नई दिल्ली: वित्त वर्ष 2022-23 की दिसंबर तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र और निजी खपत व्यय का प्रदर्शन अधिक आधार प्रभाव के कारण 'घटा हुआ' लग रहा है. मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने बुधवार को यह बात कही. नागेश्वरन के अनुसार पिछले तीन वित्त वर्षों के आंकड़ों में संशोधन के कारण जीडीपी वृद्धि का आधार बढ़ गया था.
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने मंगलवार को पिछले तीन वित्त वर्षों- 2019-20, 2020-21 और 2021-22 के लिए जीडीपी वृद्धि के आंकड़ों को संशोधित किया. इसके साथ ही 2022-23 के लिए जीडीपी का दूसरा अग्रिम अनुमान भी जारी किया. एनएसओ ने 2021-22 के लिए वृद्धि दर को 8.7 प्रतिशत से 0.40 प्रतिशत बढ़ाकर 9.1 प्रतिशत कर दिया गया है.
इसी तरह 2020-21 के लिए वृद्धि दर को ऊपर की ओर संशोधित करते हुए ऋणात्मक 6.6 प्रतिशत से ऋणात्मक 5.8 प्रतिशत कर दिया गया. वर्ष 2019-20 के लिए भी वृद्धि को संशोधित कर 3.7 प्रतिशत से बढ़ाकर 3.9 प्रतिशत कर दिया गया है. हालांकि, 2022-23 के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि के दूसरे अग्रिम अनुमान को सात प्रतिशत पर बरकरार रखा गया था. आंकड़ों से पता चला है कि अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में 1.1 प्रतिशत की कमी आई और निजी उपभोग व्यय घटकर 2.1 प्रतिशत रह गया.
नागेश्वरन ने कहा कि आंकड़ों में संशोधन के कारण आधार प्रभाव बढ़ गया. इस कारण विनिर्माण क्षेत्र और निजी उपभोग व्यय में कमी हुई. उन्होंने कहा कि यदि ऐसा नहीं हुआ होता तो अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में विनिर्माण 3.8 प्रतिशत की दर से और निजी उपभोग व्यय छह प्रतिशत की दर से बढ़ता. उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2022-23 की तीसरी तिमाही के लिए कल शाम जारी किए गए आंकड़ों को लेकर बहुत गलतफहमी है क्योंकि इसके साथ पिछले तीन वर्षों के आंकड़ों में संशोधन भी किया गया.
(पीटीआई-भाषा)