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सब कुछ छोड़ कश्मीर से ले आए थे उर्दू की गीता, ऐलान हो रहा था- 'कश्मीरी पंडित भागो, वरना मरने के लिए तैयार हो जाओ'

The Kashmir Files फिल्म रिलीज हाेने के बाद कश्मीरी पंडिताें के विस्थापन का मुद्दा एक बार फिर से गरमाने लगा है. गाजियाबाद में कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandit) के तकरीबन ढाई हजार परिवार रहते हैं. पलायन के समय कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandit) का बहुत कुछ कश्मीर में ही रह गया. इनमें एक महाराज कृष्ण काैल भी हैं. कश्मीर में उनकी तीन-तीन काेठियां थीं, कई बाग थे. सब छूट गया, लेकिन वाे अपने साथ उर्दू में लिखी (Gita written in Urdu ) गीता लाने में सफल रहे. आज जब पलायन का मुद्दा गरमा रहा है ताे काैल कैसे उस वक्त काे याद करते हैं, जानते हैं.

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Published : Apr 1, 2022, 4:52 PM IST

Updated : Apr 1, 2022, 6:51 PM IST

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नई दिल्ली/गाजियाबादः गाजियाबाद के शालीमार गार्डन इलाके में माता खीर भवानी (Temple of Mata Kheer Bhavani in Ghaziabad) का मंदिर है. मंदिर कश्मीरी पंडितों द्वारा बनवाया गया था. मंदिर के नज़दीक के इलाकाें में बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित रहते हैं. मंदिर से तकरीबन डेढ़ किलोमीटर दूर कश्मीरी पंडित (kashmiri pandit krishna kaul) महाराज कृष्ण काैल का घर है. कृष्ण कौल लंबे समय से समाजसेवा से जुड़े है. कश्मीर में हालात अमानवीय और बदतर हुए तब हजारों कश्मीरी पंडितों ने जान बचाने के लिए पलायन किया था.

उस रात महाराज कृष्ण काैल भी अपनी परिवार को एक ट्रक में छिपाकर जिसमें तकरीबन 10 परिवार के 35 से अधिक लोग थे बाहर निकले थे. काैल की कश्मीर में तीन कोठियां और बाग थे. अच्छे स्तर का व्यापार भी था, लेकिन जब हालात बिगड़े तो और जान बचाकर निकलना पड़ा तब वे सोने की जेवर, पैसे, कीमती सामान सब कुछ छोड़ आए. सिर्फ उर्दू में लिखी गीत (Gita written in Urdu)वह अपने साथ ले आए थे.

गाजियाबाद के कृष्ण काैल के पास उर्दू में लिखी गीता है.

कृष्ण कौल बताते हैं कि हालात बेहत खराब हो गए थे. हर जगह ऐलान हो रहे थे, "कश्मीरी पंडित भागो, वरना मरने के लिए तैयार हो जाओ." उस वक़्त वह अपने साथ उर्दू में लिखी गीता ले आए थे. काैल उर्दू में लिखी गीता को अपनी रूह (आत्मा) मानते हैं.

इसे भी पढ़ेंः 'द कश्मीर फाइल्स' में अनुपम खेर पर डेथ सीन शूट करते वक्त रो पड़े थे विवेक अग्निहोत्री, VIDEO

काैल कहते हैं कि अगर उर्दू की गीता को कश्मीर में छोड़ आते तो उनके प्राण कश्मीर में ही रह जाते, क्योंकि वह बिना गीता पढ़े नहीं रह सकते हैं. काैल कहते हैं कि भगवदगीता और उनका 1960 से चोली दामन का साथ है.

वे बताते हैं कि कश्मीर के स्कूलों में उन्हें हिंदी नहीं पढ़ने दी जाती थी. स्कूल हिंदी का टीचर उपलब्ध नहीं कराते थे. उन्होंने उर्दू में ही स्कूल में पढ़ाई की और बाद में उर्दू में ग्रेजुएशन किया. काैल (kashmiri pandit krishna kail) बताते हैं कि उन्हें उर्दू पर अच्छी कमांड है. वे उर्दू में शायरी भी करते हैं. कृष्ण कौल बताते हैं कि दिल मोहम्मद साहब ने गीता को उर्दू में ट्रांसलेट किया है. गीता लाहौर में छपी है. बचपन में उनके मामा ने उन्हें उर्दू की गीता हरिद्वार से लाकर दी थी.

इसे भी पढ़ेंः अब UAE और सिंगापुर में रिलीज होगी 'द कश्मीर फाइल्स', जानें रिलीजिंग डेट

उन्हाेंने कहा कि दिल मोहम्मद साहब ने गीता का सबसे बेहतरीन ट्रांसलेशन किया है. आज तक कोई भी श्रीमद्भगवद्गीता का इतना बेहतरीन ट्रांसलेशन नहीं कर पाया है. कृष्ण कौल ने बताया कि उनके पास उर्दू में लिखी गीता (Gita written in Urdu) की दो कॉपियां थीं. एक कॉपी उन्होंने एक सूफी संत असदुल्लाह को दे दी थी. उर्दू में लिखी गीता (Gita written in Urdu) को पढ़ने में बेहद शांति और सुकून मिलता है. साथ ही कहीं ना कहीं कश्मीर में होने का भी एहसास होता है. महाराज कृष्ण काैल लंबे समय से समाज सेवा से जुड़े हुए हैं. उन्हाेंने अपने घर में ही छत पर एक छोटा सा मैरिज हॉल तैयार किया है. जाे गरीब लड़कियों की शादियां के लिए मुफ्त में देते हैं. काैल बताते हैं कि गीता से उन्होंने दूसरों के लिए जीना सीखा है.

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नई दिल्ली/गाजियाबादः गाजियाबाद के शालीमार गार्डन इलाके में माता खीर भवानी (Temple of Mata Kheer Bhavani in Ghaziabad) का मंदिर है. मंदिर कश्मीरी पंडितों द्वारा बनवाया गया था. मंदिर के नज़दीक के इलाकाें में बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित रहते हैं. मंदिर से तकरीबन डेढ़ किलोमीटर दूर कश्मीरी पंडित (kashmiri pandit krishna kaul) महाराज कृष्ण काैल का घर है. कृष्ण कौल लंबे समय से समाजसेवा से जुड़े है. कश्मीर में हालात अमानवीय और बदतर हुए तब हजारों कश्मीरी पंडितों ने जान बचाने के लिए पलायन किया था.

उस रात महाराज कृष्ण काैल भी अपनी परिवार को एक ट्रक में छिपाकर जिसमें तकरीबन 10 परिवार के 35 से अधिक लोग थे बाहर निकले थे. काैल की कश्मीर में तीन कोठियां और बाग थे. अच्छे स्तर का व्यापार भी था, लेकिन जब हालात बिगड़े तो और जान बचाकर निकलना पड़ा तब वे सोने की जेवर, पैसे, कीमती सामान सब कुछ छोड़ आए. सिर्फ उर्दू में लिखी गीत (Gita written in Urdu)वह अपने साथ ले आए थे.

गाजियाबाद के कृष्ण काैल के पास उर्दू में लिखी गीता है.

कृष्ण कौल बताते हैं कि हालात बेहत खराब हो गए थे. हर जगह ऐलान हो रहे थे, "कश्मीरी पंडित भागो, वरना मरने के लिए तैयार हो जाओ." उस वक़्त वह अपने साथ उर्दू में लिखी गीता ले आए थे. काैल उर्दू में लिखी गीता को अपनी रूह (आत्मा) मानते हैं.

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काैल कहते हैं कि अगर उर्दू की गीता को कश्मीर में छोड़ आते तो उनके प्राण कश्मीर में ही रह जाते, क्योंकि वह बिना गीता पढ़े नहीं रह सकते हैं. काैल कहते हैं कि भगवदगीता और उनका 1960 से चोली दामन का साथ है.

वे बताते हैं कि कश्मीर के स्कूलों में उन्हें हिंदी नहीं पढ़ने दी जाती थी. स्कूल हिंदी का टीचर उपलब्ध नहीं कराते थे. उन्होंने उर्दू में ही स्कूल में पढ़ाई की और बाद में उर्दू में ग्रेजुएशन किया. काैल (kashmiri pandit krishna kail) बताते हैं कि उन्हें उर्दू पर अच्छी कमांड है. वे उर्दू में शायरी भी करते हैं. कृष्ण कौल बताते हैं कि दिल मोहम्मद साहब ने गीता को उर्दू में ट्रांसलेट किया है. गीता लाहौर में छपी है. बचपन में उनके मामा ने उन्हें उर्दू की गीता हरिद्वार से लाकर दी थी.

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उन्हाेंने कहा कि दिल मोहम्मद साहब ने गीता का सबसे बेहतरीन ट्रांसलेशन किया है. आज तक कोई भी श्रीमद्भगवद्गीता का इतना बेहतरीन ट्रांसलेशन नहीं कर पाया है. कृष्ण कौल ने बताया कि उनके पास उर्दू में लिखी गीता (Gita written in Urdu) की दो कॉपियां थीं. एक कॉपी उन्होंने एक सूफी संत असदुल्लाह को दे दी थी. उर्दू में लिखी गीता (Gita written in Urdu) को पढ़ने में बेहद शांति और सुकून मिलता है. साथ ही कहीं ना कहीं कश्मीर में होने का भी एहसास होता है. महाराज कृष्ण काैल लंबे समय से समाज सेवा से जुड़े हुए हैं. उन्हाेंने अपने घर में ही छत पर एक छोटा सा मैरिज हॉल तैयार किया है. जाे गरीब लड़कियों की शादियां के लिए मुफ्त में देते हैं. काैल बताते हैं कि गीता से उन्होंने दूसरों के लिए जीना सीखा है.

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Last Updated : Apr 1, 2022, 6:51 PM IST
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