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कोरोना काल में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोग कैसे कर रहे गुजारा, देखें ग्राउंड रिपोर्ट - कोरोना वायरस संक्रमण

कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले लोग कैसे गुजारा कर रहे हैं. देखिए ग्राउंड रिपोर्ट.

ground report from Slum Area rajnagar
झुग्गी झोपड़ी से ग्राउंड रिपोर्ट
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Published : Jul 21, 2020, 9:54 AM IST

Updated : Jul 21, 2020, 10:08 AM IST

नई दिल्ली: कोरोना वायरस का संक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है. हालांकि इस बढ़ते संक्रमण के बीच भी कई व्यावसायिक गतिविधियों को इजाजत दे दी गई है. लेकिन असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के सामने आज भी रोजी-रोटी का संकट है. आलम ये है कि झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को दो जून की रोटी जुटाने में काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है.

झुग्गी झोपड़ी से ग्राउंड रिपोर्ट

महिलों को नहीं मिल रहा काम
ईटीवी भारत की टीम गाजियाबाद के राजनगर स्थित झुग्गी झोपड़ी में पहुंची तो पता चला कि यहां रहने वाले पुरुष दिहाड़ी मजदूर हैं जबकि महिलाएं घरों में झाड़ू पोछा करती हैं. अब कोरोना काल में महिलाओं को काम नहीं मिल पा रहा है. झुग्गी में रहने वाले सोनू बताते हैं कि इन दिनों काम ना के बराबर है. कूड़ा-कबाड़ा बीन कर वो सौ- डेढ़ सौ रुपये का इंतज़ाम कर लेते हैं. जिससे उनका परिवार बमुश्किल अपना पेट भरता है. सोनू के परिवार में सात सदस्य है और वो अकेले कमाने वाले हैं. लॉकडाउन से पहले दिहाड़ी मज़दूरी कर सोनू एक दिन में करीब 500 रुपये कमा लेते थे लेकिन कोरोना काल ने उनकी दिहाड़ी आधी से भी कम कर दी है.


केवल सोनू ही नहीं बल्कि झुग्गी बस्ती में रहने वाले अधिकतर परिवारों का यही हाल है. इसी झुग्गी में रहने वाली पूजा बताती हैं कि उनके परिवार में 9 सदस्य हैं. लॉकडाउन से पहले वह और उनके पति आसानी से अपने परिवार का पेट भर लिया करते थे लेकिन इन दिनों काम ना मिलने के कारण छोटे बच्चों के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना बहुत मुश्किल है. आलम ये है कि एक बच्चे ने ये कहा कि भैय्या अगर कल आना तो बहुत सारा आटा और चावल ले आना. जब कोई व्यक्ति झुग्गी बस्ती में जाता है तो वहां के छोटे बच्चे इस उम्मीद से घरों से बाहर आते हैं कि शायद कोई राशन बांटने आया हो.

नई दिल्ली: कोरोना वायरस का संक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है. हालांकि इस बढ़ते संक्रमण के बीच भी कई व्यावसायिक गतिविधियों को इजाजत दे दी गई है. लेकिन असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के सामने आज भी रोजी-रोटी का संकट है. आलम ये है कि झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को दो जून की रोटी जुटाने में काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है.

झुग्गी झोपड़ी से ग्राउंड रिपोर्ट

महिलों को नहीं मिल रहा काम
ईटीवी भारत की टीम गाजियाबाद के राजनगर स्थित झुग्गी झोपड़ी में पहुंची तो पता चला कि यहां रहने वाले पुरुष दिहाड़ी मजदूर हैं जबकि महिलाएं घरों में झाड़ू पोछा करती हैं. अब कोरोना काल में महिलाओं को काम नहीं मिल पा रहा है. झुग्गी में रहने वाले सोनू बताते हैं कि इन दिनों काम ना के बराबर है. कूड़ा-कबाड़ा बीन कर वो सौ- डेढ़ सौ रुपये का इंतज़ाम कर लेते हैं. जिससे उनका परिवार बमुश्किल अपना पेट भरता है. सोनू के परिवार में सात सदस्य है और वो अकेले कमाने वाले हैं. लॉकडाउन से पहले दिहाड़ी मज़दूरी कर सोनू एक दिन में करीब 500 रुपये कमा लेते थे लेकिन कोरोना काल ने उनकी दिहाड़ी आधी से भी कम कर दी है.


केवल सोनू ही नहीं बल्कि झुग्गी बस्ती में रहने वाले अधिकतर परिवारों का यही हाल है. इसी झुग्गी में रहने वाली पूजा बताती हैं कि उनके परिवार में 9 सदस्य हैं. लॉकडाउन से पहले वह और उनके पति आसानी से अपने परिवार का पेट भर लिया करते थे लेकिन इन दिनों काम ना मिलने के कारण छोटे बच्चों के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना बहुत मुश्किल है. आलम ये है कि एक बच्चे ने ये कहा कि भैय्या अगर कल आना तो बहुत सारा आटा और चावल ले आना. जब कोई व्यक्ति झुग्गी बस्ती में जाता है तो वहां के छोटे बच्चे इस उम्मीद से घरों से बाहर आते हैं कि शायद कोई राशन बांटने आया हो.

Last Updated : Jul 21, 2020, 10:08 AM IST
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