात्मक रवैया अपना रहा है.

जाहेदान उन कुछ ईरानी शहरों में से एक है जहां सुन्नी मुसलमानों का बहुमत है. उन्होंने ईरानी सरकार पर सुन्नी महिलाओं की आवाज को दबाने के लिए बल प्रयोग करने का आरोप लगाया. यह शहर सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत की राजधानी है और विरोध प्रदर्शनों के बाद से यहां सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं. किसी भी संभावित विरोध को समाप्त करने के लिए शुक्रवार को मस्जिदों के सामने बड़ी तैनाती की जाती है.

मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि 300 से अधिक नागरिकों की मौतें हुई हैं और देश भर में करीब 14,000 लोगों को या तो हिरासत में लिया गया है या जेल में डाल दिया गया है. सितंबर में अमिनी की मौत के बाद इस बार जो अशांति है, उससे केंद्र सरकार बड़ी चिंता में है. विरोध कर रहे युवाओं को उनके कारण से भटकाने के लिए कई तरह की रणनीतियां अपनाई गईं, लेकिन उनका कोई नतीजा नहीं निकला. उनमें से एक कासिम सुलेमानी की मौत का बदला लेने की धारणा को पुनर्जीवित करना था, जो जनता द्वारा की गई मांगों में से एक थी, जब वह 2020 में इराक में एक अमेरिकी ड्रोन द्वारा मारा गया था.

सरकार द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सभी रणनीति विफल रही और उनके लिए कोई सफलता नहीं मिली. ऐसा प्रतीत होता है कि यह ईरानी प्रणाली में भी प्रवेश कर गया है. इस हफ्ते, बैंकॉक में एशियाई चैंपियनशिप में प्रतिस्पर्धा कर रहे ईरानी वाटर पोलो एथलीटों ने राष्ट्रगान गाने से मना कर दिया. चेन्नईयिन फुटबॉल क्लब के एक फुटबॉल खिलाड़ी वफा हखामनेशी ने बंगाल के खिलाफ स्कोर करने के बाद महिलाओं का विरोध करने के लिए समर्थन में प्रदर्शन किया.

ईरानी प्रशासन संदेह के मुद्दे से जूझ रहा है. इसके परिणामस्वरूप, उदारवादियों और इस्लामी रूढ़िवादियों के बीच एक बड़ा विभाजन हो गया है. ईरानी उदारवादी अब जाहेदान, इशफहान, सैकक्वेज, आदि जैसे शहरों में अल्पसंख्यकों के साथ हाथ मिला रहे हैं. इसने सरकार के लिए कानून और व्यवस्था बनाए रखना चुनौतीपूर्ण कर दिया है. नतीजतन, ईरान के तथाकथित बिलिवर्स खुद अपने ही देश में अल्पसंख्यकों जैसा महूसस कर रहे हैं.

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Last Updated : Nov 12, 2022, 10:29 AM IST
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