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कोविड 19: लॉकडाउन ने थामी भारत के आर्थिक विकास की रफ्तार

पहले से ही धीमी रफ्तार से बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार को वैश्विक महामारी कोरोना ने एक व्यापक धक्का दिया. वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने उद्योग धंधों पर अस्थायी ताला लगा दिया, जिसके फलस्वरूप देश ने आजादी के बाद से सबसे बड़ी मंदी को देखते हुए जीडीपी विकास दर में 23.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की.

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Published : Dec 29, 2020, 6:00 AM IST

कोविड 19: लॉकडाउन ने थामी भारत के आर्थिक विकास की रफ्तार
कोविड 19: लॉकडाउन ने थामी भारत के आर्थिक विकास की रफ्तार

हैदराबाद: कोरोना वायरस के बढ़ते प्रभाव के शुरुआती दौर में भी भारत की अर्थव्यवस्था बहुत अच्छी हालत में नहीं थी. वित्त वर्ष 19 की चौथी तिमाही से ही भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी गति खो चुका था. एक समय में तेजी से भागती भारतीय अर्थव्यवस्था 2008 के बाद से अपनी सबसे धीमी गति से बढ़ रहा था.

लेकिन कोरोना के बढ़ते प्रसार के बीच 25 मार्च को जहां महज चार घंटे की पूर्व सूचना के साथ देशव्यापी लॉकडाउन लगा दिया गया, उसने पूरे देश में एक उथल-पूथल की स्थिति बना दी, जिसका व्यापक असर अर्थव्यस्था पर पड़ा. भारतीय अर्थव्यवस्था इस महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित अर्थव्यवस्थाओं में से एक रही.

वित्तीय वर्ष 21 की पहली तिमाही में देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 23.9 फीसदी तक गिर गया, जो कि देश के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी गिरावट रही.

कोरोना की मार और देश की खराब वित्तीय स्थिति को देखते हुए विश्व बैंक, बार्कले, नोमुरा समेत तमाम रेटिंग एजेंसियों ने वित्त वर्ष 21 के लिए भारत की विकास दर अनुमान को गिरा दिया. देश ने विकास दरों में एक अभूतपूर्व गिरावट को महसूस किया. वहीं कुछ रेटिंग एजेंसियों ने देश को स्वतंत्रता के बाद अब तक की सबसे बुरी मंदी में फंसा बताया.

पूर्व सीईए अरविंद सुब्रमण्यन ने कहा कि भारत को इस आर्थिक संकट से उबरने के लिए 10 ट्रिलियन के राहत पैकेज की आवश्यकता होगी. उद्योगपति नारायणमूर्ति ने लॉकडाउन को लेकर कहा था कि यदि कुछ और दिन यह जारी रहता है तो, बीमारी से कहीं ज्यादा लोग भूख और गरीबी से मरेंगे.

वहीं आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने इसे स्वतंत्रता के बाद से सबसे बड़ा आर्थिक संकट बताया.

लॉकडाउन की घोषणा

24 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी ने 21 दिनों की अवधि के लिए उस दिन की मध्यरात्रि से देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की. लॉकडाउन के दौरान लोगों के घरों से बाहर निकलने पर रोक लगा दी गई. सिर्फ स्वास्थ्यकर्मी, पुलिस, पत्रकार, सफाईकर्मी और जरूरी सुविधाएं देने वालों को बाहर निकलने की अनुमति थी.

लॉकडाउन का अचानक ऐलान करने के लिए और लोगों को तैयारी का पर्याप्त समय न देने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना भी होती रही.

ये सेवाएं रही प्रतिबंधित

परिवहन सेवाओं - सड़क, हवाई और रेल, महानगरों में मेट्रो-लोकल ट्रेन को प्रतिबंधित कर दिया गया.

स्कूल-कॉलेज, औद्योगिक कारखाने, खेल, धार्मिक आयोजन, सरकारी दफ्तर, प्रायवेट कंपनियां, सिनेमा हॉल, धार्मिक स्थल, शॉपिंग मॉल बंद कर दिए गए.

इस दौरान काम करने का तरीका बदला. आईटी कंपनियों समेत कई कंपनियों ने वर्क फ्रॉम होम (घर से काम) का विकल्प चुना.

क्या खुला रहा

बैंक और एटीएम, पेट्रोल पंप, किराने, फल-सब्जी, दवाई की दुकान, फूड डिलिवरी जैसी सेवाएं जारी रहीं.

कोरोना का क्षेत्रवार प्रभाव

सीएमआईई की एक रिपोर्ट के अनुसार के अनुसार देश में बेरोजगारी दर जो मार्च में 6.7 फीसदी थी, अप्रैल में बढ़कर 26 फीसदी हो गई. देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान 14 करोड़ लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा. इसके अलावा भारी संख्या में लोगों ने वेतन में कटौती का भी सामना किया. एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 45 फीसदी भारतीय परिवारों ने पिछले साल की तुलना में आय में कमी की बात स्वीकारी.

प्रधानमंत्री मोदी ने 19 मार्च को व्यवसायों और उच्च आय वर्गों से यह आग्रह किया था कि वे अपने कर्मचारियों की आर्थिक आवश्यकताओं का ध्यान रखें. उन्होंने नियोक्ताओं से कहा कि वे कर्मचारियों के वेतन में कटौती न करें. साथ ही लोगों से अपील किया कि सकंट की इस घड़ी में अपने घरों में काम करने वाले लोगों की भी आर्थिक स्थिति का ख्याल रखें.

लॉकडाउन के बड़े प्रभाव के रूप में देश में आपूर्ति श्रृंखला भी बाधित हुई. हालांकि देश में आवश्यक सेवाओं और वस्तुओं की आपूर्ति जारी रही, फिर भी भारी संख्या में किसानों को अपनी फसलों को लेकर अनिश्चितता का सामना करना पड़ा.

ऑटोमोबाइल, स्टील, सीमेंट आदि देश की बड़ी विनिमार्ण कंपनियों को अपने अस्थायी तौर पर अपने उत्पादन पर रोक लगानी पड़ी, या फिर इसमें कमी लानी पड़ी. सार्वजनिक परिवहन, होटल, विमानन आदि उद्योग ने इस दौरान सर्वाधिक हानि उठाया.

लॉकडाउन से प्रभावित उद्योग का सीधा असर सरकार की आय पर भी पड़ा. कर संग्रह में भारी गिरावट के चलते सरकार के पास फंड की भारी कमी देखी गई. जिसके बाद से ही आर्थिक विकास दर में ऋणात्मक विकास की बात कही जाने लगी.

अप्रैल 2019 की तुलना में अप्रैल 2020 में भारत का निर्यात 36.65 फीसदी और आयात 47.36 फीसदी गिरा.

कोरोना के प्रभाव को देखते हुए सेंसेक्स ने 23 मार्च को अपना सबसे बुरा प्रदर्शन किया और करीब 4,000 अंक लुढ़का, वहीं व्यापक निफ्टी भी 1,150 अंक गिरा. लॉकडाउन के दौरान शेयर बाजार ने काफी उतार-चढ़ाव देखा.

लॉकडाउन के दौरान ई-कामर्स कंपनियों जैसे अमेजन, फ्लिपकार्ट आदि ने अपने सामान्य सेवाओं पर विराम लगाते हुए आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं पर अपना ध्यान केंद्रित किया.

प्रवासी मजदूरों पर कोरोना की मार

प्रवासियों की वापसी के मामले में उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ा प्रवाह (32.49 लाख) देखा गया, उसके बाद बिहार (15 लाख) और पश्चिम बंगाल (13.89 लाख) का स्थान रहा. तीनों राज्यों में लगभग 60% प्रवासियों की वापसी हुई.

केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान कुल 1.04 करोड़ प्रवासी वापस चले गए.

रेल मंत्रालय ने प्रवासी मजदूरों को देश के सभी हिस्सों से वापस उनके घर राज्यों तक वापस लाने के लिए 'श्रमिक स्पेशल ट्रेन' की व्यवस्था की थी. रेल मंत्रालय द्वारा उत्पादित आंकड़ों के अनुसार, 1.04 करोड़ प्रवासियों को पहुंचाने के लिए 1 मई से 15 सितंबर तक 4,611 ऐसी ट्रेनों का परिचालन किया गया है.

श्रम और रोजगार मंत्री संतोष गंगवार ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा, "भारतीय रेलवे ने श्रमिकों की सुविधा के लिए 4611 से अधिक श्रमिक ट्रेनों का परिचालन किया है. यात्रा के दौरान भोजन और पानी मुफ्त दिया जाता था."

लॉकडाउन के दौरान पूर्वोत्तर राज्यों में लगभग पांच लाख प्रवासियों की वापसी हुई. उनमें से, 4.91 लाख (या 86.69 प्रतिशत) अकेले असम से थे. वहीं मिजोरम में किसी भी प्रवासी की वापसी नहीं हुई.

घरों को वापस आते प्रवासी मजदूरों की त्रासदी

जून में, सड़क सुरक्षा पर काम करने वाले नई दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी संगठन सेव लाइफ़ फाउंडेशन ने 25 मार्च से 31 मई के बीच सड़क दुर्घटनाओं में कम से कम 198 प्रवासी कामगारों के मारे जाने की रिपोर्ट दी है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस दौरान 1,400 से अधिक सड़क दुर्घटनाओं में भारत में 750 लोग मारे गए और उनमें से 198 प्रवासी श्रमिक थे.

इनके अलावा, कई मीडिया रिपोर्टों के अनुसार गृह यात्रा के दौरान श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में कम से कम 80 प्रवासी श्रमिक मारे गए थे.

उत्तर प्रदेश के औरैया में 16 मई को ऐसी सबसे भीषण त्रासदी हुई थी, जिसमें 27 प्रवासी श्रमिक मारे गए थे और 33 लोग घायल हो गए थे.

8 मई को, महाराष्ट्र के औरंगाबाद में एक मालगाड़ी ने 16 से अधिक प्रवासी कामगारों को कुचल दिया और भाग गई जो मध्य प्रदेश में अपने घर की ओर जा रहे थे. मजदूर थकावट के कारण रेलवे पटरियों पर सो गए थे.

21 अप्रैल को, 12 वर्षीय जमलो मकदाम की तेलंगाना से लगभग 110 किलोमीटर दूर पैदल चलने के बाद थकावट और निर्जलीकरण से मृत्यु हो गई. छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले की निवासी मकदाम कथित तौर पर मिर्च के खेतों में काम करने के लिए तेलंगाना गई थी. लॉकडाउन के कारण परिवहन स्थगित होने से, वह और उसके गांव के अन्य प्रवासी श्रमिक घर चलने लगे.

लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रम के संबंध में सरकार द्वारा उठाए गए कदम

परिवहन: 1 मई को, भारतीय रेलवे ने अपने गृह राज्य के बाहर फंसे प्रवासियों की आवाजाही की सुविधा के लिए श्रमिक विशेष ट्रेनों के साथ (22 मार्च के बाद पहली बार) यात्री आवागमन फिर से शुरू किया. 1 मई से 3 जून के बीच, भारतीय रेलवे ने 58 लाख से अधिक प्रवासियों को परिवहन करने वाली 4,197 श्रमिक ट्रेनें संचालित कीं. सबसे ज्यादा ट्रेनें गुजरात और महाराष्ट्र से निकली और सबसे ज्यादा प्रवासी उत्तर प्रदेश और बिहार की तरफ गए.

खाद्य वितरण: 1 अप्रैल को, स्वास्थ्य और परिवार मामलों के मंत्रालय ने राज्य सरकारों को भोजन, स्वच्छता और चिकित्सा सेवाओं की व्यवस्था के साथ प्रवासी श्रमिकों के लिए राहत शिविर संचालित करने का निर्देश दिया. 14 मई को, आत्मनिर्भर भारत अभियान की दूसरी किश्त के तहत, वित्त मंत्री ने घोषणा की कि प्रवासी श्रमिकों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाएगा. इस उपाय से आठ करोड़ प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवारों को लाभ मिलने की उम्मीद जतायी गई है.

वित्त मंत्री ने यह भी घोषणा की कि पीडीएस के तहत पोर्टेबल लाभ प्रदान करने के लिए मार्च 2021 तक वन नेशन वन राशन कार्ड लागू किया जाएगा. यह भारत में किसी भी उचित मूल्य की दुकान से राशन तक पहुंच की अनुमति देगा.

आवास: पीएमएवाई के तहत किफायती किराये की आवास इकाइयां उपलब्ध कराने के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान ने प्रवासी श्रमिकों और शहरी गरीबों के लिए किफायती किराये के आवास परिसरों के लिए एक योजना शुरू की. साथ ही सार्वजनिक और निजी एजेंसियों को किराए के लिए नई सस्ती इकाइयों के निर्माण के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. इसके अलावा, मध्य आय समूह के लिए पीएमएवाई के तहत क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना के लिए अतिरिक्त धन आवंटित किया गया है.

वित्तीय सहायता: कुछ राज्य सरकारों (जैसे बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश) ने प्रवासी श्रमिकों को लौटाने के लिए एकमुश्त नकद हस्तांतरण की घोषणा की. यूपी सरकार ने प्रवासियों को लौटाने के लिए 1,000 रुपये के रखरखाव भत्ते का प्रावधान करने की घोषणा की.

सरकार की तरफ से दिए गए मुख्य आर्थिक राहत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 मार्च देश को दिए अपने संबोधन में कोविड 19 आर्थिक प्रतिक्रिया कार्य बल के गठन की घोषणा की, जिसका नेतृत्व वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने किया. वित्त मंत्रालय ने विभिन्न मंत्रालयों और आरबीआई के साथ मिलकर प्रभावित क्षेत्रों का आकलन किया.

पीएम मोदी ने स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के लिए 15 हजार करोड़ रुपये की सहायता की भी घोषणा की. साथ ही प्रधानमंत्री ने विश्व की सबसे बड़ी खाद्य सुरक्षा स्कीम की घोषणा की, जिससे देश में 80 करोड़ लोगों को लाभ होता.

26 मार्च को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लॉकडाउन से प्रभावित लोगों के लिए 17 हजार करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की.

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने 27 मार्च को ईएमआई भुगतान पर तीन महीने की रोक लगाई, जिसे समय के साथ आगे भी विस्तारित किया गया. इसके साथ ही रेपो दरों में भी कटौती की गई.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना से लड़ाई को और मजबूत करने के लिए 28 मार्च को एक नए फंड 'पीएम केयर्स फंड' की घोषणा की.

आत्मनिर्भर भारत राहत पैकेज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोरोना राहत पैकेज के रूप में 12 मई को 20 लाख करोड़ रुपये राहत पैकेज का ऐलान किया. इस पैकेज में वित्त मंत्रालय और आरबीआई द्वारा दिए पहले के राहत भी सम्मिलित थे. अगले पांच दिनों तक वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस राहत पैकेज के बारे में विस्तार से बताया, जिसमें एमएसएमई, एनबीएफसी, प्रवासी मजदूर, किसान, उद्योग धंधे आदि सभी सम्मिलित थे.

आत्मनिर्भर भारत अभियान 2.0 के रूप में सरकार ने 12 अक्टूबर को 73,000 करोड़ रुपये और 12 नवंबर को आत्मनिर्भर भारत अभियान 3.0 के रूप में 2.65 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा की.

ये भी पढ़ें : 2020 राउंडअप: वैश्विक महामारी के बीच व्यापार प्रभावित, लेकिन विदेशी निवेश में हुआ सुधार

हैदराबाद: कोरोना वायरस के बढ़ते प्रभाव के शुरुआती दौर में भी भारत की अर्थव्यवस्था बहुत अच्छी हालत में नहीं थी. वित्त वर्ष 19 की चौथी तिमाही से ही भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी गति खो चुका था. एक समय में तेजी से भागती भारतीय अर्थव्यवस्था 2008 के बाद से अपनी सबसे धीमी गति से बढ़ रहा था.

लेकिन कोरोना के बढ़ते प्रसार के बीच 25 मार्च को जहां महज चार घंटे की पूर्व सूचना के साथ देशव्यापी लॉकडाउन लगा दिया गया, उसने पूरे देश में एक उथल-पूथल की स्थिति बना दी, जिसका व्यापक असर अर्थव्यस्था पर पड़ा. भारतीय अर्थव्यवस्था इस महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित अर्थव्यवस्थाओं में से एक रही.

वित्तीय वर्ष 21 की पहली तिमाही में देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 23.9 फीसदी तक गिर गया, जो कि देश के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी गिरावट रही.

कोरोना की मार और देश की खराब वित्तीय स्थिति को देखते हुए विश्व बैंक, बार्कले, नोमुरा समेत तमाम रेटिंग एजेंसियों ने वित्त वर्ष 21 के लिए भारत की विकास दर अनुमान को गिरा दिया. देश ने विकास दरों में एक अभूतपूर्व गिरावट को महसूस किया. वहीं कुछ रेटिंग एजेंसियों ने देश को स्वतंत्रता के बाद अब तक की सबसे बुरी मंदी में फंसा बताया.

पूर्व सीईए अरविंद सुब्रमण्यन ने कहा कि भारत को इस आर्थिक संकट से उबरने के लिए 10 ट्रिलियन के राहत पैकेज की आवश्यकता होगी. उद्योगपति नारायणमूर्ति ने लॉकडाउन को लेकर कहा था कि यदि कुछ और दिन यह जारी रहता है तो, बीमारी से कहीं ज्यादा लोग भूख और गरीबी से मरेंगे.

वहीं आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने इसे स्वतंत्रता के बाद से सबसे बड़ा आर्थिक संकट बताया.

लॉकडाउन की घोषणा

24 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी ने 21 दिनों की अवधि के लिए उस दिन की मध्यरात्रि से देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की. लॉकडाउन के दौरान लोगों के घरों से बाहर निकलने पर रोक लगा दी गई. सिर्फ स्वास्थ्यकर्मी, पुलिस, पत्रकार, सफाईकर्मी और जरूरी सुविधाएं देने वालों को बाहर निकलने की अनुमति थी.

लॉकडाउन का अचानक ऐलान करने के लिए और लोगों को तैयारी का पर्याप्त समय न देने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना भी होती रही.

ये सेवाएं रही प्रतिबंधित

परिवहन सेवाओं - सड़क, हवाई और रेल, महानगरों में मेट्रो-लोकल ट्रेन को प्रतिबंधित कर दिया गया.

स्कूल-कॉलेज, औद्योगिक कारखाने, खेल, धार्मिक आयोजन, सरकारी दफ्तर, प्रायवेट कंपनियां, सिनेमा हॉल, धार्मिक स्थल, शॉपिंग मॉल बंद कर दिए गए.

इस दौरान काम करने का तरीका बदला. आईटी कंपनियों समेत कई कंपनियों ने वर्क फ्रॉम होम (घर से काम) का विकल्प चुना.

क्या खुला रहा

बैंक और एटीएम, पेट्रोल पंप, किराने, फल-सब्जी, दवाई की दुकान, फूड डिलिवरी जैसी सेवाएं जारी रहीं.

कोरोना का क्षेत्रवार प्रभाव

सीएमआईई की एक रिपोर्ट के अनुसार के अनुसार देश में बेरोजगारी दर जो मार्च में 6.7 फीसदी थी, अप्रैल में बढ़कर 26 फीसदी हो गई. देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान 14 करोड़ लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा. इसके अलावा भारी संख्या में लोगों ने वेतन में कटौती का भी सामना किया. एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 45 फीसदी भारतीय परिवारों ने पिछले साल की तुलना में आय में कमी की बात स्वीकारी.

प्रधानमंत्री मोदी ने 19 मार्च को व्यवसायों और उच्च आय वर्गों से यह आग्रह किया था कि वे अपने कर्मचारियों की आर्थिक आवश्यकताओं का ध्यान रखें. उन्होंने नियोक्ताओं से कहा कि वे कर्मचारियों के वेतन में कटौती न करें. साथ ही लोगों से अपील किया कि सकंट की इस घड़ी में अपने घरों में काम करने वाले लोगों की भी आर्थिक स्थिति का ख्याल रखें.

लॉकडाउन के बड़े प्रभाव के रूप में देश में आपूर्ति श्रृंखला भी बाधित हुई. हालांकि देश में आवश्यक सेवाओं और वस्तुओं की आपूर्ति जारी रही, फिर भी भारी संख्या में किसानों को अपनी फसलों को लेकर अनिश्चितता का सामना करना पड़ा.

ऑटोमोबाइल, स्टील, सीमेंट आदि देश की बड़ी विनिमार्ण कंपनियों को अपने अस्थायी तौर पर अपने उत्पादन पर रोक लगानी पड़ी, या फिर इसमें कमी लानी पड़ी. सार्वजनिक परिवहन, होटल, विमानन आदि उद्योग ने इस दौरान सर्वाधिक हानि उठाया.

लॉकडाउन से प्रभावित उद्योग का सीधा असर सरकार की आय पर भी पड़ा. कर संग्रह में भारी गिरावट के चलते सरकार के पास फंड की भारी कमी देखी गई. जिसके बाद से ही आर्थिक विकास दर में ऋणात्मक विकास की बात कही जाने लगी.

अप्रैल 2019 की तुलना में अप्रैल 2020 में भारत का निर्यात 36.65 फीसदी और आयात 47.36 फीसदी गिरा.

कोरोना के प्रभाव को देखते हुए सेंसेक्स ने 23 मार्च को अपना सबसे बुरा प्रदर्शन किया और करीब 4,000 अंक लुढ़का, वहीं व्यापक निफ्टी भी 1,150 अंक गिरा. लॉकडाउन के दौरान शेयर बाजार ने काफी उतार-चढ़ाव देखा.

लॉकडाउन के दौरान ई-कामर्स कंपनियों जैसे अमेजन, फ्लिपकार्ट आदि ने अपने सामान्य सेवाओं पर विराम लगाते हुए आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं पर अपना ध्यान केंद्रित किया.

प्रवासी मजदूरों पर कोरोना की मार

प्रवासियों की वापसी के मामले में उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ा प्रवाह (32.49 लाख) देखा गया, उसके बाद बिहार (15 लाख) और पश्चिम बंगाल (13.89 लाख) का स्थान रहा. तीनों राज्यों में लगभग 60% प्रवासियों की वापसी हुई.

केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान कुल 1.04 करोड़ प्रवासी वापस चले गए.

रेल मंत्रालय ने प्रवासी मजदूरों को देश के सभी हिस्सों से वापस उनके घर राज्यों तक वापस लाने के लिए 'श्रमिक स्पेशल ट्रेन' की व्यवस्था की थी. रेल मंत्रालय द्वारा उत्पादित आंकड़ों के अनुसार, 1.04 करोड़ प्रवासियों को पहुंचाने के लिए 1 मई से 15 सितंबर तक 4,611 ऐसी ट्रेनों का परिचालन किया गया है.

श्रम और रोजगार मंत्री संतोष गंगवार ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा, "भारतीय रेलवे ने श्रमिकों की सुविधा के लिए 4611 से अधिक श्रमिक ट्रेनों का परिचालन किया है. यात्रा के दौरान भोजन और पानी मुफ्त दिया जाता था."

लॉकडाउन के दौरान पूर्वोत्तर राज्यों में लगभग पांच लाख प्रवासियों की वापसी हुई. उनमें से, 4.91 लाख (या 86.69 प्रतिशत) अकेले असम से थे. वहीं मिजोरम में किसी भी प्रवासी की वापसी नहीं हुई.

घरों को वापस आते प्रवासी मजदूरों की त्रासदी

जून में, सड़क सुरक्षा पर काम करने वाले नई दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी संगठन सेव लाइफ़ फाउंडेशन ने 25 मार्च से 31 मई के बीच सड़क दुर्घटनाओं में कम से कम 198 प्रवासी कामगारों के मारे जाने की रिपोर्ट दी है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस दौरान 1,400 से अधिक सड़क दुर्घटनाओं में भारत में 750 लोग मारे गए और उनमें से 198 प्रवासी श्रमिक थे.

इनके अलावा, कई मीडिया रिपोर्टों के अनुसार गृह यात्रा के दौरान श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में कम से कम 80 प्रवासी श्रमिक मारे गए थे.

उत्तर प्रदेश के औरैया में 16 मई को ऐसी सबसे भीषण त्रासदी हुई थी, जिसमें 27 प्रवासी श्रमिक मारे गए थे और 33 लोग घायल हो गए थे.

8 मई को, महाराष्ट्र के औरंगाबाद में एक मालगाड़ी ने 16 से अधिक प्रवासी कामगारों को कुचल दिया और भाग गई जो मध्य प्रदेश में अपने घर की ओर जा रहे थे. मजदूर थकावट के कारण रेलवे पटरियों पर सो गए थे.

21 अप्रैल को, 12 वर्षीय जमलो मकदाम की तेलंगाना से लगभग 110 किलोमीटर दूर पैदल चलने के बाद थकावट और निर्जलीकरण से मृत्यु हो गई. छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले की निवासी मकदाम कथित तौर पर मिर्च के खेतों में काम करने के लिए तेलंगाना गई थी. लॉकडाउन के कारण परिवहन स्थगित होने से, वह और उसके गांव के अन्य प्रवासी श्रमिक घर चलने लगे.

लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रम के संबंध में सरकार द्वारा उठाए गए कदम

परिवहन: 1 मई को, भारतीय रेलवे ने अपने गृह राज्य के बाहर फंसे प्रवासियों की आवाजाही की सुविधा के लिए श्रमिक विशेष ट्रेनों के साथ (22 मार्च के बाद पहली बार) यात्री आवागमन फिर से शुरू किया. 1 मई से 3 जून के बीच, भारतीय रेलवे ने 58 लाख से अधिक प्रवासियों को परिवहन करने वाली 4,197 श्रमिक ट्रेनें संचालित कीं. सबसे ज्यादा ट्रेनें गुजरात और महाराष्ट्र से निकली और सबसे ज्यादा प्रवासी उत्तर प्रदेश और बिहार की तरफ गए.

खाद्य वितरण: 1 अप्रैल को, स्वास्थ्य और परिवार मामलों के मंत्रालय ने राज्य सरकारों को भोजन, स्वच्छता और चिकित्सा सेवाओं की व्यवस्था के साथ प्रवासी श्रमिकों के लिए राहत शिविर संचालित करने का निर्देश दिया. 14 मई को, आत्मनिर्भर भारत अभियान की दूसरी किश्त के तहत, वित्त मंत्री ने घोषणा की कि प्रवासी श्रमिकों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाएगा. इस उपाय से आठ करोड़ प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवारों को लाभ मिलने की उम्मीद जतायी गई है.

वित्त मंत्री ने यह भी घोषणा की कि पीडीएस के तहत पोर्टेबल लाभ प्रदान करने के लिए मार्च 2021 तक वन नेशन वन राशन कार्ड लागू किया जाएगा. यह भारत में किसी भी उचित मूल्य की दुकान से राशन तक पहुंच की अनुमति देगा.

आवास: पीएमएवाई के तहत किफायती किराये की आवास इकाइयां उपलब्ध कराने के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान ने प्रवासी श्रमिकों और शहरी गरीबों के लिए किफायती किराये के आवास परिसरों के लिए एक योजना शुरू की. साथ ही सार्वजनिक और निजी एजेंसियों को किराए के लिए नई सस्ती इकाइयों के निर्माण के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. इसके अलावा, मध्य आय समूह के लिए पीएमएवाई के तहत क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना के लिए अतिरिक्त धन आवंटित किया गया है.

वित्तीय सहायता: कुछ राज्य सरकारों (जैसे बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश) ने प्रवासी श्रमिकों को लौटाने के लिए एकमुश्त नकद हस्तांतरण की घोषणा की. यूपी सरकार ने प्रवासियों को लौटाने के लिए 1,000 रुपये के रखरखाव भत्ते का प्रावधान करने की घोषणा की.

सरकार की तरफ से दिए गए मुख्य आर्थिक राहत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 मार्च देश को दिए अपने संबोधन में कोविड 19 आर्थिक प्रतिक्रिया कार्य बल के गठन की घोषणा की, जिसका नेतृत्व वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने किया. वित्त मंत्रालय ने विभिन्न मंत्रालयों और आरबीआई के साथ मिलकर प्रभावित क्षेत्रों का आकलन किया.

पीएम मोदी ने स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के लिए 15 हजार करोड़ रुपये की सहायता की भी घोषणा की. साथ ही प्रधानमंत्री ने विश्व की सबसे बड़ी खाद्य सुरक्षा स्कीम की घोषणा की, जिससे देश में 80 करोड़ लोगों को लाभ होता.

26 मार्च को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लॉकडाउन से प्रभावित लोगों के लिए 17 हजार करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की.

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने 27 मार्च को ईएमआई भुगतान पर तीन महीने की रोक लगाई, जिसे समय के साथ आगे भी विस्तारित किया गया. इसके साथ ही रेपो दरों में भी कटौती की गई.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना से लड़ाई को और मजबूत करने के लिए 28 मार्च को एक नए फंड 'पीएम केयर्स फंड' की घोषणा की.

आत्मनिर्भर भारत राहत पैकेज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोरोना राहत पैकेज के रूप में 12 मई को 20 लाख करोड़ रुपये राहत पैकेज का ऐलान किया. इस पैकेज में वित्त मंत्रालय और आरबीआई द्वारा दिए पहले के राहत भी सम्मिलित थे. अगले पांच दिनों तक वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस राहत पैकेज के बारे में विस्तार से बताया, जिसमें एमएसएमई, एनबीएफसी, प्रवासी मजदूर, किसान, उद्योग धंधे आदि सभी सम्मिलित थे.

आत्मनिर्भर भारत अभियान 2.0 के रूप में सरकार ने 12 अक्टूबर को 73,000 करोड़ रुपये और 12 नवंबर को आत्मनिर्भर भारत अभियान 3.0 के रूप में 2.65 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा की.

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