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'कोविड-19 पर दक्षिण एशियाई देशों को भारतीय पेशकश विमर्श बदलने के चीन के प्रयास का जवाब' - कोविड-19 पर दक्षिण एशियाई देश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 मार्च को दक्षेस देशों द्वारा कोरोना वायरस से निपटने के लिये संयुक्त रणनीति तैयार करने का प्रस्ताव दिया था. पाकिस्तान को छोड़कर अन्य सभी सदस्य देशों ने इस प्रस्ताव का फौरन समर्थन किया था. कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिये दक्षिण एशियाई देशों के लिए भारतीय पेशकश चीन द्वारा इस जानलेवा बीमारी पर विमर्श को बदलने के प्रयासों का प्रभावी जवाब है. अमेरिका के एक थिंक-टैंक से जुड़े विशेषज्ञ की तरफ से यह राय व्यक्त की गई है. पढ़ें पूरी खबर...

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प्रतीकात्मक चित्र
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Published : Apr 4, 2020, 11:50 PM IST

वाशिंगटन : कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिये दक्षिण एशियाई देशों के लिए भारतीय पेशकश चीन द्वारा इस जानलेवा बीमारी पर विमर्श को बदलने के प्रयासों का प्रभावी जवाब है. अमेरिका के एक थिंक-टैंक से जुड़े विशेषज्ञ की तरफ से यह राय व्यक्त की गई है.

हडसन इंस्टीट्यूट में इंडिया इनिशिएटिव की निदेशक अपर्णा पांडे ने यह टिप्पणी शुक्रवार को एक ऑनलाइन चर्चा के दौरान की. इस चर्चा का विषय चीन द्वारा कोविड-19 पर विमर्श को बदलने के प्रयास और दुनिया भर के देशों की इस महत्वपूर्ण स्वास्थ्य संकट पर प्रतिक्रिया थी.

पांडे ने कहा, 'चीन ने दक्षिण एशिया में समर्थन हासिल करने के लिए चिकित्सा दलों, जांच किट भेजने और उपकरण देने तथा अस्पतालों के निर्माण की पेशकश जैसे लुभावने प्रस्ताव दे रहा है. हालांकि इसका नतीजा मिलाजुला रहा है.'

भारत द्वारा की गई क्षेत्रीय दक्षिण एशियाई प्रतिक्रिया की पेशकश बीजिंग द्वारा विमर्श को बदलने के प्रयासों का एक प्रभावी जवाब है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 मार्च को दक्षेस देशों द्वारा कोरोना वायरस से निपटने के लिये संयुक्त रणनीति तैयार करने का प्रस्ताव दिया था. पाकिस्तान को छोड़कर अन्य सभी सदस्य देशों ने इस प्रस्ताव का फौरन समर्थन किया था.

दक्षेस देशों से दुनिया के सामने उदाहरण पेश करने का आह्वान करते हुए मोदी ने आठ सदस्यों वाले इस क्षेत्रीय समूह के नेताओं के सामने वीडियो कॉन्फ्रेंसिग से हुई चर्चा में अपनी बात रखी. इस दौरान उन्होंने कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिये मजबूत रणनीति बनाने को कहा था.

पांडे के मुताबिक पाकिस्तान और श्रीलंका काफी हद तक चीन द्वारा दिखाई जाने वाली उदारता पर निर्भर हैं खास तौर पर बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) के तहत और बीजिंग द्वारा की जाने वाली पेशकशों को सहर्ष स्वीकर करते हैं और उन पर प्रतिक्रिया देते हैं.

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के लिए चीन के साथ रणनीतिक संबंधों की प्राथमिकता उसके अपने लोगों के स्वास्थ्य समेत किसी भी दूसरी चीज के मुकाबले ज्यादा है.

पाकिस्तान ने इस महामारी के मुख्य केंद्र चीन के वुहान शहर से अपने नागरिकों और छात्रों को निकालने से भी इनकार कर दिया था. इसी तरह ईरान ने भी चीन के लिए अपनी हवाई सेवाओं को बंद नहीं किया था.

पांडे ने कहा कि पाकिस्तानी अधिकारियों ने वायरस की उत्पत्ति को लेकर साजिश की आशंका भी जाहिर की थी और अमेरिका व ब्रिटेन पर आरोप लगाया था हालांकि चीन को कभी भी जिम्मेदार नहीं ठहराया.

उन्होंने कहा कि श्रीलंका भी चीन से अरबों डॉलर के कर्ज के बोझ तले दबा है.

पांडे ने कहा, 'चीन की सीधी आलोचना से बचते हुए भारत ने चीन द्वारा दिए जाने वाले किसी भी लुभावने प्रस्ताव की काट के तौर पर मालदीव और नेपाल में समन्वित क्षेत्रीय प्रयास के जरिये पृथक वास केंद्र बनाने और दक्षेस कोविड फंड बनाने की बात कही, जिसमें भारत की तरफ से एक करोड़ अमेरिकी डॉलर का योगदान किया जाएगा और अन्य देश भी रकम और अन्य सहायता की पेशकश कर सकते हैं.'

भारत ने किसी भी क्षेत्रीय देश को जरूरत पड़ने पर सहायता पहुंचाने के लिये नौसेना के दो जहाजों को तैनात रखा है.

हडसन इंस्टीट्यूट की इस विद्वान ने कहा कि भारत और चीन की प्रतिक्रिया में व्यापक अंतर है जैसा कि एक लोकतांत्रिक और एक निरंकुश देश के बीच होगा.

उन्होंने हालांकि कहा कि समुचित और विस्तृत योजना के आभाव में लागू किये गए बंद ने थोड़ी परेशानी खड़ी की हैं.

पांडे ने कहा, 'हालांकि इसके लिये योजना की कमी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है न कि गलत मंशा को. राज्यों को प्रवासी संकट का अनुमान नहीं था और इसलिए इससे निपटने में उन्हें कुछ दिन जूझना पड़ा. यह हालांकि सिर्फ भारत में ही नहीं हुआ बल्कि कई देशों में लोग जहां बंद का सामना कर रहे थे वहां ऐसी मुश्किलें आईं.

वाशिंगटन : कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिये दक्षिण एशियाई देशों के लिए भारतीय पेशकश चीन द्वारा इस जानलेवा बीमारी पर विमर्श को बदलने के प्रयासों का प्रभावी जवाब है. अमेरिका के एक थिंक-टैंक से जुड़े विशेषज्ञ की तरफ से यह राय व्यक्त की गई है.

हडसन इंस्टीट्यूट में इंडिया इनिशिएटिव की निदेशक अपर्णा पांडे ने यह टिप्पणी शुक्रवार को एक ऑनलाइन चर्चा के दौरान की. इस चर्चा का विषय चीन द्वारा कोविड-19 पर विमर्श को बदलने के प्रयास और दुनिया भर के देशों की इस महत्वपूर्ण स्वास्थ्य संकट पर प्रतिक्रिया थी.

पांडे ने कहा, 'चीन ने दक्षिण एशिया में समर्थन हासिल करने के लिए चिकित्सा दलों, जांच किट भेजने और उपकरण देने तथा अस्पतालों के निर्माण की पेशकश जैसे लुभावने प्रस्ताव दे रहा है. हालांकि इसका नतीजा मिलाजुला रहा है.'

भारत द्वारा की गई क्षेत्रीय दक्षिण एशियाई प्रतिक्रिया की पेशकश बीजिंग द्वारा विमर्श को बदलने के प्रयासों का एक प्रभावी जवाब है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 मार्च को दक्षेस देशों द्वारा कोरोना वायरस से निपटने के लिये संयुक्त रणनीति तैयार करने का प्रस्ताव दिया था. पाकिस्तान को छोड़कर अन्य सभी सदस्य देशों ने इस प्रस्ताव का फौरन समर्थन किया था.

दक्षेस देशों से दुनिया के सामने उदाहरण पेश करने का आह्वान करते हुए मोदी ने आठ सदस्यों वाले इस क्षेत्रीय समूह के नेताओं के सामने वीडियो कॉन्फ्रेंसिग से हुई चर्चा में अपनी बात रखी. इस दौरान उन्होंने कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिये मजबूत रणनीति बनाने को कहा था.

पांडे के मुताबिक पाकिस्तान और श्रीलंका काफी हद तक चीन द्वारा दिखाई जाने वाली उदारता पर निर्भर हैं खास तौर पर बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) के तहत और बीजिंग द्वारा की जाने वाली पेशकशों को सहर्ष स्वीकर करते हैं और उन पर प्रतिक्रिया देते हैं.

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के लिए चीन के साथ रणनीतिक संबंधों की प्राथमिकता उसके अपने लोगों के स्वास्थ्य समेत किसी भी दूसरी चीज के मुकाबले ज्यादा है.

पाकिस्तान ने इस महामारी के मुख्य केंद्र चीन के वुहान शहर से अपने नागरिकों और छात्रों को निकालने से भी इनकार कर दिया था. इसी तरह ईरान ने भी चीन के लिए अपनी हवाई सेवाओं को बंद नहीं किया था.

पांडे ने कहा कि पाकिस्तानी अधिकारियों ने वायरस की उत्पत्ति को लेकर साजिश की आशंका भी जाहिर की थी और अमेरिका व ब्रिटेन पर आरोप लगाया था हालांकि चीन को कभी भी जिम्मेदार नहीं ठहराया.

उन्होंने कहा कि श्रीलंका भी चीन से अरबों डॉलर के कर्ज के बोझ तले दबा है.

पांडे ने कहा, 'चीन की सीधी आलोचना से बचते हुए भारत ने चीन द्वारा दिए जाने वाले किसी भी लुभावने प्रस्ताव की काट के तौर पर मालदीव और नेपाल में समन्वित क्षेत्रीय प्रयास के जरिये पृथक वास केंद्र बनाने और दक्षेस कोविड फंड बनाने की बात कही, जिसमें भारत की तरफ से एक करोड़ अमेरिकी डॉलर का योगदान किया जाएगा और अन्य देश भी रकम और अन्य सहायता की पेशकश कर सकते हैं.'

भारत ने किसी भी क्षेत्रीय देश को जरूरत पड़ने पर सहायता पहुंचाने के लिये नौसेना के दो जहाजों को तैनात रखा है.

हडसन इंस्टीट्यूट की इस विद्वान ने कहा कि भारत और चीन की प्रतिक्रिया में व्यापक अंतर है जैसा कि एक लोकतांत्रिक और एक निरंकुश देश के बीच होगा.

उन्होंने हालांकि कहा कि समुचित और विस्तृत योजना के आभाव में लागू किये गए बंद ने थोड़ी परेशानी खड़ी की हैं.

पांडे ने कहा, 'हालांकि इसके लिये योजना की कमी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है न कि गलत मंशा को. राज्यों को प्रवासी संकट का अनुमान नहीं था और इसलिए इससे निपटने में उन्हें कुछ दिन जूझना पड़ा. यह हालांकि सिर्फ भारत में ही नहीं हुआ बल्कि कई देशों में लोग जहां बंद का सामना कर रहे थे वहां ऐसी मुश्किलें आईं.

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