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ट्रकों में भरकर प्रवासी मजदूरों को आश्रय स्थल पहुंचा रही गाजियाबाद पुलिस

लॉकडाउन के कारण गाजियाबाद से सैकड़ों प्रवासी मजदूर अभी अपने गृह राज्य जाने के लिए पैदल ही निकल रहे हैं. वहीं करीब 30 से 50 किलोमीटर पैदल चलने के बाद इन्हें वापस गाजियाबाद भेजा जा रहा है.

labours walks to home due to lockdown and Eating problem
प्रवासी मजदूर
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Published : May 9, 2020, 6:29 PM IST

नई दिल्ली/गाजियाबादः राजधानी से सटे गाजियाबाद में मजदूरों की मजबूरी की तस्वीर आपके रोंगटे खड़े कर देगी. जो प्रवासी मजदूर गाजियाबाद की सीमा से पैदल आ रहे हैं, उन्हें करीब 30 से 50 किलोमीटर चलने के बाद दादरी में रोक कर वापस गाजियाबाद भेजा जा रहा है. गाजियाबाद पुलिस इन प्रवासी मजदूरों को ट्रकों में भरकर आश्रय स्थलों में पहुंचा रही है.

पैदल घर जाने को मजबूर हैं प्रवासी मजदूर

ऐसे ही कुछ ट्रक ईटीवी भारत की टीम को रास्ते में दिखाई दिए, जिनमें ठूंस-ठूंस कर प्रवासी मजदूर भरे हुए थे. इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पालन होना तो नामुमकिन है. सभी की एक ही कहानी है कि खाना नहीं मिला. इसलिए पैदल ही अपने घर निकल रहे हैं. इन मजदूरों का कहना है कि मरना है तो गांव में जाकर मरेंगे.

जान हथेली पर लिए घर को निकले इन प्रवासी मजदूरों की सिर्फ एक ही मांग है कि इन्हें इनके घर वापस भेज दिया जाए. इन्हें खाने-पीने की व्यवस्था नहीं होने से काफी परेशानी हो रही है. आश्रय स्थलों पर मजदूरों को प्रेरित किया जा रहा है कि यह वापस घर जाने की जिद ना करें. क्योंकि धीरे-धीरे हालात सामान्य हो रहे हैं और इंडस्ट्री भी खुलने वाली है. बावजूद मजदूरों की जिद सरकार के लिए मुश्किल बन रही है.

नई दिल्ली/गाजियाबादः राजधानी से सटे गाजियाबाद में मजदूरों की मजबूरी की तस्वीर आपके रोंगटे खड़े कर देगी. जो प्रवासी मजदूर गाजियाबाद की सीमा से पैदल आ रहे हैं, उन्हें करीब 30 से 50 किलोमीटर चलने के बाद दादरी में रोक कर वापस गाजियाबाद भेजा जा रहा है. गाजियाबाद पुलिस इन प्रवासी मजदूरों को ट्रकों में भरकर आश्रय स्थलों में पहुंचा रही है.

पैदल घर जाने को मजबूर हैं प्रवासी मजदूर

ऐसे ही कुछ ट्रक ईटीवी भारत की टीम को रास्ते में दिखाई दिए, जिनमें ठूंस-ठूंस कर प्रवासी मजदूर भरे हुए थे. इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पालन होना तो नामुमकिन है. सभी की एक ही कहानी है कि खाना नहीं मिला. इसलिए पैदल ही अपने घर निकल रहे हैं. इन मजदूरों का कहना है कि मरना है तो गांव में जाकर मरेंगे.

जान हथेली पर लिए घर को निकले इन प्रवासी मजदूरों की सिर्फ एक ही मांग है कि इन्हें इनके घर वापस भेज दिया जाए. इन्हें खाने-पीने की व्यवस्था नहीं होने से काफी परेशानी हो रही है. आश्रय स्थलों पर मजदूरों को प्रेरित किया जा रहा है कि यह वापस घर जाने की जिद ना करें. क्योंकि धीरे-धीरे हालात सामान्य हो रहे हैं और इंडस्ट्री भी खुलने वाली है. बावजूद मजदूरों की जिद सरकार के लिए मुश्किल बन रही है.

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