लंदन : ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुए एक लेख में शोधकर्ताओं ने यह माना है कि गैर संचारी रोग और मौजूदा गरीबी यह दोनों मिलकर स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक बड़े संकट का निर्माण कर रहे हैं. इस लेख में यह माना गया है कि पूरी दुनिया बढ़ते कोरोना संक्रमण को ही सबसे बड़ी बीमारी मान रही है. जबकि कोरोना के पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को समझा जाए और फिर गरीब तबके के लोगों या वह जो पहले से अन्य बीमारियों से ग्रस्त हैं और जिनके लिए कोविड जानलेवा साबित हो सकता है, उनकी प्रतिरक्षा शक्ति को दुरूस्त करने के लिए समग्र स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकार को ध्यान देना चाहिए.
इस शोध के लेखक कोलंबिया मेलमैन स्कूल की नीना श्वाल्बे, स्पार्क स्ट्रीट सलाहकार की सुजाना लेहटीमाकी और नेशनल ऑटोनॉमस यूनिवर्सिटी ऑफ मेक्सिको के जुआन पाब्लो गुटिरेज हैं. लेखकों के अनुसार, मोटापा, उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसी गैर-संचारी बीमारियाें से ग्रसित मरीजों को यदि कोरोनो संक्रमण हो गया तो यह इनके लिए जानलेवा हो सकता है.
इसका मतलब यह भी समझा जा सकता है कि गरीबी कोरोना संक्रमण को और बढ़ा सकती है क्योंकि उनके पास पोषित आहार की कमी है और प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर है.
संयुक्त राज्य अमेरिका के मामले में उपलब्ध डेटा ने यह साबित कर दिया है कि वहां के कमजोर अश्वेतों का एक बड़ा प्रतिशत मौत के मुंह में जा रहा है. लेखकों का मानना है कि कोविड-19 के खिलाफ किए गए उपायों जैसे लॉकडाउन और सामाजिक दूरी को लागू करना दुर्भाग्य से गरीबों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को प्रभावित करता है.
परिणामस्वरूप इन समुदायों के लिए समग्र स्वास्थ्य की स्थिति खराब हो गई है, जोकि खाद्य असुरक्षा और बेरोजगारी के साथ मिली हुई है और यह उच्च मृत्यु दर का कारण बन सकती है.
कोविड-19 महामारी ने पूरे विश्व का ध्यान पूरी आबादी पर केंद्रित किया न कि उसके कमजोर तबकों पर. कमजोर लोगों को लक्षित करने की बजाए संसाधन का आवंटन भी गलत तरीके से किया गया.
समस्या से निपटने के लिए लेखकों ने गरीबों कों आर्थिक सहायता प्रदान करने की वकालत की और साथ ही अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं भी उपलब्ध कराने को कहा तभी कोरोना जैसी महामारियों से निजात पाई जा सकती है और मौत के जोखिम को कम किया जा सकता है.