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विशेष लेख : ब्रिटेन के मतदाताओं ने ब्रेग्जिट के लिए किया वोट - ब्रेग्जिट पर किसी साफ रुख

बोरिस जॉनसन के नेतृत्व में कंजर्वेटिव पार्टी ने ब्रिटिश आमचुनाव में 650 में से 365 सीटों पर जीत दर्ज की. यह संख्या पिछले चुनावों से 47 ज्यादा थी. ब्रेग्जिट पर किसी साफ रुख का न होना जेरेमी कॉर्बिन के नेतृत्व वाली लेबर पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हुआ और पार्टी ने 1935 के बाद से अब तक का अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया.

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ब्रिटेन के मतदाताओं ने ब्रेक्सिट के लिये किया वोट
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Published : Dec 28, 2019, 5:45 PM IST

ब्रिटेन में बीते 12, दिसंबर 2019 को आम चुनाव संपन्न हुए हैं, जो जून 2017 में हुए आम चुनावों के 30 महीने के अंदर देश में हुए दूसरे आम चुनाव हैं. कंजर्वेटिव, लेबर, लिब्रल डेमोक्रेट, स्कॉटिश नेशनल और कई अन्य दलों ने इन चुनावों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और इन चुनावों का विजेता बना 'ब्रेग्जिट'. बोरिस जॉनसन के नेतृत्व में कंजर्वेटिव पार्टी ने 650 में से 365 सीटों पर जीत दर्ज की. यह संख्या पिछले चुनावों से 47 ज्यादा थी.

ब्रेग्जिट पर किसी साफ रुख का न होना जेरेमी कॉर्बिन के नेतृत्व वाली लेबर पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हुआ और पार्टो ने 1935 के बाद से अब तक का अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया. 59 सीटों के नुकसान के साथ लेबर पार्टी की सीटें 203 पर ही सिमट गईं.

इस बार ओपिनियन पोल लोगों की नब्ज पकड़ने में भी कामयाब रहे. प्रधानमंत्री जॉनसन के नेतृत्व में उनकी पार्टी को मिला बहुमत इस बात की तरफ इशारा करता है कि देश के लोग जून 2016 से लटके और दो प्रधानमंत्रियों को गद्दी से हटाने वाले ब्रेग्जिट पर अब फैसला चाहते हैं. ऐसा लगता है कि ब्रेग्जिट के लिए दी गई 31 जनवरी, 2020 की समय सीमा इस बार तय कर ली जाएगी. ये ईयू के लिए क्या मायने रखता है, यह तो समय ही बता सकेगा.

हालांकि यह कहना सही नहीं होगा कि ब्रेग्जिट इस क्षेत्र के सबसे ताकतवर संघों में से एक, ईयू के लिए नुसानदायक होगा. पिछले दस सालों में ईयू, मुख्यत: ईसाई देशों के एक ताकतवर संगठन के तौर पर उभरा है. हालांकि इस संघ में तुर्की को शामिल करने की बातें तो हुई थीं, मगर समय के साथ बातें ही रह गईं.

जानकारों की मानें तो ब्रेग्जिट से ब्रिटेन के पास फिलहाल खुश होने को बहुत ज्यादा नही है. बल्कि इसके चलते, देश के एक मध्य शक्ति बनकर रह जाने का खतरा भी है. वहीं, ईयू के पक्षधारी स्कॉटलैंड में भी ब्रिटेन ले अलग होने के लिए एक दूसरा जनमत संग्रह कराने की मांग जोर पकड़ती जा रही है. स्कॉटिश नेशनल पार्टी ने इन चुनावों मे अच्छा प्रदर्शन करते हुए, 48 सीटें हासिल की हैं, वहीं कंजर्वेटिव पार्टी को सात और लेबर पार्टी को छह सीटों का नुकसान हुआ.

2014 में हुए पहले जनमत संग्रह में 45% लोगों ने ब्रिटेन से अलग होने के लिए वोट किया था. तब से अब तक ब्रिटेन से अलग होने की भावना ने तेजी पकड़ी है. इसी तरह, ब्रेग्जिट के चलते अगर जॉनसन बॉर्डर कंट्रोल लागू करते हैं तो पूर्वी आयरलैंड से भी संबंधों में तनाव पैदा हो सकता है. आयरलैंड दोनों देशों के बीच मौजूद काल्पनिक बॉर्डर को जारी रखने के पक्ष में है.

दूसरी तरफ, चाहे कितनी भी अच्छी तस्वीर दिखाने की कोशिश हो, लेकिन आर्थिक जानकारों की राय में, ब्रेग्जिट से देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर पड़ने का खतरा मंडरा रहा है. देश की जीडीपी सिकुड़ कर 3% तक जा सकती है.

वहीं, भारत, चीन, ईयू और अमेरिका से बेहतर ताल्लुक बनाने के लिए ब्रिटेन को नई रणनीतियों पर काम करना पड़ेगा. ये राह नई सरकार के लिए आसान नही होने वाली है. जिस तरह की जल्दबाजी ब्रेग्जिट को लेकर देश में मची है, उससे यह नहीं लगता कि एफटीए बहुत जल्दी या ब्रिटेन की पसंद के हिसाब से हो सकेंगे.

लंदन के पास ईयू से समझौते की शर्तों को अंतिम रूप देने के लिए 31 दिसंबर 2020 तक का ही समय है. 17 अक्टूबर, 2019 को इस मसले पर आंशिक समझौते पर पहुंचा जा चुका था. जॉनसन और ईयू के बीच हुए इस समझौते को लेबर पार्टी के बहुमत वाले हाउस ऑफ कॉमन्स ने खारिज कर दिया था. लेकिन अब जबकि जॉनसन के पास पूर्ण बहुमत है तो यह दोबारा बातचीत का बेस बन सकता है.

ब्रेग्जिट होने के बाद आम नागरिक ईयू से ब्रिटेन में बिना रोकटोक के नहीं आ जा सकेंगे. ये बात ब्रिटेन के नागरिकों के लिए खुश करने वाली नहीं थी. आगे चलकर देश में आने का तरीका व्यक्ति की नागरिकता नहीं बल्कि अनुभव पर निर्भर करेगा, जिसके चलते भारतीय और ईयू के नागरिक एक पायदान पर पहुंच जाएंगे.

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने, जॉनसन को मुबारकबाद देने औऱ भारत आने का न्यौता देने में देर नहीं की. 13 दिसंबर को उन्होने ट्वीट किया, 'पीएम @borisjhonson को सत्ता में बड़ी जीत के साथ वापसी के लिए बहुत मुबारक. मैं उन्हें शुभकामनाऐं देता हूं, और भारत-यूके रिश्तों पर साथ काम करने की आशा करता हूं.'

जॉनसन 25 सालों से मरीना ह्वीलर से शादीशुदा हैं, मरीना के माता पिता भारतीय मूल के हैं. जॉनसन के जल्द ही अपने आधिकारिक दौरे पर भारत आने की उम्मीद है.

ब्रिटेन में पहली बार, हाउस ऑफ कॉमन्स में 15 भारतीय मूल के सांसद हैं, जिनमे से 7 कंजर्वेटिव पार्टी के हैं. देश के 15 लाख भारतीय मूल के लोग ज्यादातर लेबर पार्टी के समर्थक माने जाते रहे हैं. लेकिन, कॉर्बिन के कश्मीर पर रवैये के कारण ये समुदाय पार्टी से अलग हो गया.

कंजर्वेटिव फ्रेंड्स ऑफ इंडिया के अध्यक्ष, टोरी पीयर का कहना है, 'भारतीय मूल के लोगों ने बड़ी संख्या में जॉनसन के लिए वोट किया है. कश्मीर पर लेबर पार्टी की नीति ने इन वोटरों को हमारे पक्ष में एकजुट कर दिया.'

लेबर पार्टी को लेकर भारत के विदेश मंत्रालय, ब्रिटेन में मौजूद भारतीयों के संगठनों और भारतीय उच्च आयोग ने ठंडी प्रतिक्रिया दी थी. उच्चायोग ने लेबर पार्टी के सांसदों, समर्थकों के लिए होने वाले भोज को भी रद कर दिया था.

वहीं 29 सितंबर को भारत दिवस पर, भारतीय उच्चायोग और भारतीय मूल के लोगों के संगठनों द्वारा आयोजित समारोह में भी लेबर पार्टी के नेताओ को निमंत्रण नहीं था. इन सभी घटनाओं का संदेश साफ था.

ब्रिटेन, ईयू में काफी देर से शामिल हुआ, और अब सबसे पहले निकलने वाला देश भी बन जाएगा. पूर्व प्रधानमंत्री, डेविड कैमरन, जिनके कार्यकाल में ब्रेग्जिट पर जनमत संग्रह हुआ था, इसके समर्थन में कामयाबी हासिल न कर पाने पर दुखी हैं.

जानकारों की राय में, देश के राजनेताओं के दूरदर्शी न होने का खामियाजा ब्रिटेन को भुगतना पड़ सकता है और इसके कारण ग्रेट ब्रिटेन के सिमट कर केवल इंग्लैंड बन जाने का खतरा है.

ब्रिटेन में बीते 12, दिसंबर 2019 को आम चुनाव संपन्न हुए हैं, जो जून 2017 में हुए आम चुनावों के 30 महीने के अंदर देश में हुए दूसरे आम चुनाव हैं. कंजर्वेटिव, लेबर, लिब्रल डेमोक्रेट, स्कॉटिश नेशनल और कई अन्य दलों ने इन चुनावों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और इन चुनावों का विजेता बना 'ब्रेग्जिट'. बोरिस जॉनसन के नेतृत्व में कंजर्वेटिव पार्टी ने 650 में से 365 सीटों पर जीत दर्ज की. यह संख्या पिछले चुनावों से 47 ज्यादा थी.

ब्रेग्जिट पर किसी साफ रुख का न होना जेरेमी कॉर्बिन के नेतृत्व वाली लेबर पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हुआ और पार्टो ने 1935 के बाद से अब तक का अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया. 59 सीटों के नुकसान के साथ लेबर पार्टी की सीटें 203 पर ही सिमट गईं.

इस बार ओपिनियन पोल लोगों की नब्ज पकड़ने में भी कामयाब रहे. प्रधानमंत्री जॉनसन के नेतृत्व में उनकी पार्टी को मिला बहुमत इस बात की तरफ इशारा करता है कि देश के लोग जून 2016 से लटके और दो प्रधानमंत्रियों को गद्दी से हटाने वाले ब्रेग्जिट पर अब फैसला चाहते हैं. ऐसा लगता है कि ब्रेग्जिट के लिए दी गई 31 जनवरी, 2020 की समय सीमा इस बार तय कर ली जाएगी. ये ईयू के लिए क्या मायने रखता है, यह तो समय ही बता सकेगा.

हालांकि यह कहना सही नहीं होगा कि ब्रेग्जिट इस क्षेत्र के सबसे ताकतवर संघों में से एक, ईयू के लिए नुसानदायक होगा. पिछले दस सालों में ईयू, मुख्यत: ईसाई देशों के एक ताकतवर संगठन के तौर पर उभरा है. हालांकि इस संघ में तुर्की को शामिल करने की बातें तो हुई थीं, मगर समय के साथ बातें ही रह गईं.

जानकारों की मानें तो ब्रेग्जिट से ब्रिटेन के पास फिलहाल खुश होने को बहुत ज्यादा नही है. बल्कि इसके चलते, देश के एक मध्य शक्ति बनकर रह जाने का खतरा भी है. वहीं, ईयू के पक्षधारी स्कॉटलैंड में भी ब्रिटेन ले अलग होने के लिए एक दूसरा जनमत संग्रह कराने की मांग जोर पकड़ती जा रही है. स्कॉटिश नेशनल पार्टी ने इन चुनावों मे अच्छा प्रदर्शन करते हुए, 48 सीटें हासिल की हैं, वहीं कंजर्वेटिव पार्टी को सात और लेबर पार्टी को छह सीटों का नुकसान हुआ.

2014 में हुए पहले जनमत संग्रह में 45% लोगों ने ब्रिटेन से अलग होने के लिए वोट किया था. तब से अब तक ब्रिटेन से अलग होने की भावना ने तेजी पकड़ी है. इसी तरह, ब्रेग्जिट के चलते अगर जॉनसन बॉर्डर कंट्रोल लागू करते हैं तो पूर्वी आयरलैंड से भी संबंधों में तनाव पैदा हो सकता है. आयरलैंड दोनों देशों के बीच मौजूद काल्पनिक बॉर्डर को जारी रखने के पक्ष में है.

दूसरी तरफ, चाहे कितनी भी अच्छी तस्वीर दिखाने की कोशिश हो, लेकिन आर्थिक जानकारों की राय में, ब्रेग्जिट से देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर पड़ने का खतरा मंडरा रहा है. देश की जीडीपी सिकुड़ कर 3% तक जा सकती है.

वहीं, भारत, चीन, ईयू और अमेरिका से बेहतर ताल्लुक बनाने के लिए ब्रिटेन को नई रणनीतियों पर काम करना पड़ेगा. ये राह नई सरकार के लिए आसान नही होने वाली है. जिस तरह की जल्दबाजी ब्रेग्जिट को लेकर देश में मची है, उससे यह नहीं लगता कि एफटीए बहुत जल्दी या ब्रिटेन की पसंद के हिसाब से हो सकेंगे.

लंदन के पास ईयू से समझौते की शर्तों को अंतिम रूप देने के लिए 31 दिसंबर 2020 तक का ही समय है. 17 अक्टूबर, 2019 को इस मसले पर आंशिक समझौते पर पहुंचा जा चुका था. जॉनसन और ईयू के बीच हुए इस समझौते को लेबर पार्टी के बहुमत वाले हाउस ऑफ कॉमन्स ने खारिज कर दिया था. लेकिन अब जबकि जॉनसन के पास पूर्ण बहुमत है तो यह दोबारा बातचीत का बेस बन सकता है.

ब्रेग्जिट होने के बाद आम नागरिक ईयू से ब्रिटेन में बिना रोकटोक के नहीं आ जा सकेंगे. ये बात ब्रिटेन के नागरिकों के लिए खुश करने वाली नहीं थी. आगे चलकर देश में आने का तरीका व्यक्ति की नागरिकता नहीं बल्कि अनुभव पर निर्भर करेगा, जिसके चलते भारतीय और ईयू के नागरिक एक पायदान पर पहुंच जाएंगे.

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने, जॉनसन को मुबारकबाद देने औऱ भारत आने का न्यौता देने में देर नहीं की. 13 दिसंबर को उन्होने ट्वीट किया, 'पीएम @borisjhonson को सत्ता में बड़ी जीत के साथ वापसी के लिए बहुत मुबारक. मैं उन्हें शुभकामनाऐं देता हूं, और भारत-यूके रिश्तों पर साथ काम करने की आशा करता हूं.'

जॉनसन 25 सालों से मरीना ह्वीलर से शादीशुदा हैं, मरीना के माता पिता भारतीय मूल के हैं. जॉनसन के जल्द ही अपने आधिकारिक दौरे पर भारत आने की उम्मीद है.

ब्रिटेन में पहली बार, हाउस ऑफ कॉमन्स में 15 भारतीय मूल के सांसद हैं, जिनमे से 7 कंजर्वेटिव पार्टी के हैं. देश के 15 लाख भारतीय मूल के लोग ज्यादातर लेबर पार्टी के समर्थक माने जाते रहे हैं. लेकिन, कॉर्बिन के कश्मीर पर रवैये के कारण ये समुदाय पार्टी से अलग हो गया.

कंजर्वेटिव फ्रेंड्स ऑफ इंडिया के अध्यक्ष, टोरी पीयर का कहना है, 'भारतीय मूल के लोगों ने बड़ी संख्या में जॉनसन के लिए वोट किया है. कश्मीर पर लेबर पार्टी की नीति ने इन वोटरों को हमारे पक्ष में एकजुट कर दिया.'

लेबर पार्टी को लेकर भारत के विदेश मंत्रालय, ब्रिटेन में मौजूद भारतीयों के संगठनों और भारतीय उच्च आयोग ने ठंडी प्रतिक्रिया दी थी. उच्चायोग ने लेबर पार्टी के सांसदों, समर्थकों के लिए होने वाले भोज को भी रद कर दिया था.

वहीं 29 सितंबर को भारत दिवस पर, भारतीय उच्चायोग और भारतीय मूल के लोगों के संगठनों द्वारा आयोजित समारोह में भी लेबर पार्टी के नेताओ को निमंत्रण नहीं था. इन सभी घटनाओं का संदेश साफ था.

ब्रिटेन, ईयू में काफी देर से शामिल हुआ, और अब सबसे पहले निकलने वाला देश भी बन जाएगा. पूर्व प्रधानमंत्री, डेविड कैमरन, जिनके कार्यकाल में ब्रेग्जिट पर जनमत संग्रह हुआ था, इसके समर्थन में कामयाबी हासिल न कर पाने पर दुखी हैं.

जानकारों की राय में, देश के राजनेताओं के दूरदर्शी न होने का खामियाजा ब्रिटेन को भुगतना पड़ सकता है और इसके कारण ग्रेट ब्रिटेन के सिमट कर केवल इंग्लैंड बन जाने का खतरा है.

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ब्रिटेन के मतदाताओँ ने ब्रेक्सिट के लिये किया वोट



ब्रिटेन में 12, दिसंबर 2019 को आम चुनाव संपन्न हुए हैं, जो जून 2017 में हुए आम चुनावों के तीस महीने के अंदर, देश में हुए दूसरे आम चुनाव हैं। कंसर्रवेटिव, लेबर, लिब्रल डेमोक्रेट, स्कॉटिश नेशनल और कई अन्य दलों ने इन चुनावों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। और इन चुनावों का विजेता बना “ब्रेक्सिट”।  बॉरिस जॉनसन के नेतृत्व में कंसर्रवेटिव पार्टी ने 650 में से 365 सीटों पर जीत दर्ज करी, जो पिछले चुनावो से 47 सीटें ज्यादा थी। ब्रेक्सिट पर किसी साफ रुख का न होना, जेरिमी कॉर्बेन के नेतृत्व वाली लेबर पार्टी के लिये नुकसानदायक साबित हुआ और पार्टो ने 1935 के बाद से अबतक का अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया। 59 सीटों के नुकासन के साथ लेबर पार्टी की सीटें 203 पर ही सिमट गई।   



इस बार ओपिनियन पोल लोगों की नब्ज पकड़ने में भी कामयाब रहे। प्रधानमंत्री जॉनसन के नेतृत्व में उनकी पार्टी को मिला बहुमत इस बात की तरफ इशारा करता है कि, देश के लोग जून 2016 से लटके और दो प्रधानमंत्रियों को गद्दी से हटाने वाले ब्रेक्सिट पर अब फैसला चाहते हैं। ऐसा लगता है कि ब्रेक्सिट के लिये दी गई 31 जनवरी, 2020 की समय सीमा इस बार तय कर ली जायेगी। ये ईयू के लिये क्या मायने रखता है, यह तो समय ही बता सकेगा।



हांलाकि यह कहना सही नही होगा कि ब्रेक्सिट इस क्षेत्र के सबसे ताकतवर संघों में से एक, ईयू के लिये नुसानदायक होगा। ईईसी (यूरोपियन इकनोमिक कमेटी) के साथ इसकी शुरुआत 1957 में छह देशों द्वारा की गई थी। ब्रिटेन, 1973 में ईईसी में शामिल हुआ था। पिछले दस सालों में ईयू, मुख्यता इसाई देशों के एक ताकतवर संगठन के तौर पर उभरा है। हांलाकि इस संघ में तुर्की को शामिल करने की बाते तो हुई थी, मगर वो समय के साथ बाते ही रह गई। 



जानकारों की माने तो ब्रेक्सिट से ब्रिटेन के पास फिलहाल खुश होने को बहुत ज्यादा नही है। बल्कि इसके चलते, देश के एक मध्य शक्ति बनकर रह जाने का खतरा भी है। वहीं, ईयू के पक्षधारी स्कॉटलैंड में भी ब्रिटेन ले अलग होने के लिये एक दूसरा जनमत संग्रह कराने की मांग जोर पकड़ती जा रही है। स्कॉटिश नेशनल पार्टी ने इन चुनावों मे अच्छा प्रदर्शन करते हुए, 48 सीटें हासिल की हैं, वहीं कंसर्रवेटिव पार्टी को 7 और लेबर पार्टी को 6 सीटों का नुकसान हुआ।



2014 में हुए पहले जनमत संग्रह में 45% लोगों ने ब्रिटेन से अलग होने के लिये वोट किया था। तब से अबतक ब्रिटेन से अलग होने की भावना ने तेजी पकड़ी है। इसी तरह, ब्रेकिस्ट के चलते अगर जॉनसन बॉर्डर कंट्रोल लागू करते हैं तो पूर्वी आयरलैंड से भी संबंधों में तनाव पैदा हो सकता है। आयरलैंड दोनों देशों के बीच मौजूद काल्पनिक बॉर्डर को जारी रखने के पक्ष में है।



दूसरी तरफ, चाहे कितनी भी अच्छी तस्वीर दिखाने की कोशिश हो, लेकिन आर्थिक जानकारों की राय में, ब्रेक्सिट से देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर पड़ने का खतरा मंडरा रहा है।देश की जीडीपी सिकुड़ कर 3% तक जा सकती है।



वहीं, भारत, चीन, ईयू और अमरीका से बेहतर ताल्लुक बनाने के लिये ब्रिटेन को नई रणनीतियों पर काम करना पड़ेगा। ये राह नई सरकार के लिये आसान नही होने वाली है।जिस तरह की जल्दबाजी ब्रेकिस्ट को लेकर देश में मची है, उससे यह नही लगता कि एफटीए बहुत जल्दी या ब्रिटेन की पसंद के हिसाब से हो सकेंगे।



लंदन के पास ईयू से समझौते की शर्तो को अंतिम रूप देने के लिये 31 दिसंबर 2020 तक का ही समय है। 17 अक्टूबर, 2019 को इस मसले पर आंशिक समझौते पर पहुंचा जा चुका था। जॉनसन औऱ ईयू के बीच हुए इस समझौते को लेबर पार्टी के बहुमत वाले हाउस ऑफ कॉमन्स ने खारिज कर दिया था। लेकिन अब जबकि जॉनसन के पास पूर्ण बहुमत है तो यह दोबारा बातचीत का बेस बन सकता है।



ब्रेक्सिट होने के बाद आम नागरिक ईयू से ब्रिटेन में बिना रोकटोक के नहीं आ जा सकेंगे। ये बात ब्रिटेन के नागरिकों के लिये शुश करने वाली नहीं थी। आगे चलकर देश में आने का तरीका व्यक्ति की नागरिकता नहीं बल्कि अनुभव पर निर्भर करेगा, जिसके चलते भारतीय और ईयू के नागरिक एक पायदान पर पहुंच जायेंगे।    



भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने, जॉनसन को मुबारकबाद देने औऱ भारत आने का न्यौता देने में देर नही की। 13 दिसंबर को उन्होने ट्वीट किया, “पीएम @borisjhonson को सत्ता में बड़ी जीत के सथ वापसी के लिये बहुत मुबारक। मैं उन्हे शुभकामनाऐं देता हूं, औऱ भारत-यूके रिश्तों पर साथ काम करने की आशा करता हूं।” जॉनसन 25 सालों से मरीना व्हीलर से शादीशुदा हैं, मरीना के माता पिता भारतीय मूल के हैं। जॉनसन के जल्द ही अपने आधिकारिक दौरे पर भारत आने की उम्मीद है। 



ब्रिटेन में पहली बार, हाउस ऑफ कॉम्नस में 15 भारतीय मूल के सांसद हैं, जिनमे से 7 कन्सर्वेटिव पार्टी के हैं। देश के 1.5 मिलियन भारतीय मूल के लोग ज्यादातर लेबर पार्टी के समर्थक माने जाते रहे हैं। लेकिन, कॉर्बिन के कश्मीर पर रवैये के कारण ये समुदाय पार्टी से अलग हो गया। कन्सर्वोटिव फ्रेंड्स ऑफ इंडिया के अध्यक्ष, टोरी पीयर का कहना है कि, “भारतीय मूल के लोगों ने बड़ी संख्या में जॉनसन के लिये वोट किया है।कश्मीर पर लेबर पार्टी की नीति ने इन वोटरों को हमारे पक्ष में एकजुट कर दिया।"



लेबर पार्टी को लेकर भारत के विदेश मंत्रालय, ब्रिटेन में मौजूद भारतीयों के संगठनों और भारतीय उच्च आयोग ने ठंडी प्रतिक्रिया दी थी। उच्चायोग ने लेबर पार्टी के सांसदो, समर्थकों के लिये होने वाले भोज को भी रद्द कर दिया था। वहीं 29 सितंबर को भारत दिवस पर, भारतीय उच्चायोग औऱ भारतीय मूल के लोगों के संगठनों द्वारा आयोजित समारोह में भी लेबर पार्टी के नेताओँ को निमंत्रण नही था। इन सभी घटनाओँ का संदेश साफ था।



ब्रिटेन, ईयू में काफी देर से शामिल हुआ, और अब सबसे पहले निकलने वाला देश भी बन जायेगा। पूर्व प्रधानमंत्री, डेविड कैमरून, जिनके कार्यकाल में ब्रेकिस्ट पर जनमत संग्रह हुआ था, इसके समर्थन में कामयाबी हासिल न कर पाने पर दुखी हैं। जानकारों की राय में, देश के राजनेताओँ के दूरदर्शी न होने का खामियाजा ब्रिटेन को भुगतना पड़ सकता है और इसके कारण ग्रेट ब्रिटेन के सिमट कर केवल इंग्लैंड बन जाने का खतरा है।  

 


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