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नोएडा: रोटी बैंक के जरिए प्रवासी मजदूरों की भूख मिटाने में जुटी हुई हैं ये महिलाएं

ग्रेटर नोएडा में एल्डिको ग्रीन मिडोज के नाम से बनी सोसायटी में करीब 5 से 8 हजार परिवार रहते हैं. लॉकडाउन में कई किलोमीटर पैदल चल रहे प्रवासी मजदूरों की परेशानी देख कर इस सोसायटी की महिलाओं ने रोटी बैंक बनाने का फैसला किया. तय किया गया कि सभी महिलाएं अपने-अपने घरों से प्रति परिवार 6 रोटियां प्रवासी मजदूरों को देंगी.

roti bank for migrant workers
प्रवासी मजदूरों के लिए रोटी बैंक
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Published : May 29, 2020, 7:41 PM IST

नई दिल्ली/नोएडा: कोरोना वायरस के कारण लगाए गए लॉकडाउन में काम बंद होने की वजह से प्रवासी मजदूर खाने के लिए परेशानी झेल रहे हैं. ऐसे हालात में आम लोग इन प्रवासियों की मदद के लिए हाथ बढ़ा रहे हैं. इसी कड़ी में ग्रेटर नोएडा में एक सोसायटी में रहने वाली सभी महिलाओं ने मिलकर एक रोटी बैंक बनाया है. जिसमें सभी घरों से रोटी तैयार करके प्राधिकरण और सामाजिक कार्यकर्ताओं के माध्यम से जरूरतमंद प्रवासी मजदूरों को पहुंचाई जाती है.

महिलाओं ने शुरू किया रोटी बैंक




रोजाना हर घर से तैयार कर दी जाती है रोटियां


ग्रेटर नोएडा में एल्डिको ग्रीन मीडोज के नाम से बनी सोसायटी में करीब 5 से 8 हजार परिवार रहते है. लॉकडाउन में कई किलोमीटर पैदल चल रहे प्रवासी मजदूरों की परेशानी देख कर इस सोसायटी की महिलाओं ने रोटी बैंक बनाने का फैसला किया. तय किया गया कि सभी महिलाएं अपने-अपने घरों से प्रति परिवार 6 रोटियां प्रवासी मजदूरों को देंगी. जिसमें उन्होंने प्राधिकरण और सामाजिक कार्यकर्ता से बात कर उनसे भी मदद ली.

रोटी बैंक का विचार हाई टेक सिटी में सोशल मीडिया के जरिए देख कर ही शुरू किया गया. लॉकडाउन 2.0 के बाद से अब तक हजारों की संख्या में जरूरतमंदों को रोटी पहुंचवाने का काम इन महिलाओं की ओर से बनाए गए रोटी बैंक ने किया है.



इस तरह शुरू होता है रोटी बैंक का काम


इन महिलाओं का तरीका भी पूरा सिस्टम से होता है. सभी महिलाएं अपने-अपने घरों में 11 बजे के करीब रोटी तैयार करती है. जिसके बाद गाड़ी से एक व्यक्ति बॉक्स लेकर घरों तक जाता है. घंटी बजाता है और महिला बॉक्स में रोटी रख देती है. इसके लिए बकायदा महिलाओं ने सोसाइटी को जॉन में बांटकर खुद को ग्रुप में बांटा है. पूरी सोसाइटी से खाना इकट्ठा करने के बाद बॉक्स को 12 बजे तक मुख्य गेट पर पहुंचाया जाता है. जहां से इनकी एक और टीम आती है जो जरूरतमंद लोगों तक खाना पहुंचाती है.

सोसायटी के हर घर से रोटी इकट्ठा करने का काम सोसायटी के ही कर्मचारी करते है. उसके बाद सभी रोटियों के पैकेट प्राधिकरण और सामाजिक कार्यकर्ता को दे दिए जाते हैं. जिसके बाद वो किचन सेंटर या खुद की बनाई गई किचन से सब्जी पैक कर इन रोटियों के साथ जिले में रहने वाले जरूरतमंद और प्रवासियों को खिलाते हैं.

नई दिल्ली/नोएडा: कोरोना वायरस के कारण लगाए गए लॉकडाउन में काम बंद होने की वजह से प्रवासी मजदूर खाने के लिए परेशानी झेल रहे हैं. ऐसे हालात में आम लोग इन प्रवासियों की मदद के लिए हाथ बढ़ा रहे हैं. इसी कड़ी में ग्रेटर नोएडा में एक सोसायटी में रहने वाली सभी महिलाओं ने मिलकर एक रोटी बैंक बनाया है. जिसमें सभी घरों से रोटी तैयार करके प्राधिकरण और सामाजिक कार्यकर्ताओं के माध्यम से जरूरतमंद प्रवासी मजदूरों को पहुंचाई जाती है.

महिलाओं ने शुरू किया रोटी बैंक




रोजाना हर घर से तैयार कर दी जाती है रोटियां


ग्रेटर नोएडा में एल्डिको ग्रीन मीडोज के नाम से बनी सोसायटी में करीब 5 से 8 हजार परिवार रहते है. लॉकडाउन में कई किलोमीटर पैदल चल रहे प्रवासी मजदूरों की परेशानी देख कर इस सोसायटी की महिलाओं ने रोटी बैंक बनाने का फैसला किया. तय किया गया कि सभी महिलाएं अपने-अपने घरों से प्रति परिवार 6 रोटियां प्रवासी मजदूरों को देंगी. जिसमें उन्होंने प्राधिकरण और सामाजिक कार्यकर्ता से बात कर उनसे भी मदद ली.

रोटी बैंक का विचार हाई टेक सिटी में सोशल मीडिया के जरिए देख कर ही शुरू किया गया. लॉकडाउन 2.0 के बाद से अब तक हजारों की संख्या में जरूरतमंदों को रोटी पहुंचवाने का काम इन महिलाओं की ओर से बनाए गए रोटी बैंक ने किया है.



इस तरह शुरू होता है रोटी बैंक का काम


इन महिलाओं का तरीका भी पूरा सिस्टम से होता है. सभी महिलाएं अपने-अपने घरों में 11 बजे के करीब रोटी तैयार करती है. जिसके बाद गाड़ी से एक व्यक्ति बॉक्स लेकर घरों तक जाता है. घंटी बजाता है और महिला बॉक्स में रोटी रख देती है. इसके लिए बकायदा महिलाओं ने सोसाइटी को जॉन में बांटकर खुद को ग्रुप में बांटा है. पूरी सोसाइटी से खाना इकट्ठा करने के बाद बॉक्स को 12 बजे तक मुख्य गेट पर पहुंचाया जाता है. जहां से इनकी एक और टीम आती है जो जरूरतमंद लोगों तक खाना पहुंचाती है.

सोसायटी के हर घर से रोटी इकट्ठा करने का काम सोसायटी के ही कर्मचारी करते है. उसके बाद सभी रोटियों के पैकेट प्राधिकरण और सामाजिक कार्यकर्ता को दे दिए जाते हैं. जिसके बाद वो किचन सेंटर या खुद की बनाई गई किचन से सब्जी पैक कर इन रोटियों के साथ जिले में रहने वाले जरूरतमंद और प्रवासियों को खिलाते हैं.

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