नई दिल्ली : बाबा साहेब भीमराव आम्बेडकर की आज 65वीं पुण्यतिथि है. उनका जन्म 14 अप्रैल साल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में हुआ था. इस शहर का नाम साल 2003 में बदल कर डॉ. आंबेडकर नगर कर दिया गया. बाबासाहेब अपने माता-पिता की 14वीं और आखिरी संतान थे. वह बचपन से ही मेधावी और संघर्षशील थे. उनका पूरा नाम भीमराव रामजी आम्बेडकर था. आम्बेडकर सरनेम बाबा साहेब को उनके ब्राह्मण गुरु महादेव आंबेडकर ने दिया था, जो उनसे बहुत प्रेम करते थे. उनके कहने पर बाबा साहेब ने अपने नाम से सकपाल हटाकर आंबेडकर जोड़ लिया, जो उनके गांव के नाम "अंबावडे" पर आधारित था.
भारत के प्रथम कानून मंत्री आम्बेडकर की प्राथमिक शिक्षा सतारा नगर के गवर्नमेंट हाईस्कूल में हुई. यहां उन्हें अंग्रेजी की पहली कक्षा में प्रवेश मिला. 1897 में उनका परिवार मुम्बई चला गया, जहां से उनकी आगे की स्कूली पढ़ाई पूरी हुई. बाबा साहेब की उच्च शिक्षा का आरंभ बॉम्बे विश्वविद्यालय से हुआ, जहां से उन्होंने स्नातक में डिग्री हासिल की. सन 1913 में आंबेडकर अमेरिका चले गए और वहां की कोलंबिया विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया.
अमेरिका के बाद वो लंदन गए और वहां लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में "इवोल्यूशन ऑफ प्रोविन्शियल फाइनेंस इन ब्रिटिश इंडिया" (Evolution of provincial finance in british india) टॉपिक पर शोध किया, जिसके लिए अर्थशास्त्र में उन्हें पीएचडी की डिग्री मिली. लंदन में रहने के दौरान ही उन्होंने लॉ की पढ़ाई भी शुरू कर दी. साल 1922 में वे दोबारा लंदन गए और एम.एस.सी की डिग्री हासिल की. इसके बाद भी उन्होंने शिक्षा जारी रखी और कुल चार पीएचडी डिग्रियां हासिल कीं. आपको जान कर हैरानी होगी कि आंबेडकर साहेब अपने दौर के सभी राजनेताओं में सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे व्यक्ति थे.
उनका जन्म महाराष्ट्र की महार जाति से संबंधित एक हिंदू परिवार में हुआ था, जिसे तब एक निचली जाति माना जाता था. इस जाति के लोगों को 'अछूत' कहा जाता था. दलित परिवार से होने के कारण बचपन से ही जातिगत भेदभाव और छुआछूत के शिकार होते रहे आंबेडकर साहेब ने दलितों के उत्थान के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया. उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक " हू वर दी शूद्राज़" (ambedkar book who were the shudras) में दलितों की समस्याओं पर लेख लिखे. समानता के साथ आरक्षण की व्यवस्था की भी वकालत की और उन्हें समानता का अधिकार दिलाया.