नई दिल्ली/फरीदाबाद: स्ट्रीट वेंडर पॉलिसी को लेकर नगर निगम ने निजी एजेंसी के साथ पांच साल पहले किए एमओयू को रद्द कर दिया है. शुक्रवार को निगम कमिश्नर ने इस बारे में आदेश जारी किए. निगम कमिश्नर का कहना है कि कंपनी समझौते की शर्तों के अनुसार काम नहीं कर रही थी. लगातार शिकायत मिलने से निगम की छवि खराब हो रही थी.
इसके अलावा कई ऐसे भी मामले सामने आए थे, इसमें कंपनी द्वारा रेहड़ी-पटरी वालों से पैसे तो वसूल लिए गए, लेकिन उनको जगह नहीं दी गई. इसके अलावा कंपनी ने पैसे लेकर नगर निगम की ग्रीन बेल्ट पर ही दुकानें अलॉट कर दी.
शुरुआत से विवादों में रही स्ट्रीट वेंडर पॉलिसी
स्ट्रीट वेंडर पॉलिसी शुरुआत से ही विवादों में घिरी रही. इस पॉलिसी को लाने का उद्देश्य था कि जगह-जगह घूमने वाले रेहड़ी पटरी वालों को एक स्थाई जगह दे दी जाए. इससे सड़कों और मार्केट में जाम की स्थिति पैदा न हो. वहीं, नगर निगम को राजस्व प्राप्त हो सके.
योजना को लागू करने के लिए दिल्ली की एजेंसी को ठेका दिया गया. सबसे पहले वार्ड-32 में सेक्टर 15 मार्केट में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर स्ट्रीट वेंडर जोन बनाया गया, लेकिन वहां पर मार्केट के दुकानदार निगम के विरोध में आ गए. इसके बाद मामला कोर्ट में चला गया, जिससे पूरी पॉलिसी पर रोक लग गई.
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NIT-3 में कंपनी ग्रीन बेल्ट पर करने लगी मार्केट विकसित
कोर्ट में मामला जाने के बाद जहां नगर निगम ने अपने कदम पीछे खींच लिए. वहीं, कंपनी ने स्ट्रीट वेंडर पॉलिसी की आड़ में एनआईटी-तीन में चिमनीबाई धर्मशाला के पास ग्रीन बेल्ट पर अपनी मार्केट विकसित करने लगी. पैसे लेकर दुकानदारों को अपने डिजाइन किए गए खोखे देने लगी.
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नोटिस के बाद भी एजेंसी करती रही मनमानी
इस बात की शिकायत जब तत्कालीन नगर निगम कमिश्नर सोनल गोयल के पास पहुंची. तो उन्होंने एजेंसी को नोटिस जारी करके जवाब मांगा. इसमें पूछा गया कि वो निगम की बिना अनुमति के कैसे स्ट्रीट वेंडर जोन बना सकती है. आरोप है कि नोटिस देने के बाद भी एजेंसी अपनी मनमानी करती रही.
अब निगम कमिश्नर यशपाल यादव ने पूरे मामले को देखते हुए एजेंसी के साथ हुए एमओयू को रद्द कर दिया है. उन्होंने ने बताया कि स्ट्रीट वेंडिंग जोन को लेकर निजी एजेंसी के साथ नगर निगम का कोई लेना-देना नहीं है. जो भी एजेंसी के साथ किसी भी तरह का व्यवहार करता है. वो उसके लिए खुद जिम्मेदार होगा.