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भारत निर्यात बढ़ाने पर ध्यान दे, घरेलू बाजार को लेकर भ्रम से बचे: अरविंद सुब्रमणियम

सुब्रमणियम ने एक शोध पत्र में सरकार की आत्मनिर्भर भारत पहल की आलोचना की है. उन्होंने लिखा है कि भारत को घरेलू बाजार को लेकर गुमराह करने वाले प्रलोभन से बचना चाहिए और पूरी शक्ति के साथ निर्यात को बढ़ावा देना चाहिए.

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Published : Oct 15, 2020, 12:13 PM IST

नई दिल्ली: पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियम ने एक शोध पत्र में सरकार की आत्मनिर्भर भारत पहल की आलोचना की है. उन्होंने लिखा है कि भारत को घरेलू बाजार को लेकर गुमराह करने वाले प्रलोभन से बचना चाहिए और पूरी शक्ति के साथ निर्यात को बढ़ावा देना चाहिए.

उन्होंने यह शोध पत्र पेंसिलवेनिया स्टेट यूनवर्सिटी के प्रोफेसर सुमित्रो चटर्जी के साथ मिलकर लिखा है.

इसमें कहा गया है कि भारत आत्मकेंद्रित हो रहा है. घरेलू मांग, निर्यात से ज्यादा महत्वपूर्ण होती जा रही है तथा व्यापार पाबंदियां बढ़ रही हैं. तीन दशक से जारी (बाह्य उदारीकरण की) प्रवृत्ति पलट रही है.

ये भी पढ़ें- प्रति-व्यक्ति जीडीपी के मामले में भारत से आगे निकल रहा है बांग्लादेश

इंडियाज इनवार्ड (री) टर्न: इज इट वारेंटेड? विल इट वर्क (भारत का अंतर्मुखी मोड़: कितना उचित?) शीर्षक से इस परचे में कहा गया है, "भारत को घरेलू बाजार को लेकर गुमराह करने वाले प्रलोभन से बचना चाहिए और पूरी शक्ति से निर्यात को बढ़ावा देना चाहिए."

इसमें कहा गया है कि निर्यातोन्मुख रुख में ढिलाई या उसे छोड़ना ठीक वैसा ही होगा जैसा कि सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को मारना. "...वास्तव में आत्मनिर्भरता को अपनाना भारतीय अर्थव्यवस्था को औसत दर्जे की अर्थव्यवस्था की ओर ले जाने का रास्ता है."

शोध पत्र के अनुसार आंतरिक बाजार की ओर उन्मुख पर जोर कोविड-19 से पहले से उभर रहा था. यह आत्मनिर्भरता पर बढ़ते जोर के रूप में दिखाई दिया.

इसमें कहा गया है कि यह बदलाव तीन गलत धारणा पर आधारित है... भारत एक बड़ा घरेलू बाजार है, भारत की वृद्धि घरेलू बाजार पर आधारित है न कि निर्यात पर और दुनिया वैश्वीकरण से दूर हो रही है, ऐसे में निर्यात की संभावना धुंधली है.

पत्र के अनुसार भारत के पास अभी भी निर्यात का बड़ा अवसर है. खासकर कपड़ा और जूता-चप्पल जैसे श्रम गहन क्षेत्रों में. लेकिन इन अवसरों को भुनाने के लिये अधिक खुलेपन तथा और वैश्विक एकीकरण की जरूरत है.

इसमें कहा गया है, "वास्तव में सार्वजनिक, कंपनियों तथा परिवार के स्तर पर बही-खातों पर दबाव को देखते हुए निर्यात उन्मुखता के रुख को त्यागना अंडे देने वाली मुर्गी को मारने जैसा होगा."

पत्र में कहा गया है कि भारत के वास्तविक बाजार को उपभोक्ता की निम्न क्रयशक्ति के आधार पर परिभाषित किया जाता है, जो बहुत बड़ा नहीं है.

इसमें कहा गया है, "यह जीडीपी आंकड़ा से बहुत कम है. चीन की तुलना में बहुत कम है. विश्व बाजार का बहुत छोटा हिस्सा है. इसका कारण यह है कि भारत में गरीब ग्राहकों की संख्या अधिक है जबकि जो धनी हैं, वे अधिक खपत के बजाए बचत पर जोर देते हैं."

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली: पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियम ने एक शोध पत्र में सरकार की आत्मनिर्भर भारत पहल की आलोचना की है. उन्होंने लिखा है कि भारत को घरेलू बाजार को लेकर गुमराह करने वाले प्रलोभन से बचना चाहिए और पूरी शक्ति के साथ निर्यात को बढ़ावा देना चाहिए.

उन्होंने यह शोध पत्र पेंसिलवेनिया स्टेट यूनवर्सिटी के प्रोफेसर सुमित्रो चटर्जी के साथ मिलकर लिखा है.

इसमें कहा गया है कि भारत आत्मकेंद्रित हो रहा है. घरेलू मांग, निर्यात से ज्यादा महत्वपूर्ण होती जा रही है तथा व्यापार पाबंदियां बढ़ रही हैं. तीन दशक से जारी (बाह्य उदारीकरण की) प्रवृत्ति पलट रही है.

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इंडियाज इनवार्ड (री) टर्न: इज इट वारेंटेड? विल इट वर्क (भारत का अंतर्मुखी मोड़: कितना उचित?) शीर्षक से इस परचे में कहा गया है, "भारत को घरेलू बाजार को लेकर गुमराह करने वाले प्रलोभन से बचना चाहिए और पूरी शक्ति से निर्यात को बढ़ावा देना चाहिए."

इसमें कहा गया है कि निर्यातोन्मुख रुख में ढिलाई या उसे छोड़ना ठीक वैसा ही होगा जैसा कि सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को मारना. "...वास्तव में आत्मनिर्भरता को अपनाना भारतीय अर्थव्यवस्था को औसत दर्जे की अर्थव्यवस्था की ओर ले जाने का रास्ता है."

शोध पत्र के अनुसार आंतरिक बाजार की ओर उन्मुख पर जोर कोविड-19 से पहले से उभर रहा था. यह आत्मनिर्भरता पर बढ़ते जोर के रूप में दिखाई दिया.

इसमें कहा गया है कि यह बदलाव तीन गलत धारणा पर आधारित है... भारत एक बड़ा घरेलू बाजार है, भारत की वृद्धि घरेलू बाजार पर आधारित है न कि निर्यात पर और दुनिया वैश्वीकरण से दूर हो रही है, ऐसे में निर्यात की संभावना धुंधली है.

पत्र के अनुसार भारत के पास अभी भी निर्यात का बड़ा अवसर है. खासकर कपड़ा और जूता-चप्पल जैसे श्रम गहन क्षेत्रों में. लेकिन इन अवसरों को भुनाने के लिये अधिक खुलेपन तथा और वैश्विक एकीकरण की जरूरत है.

इसमें कहा गया है, "वास्तव में सार्वजनिक, कंपनियों तथा परिवार के स्तर पर बही-खातों पर दबाव को देखते हुए निर्यात उन्मुखता के रुख को त्यागना अंडे देने वाली मुर्गी को मारने जैसा होगा."

पत्र में कहा गया है कि भारत के वास्तविक बाजार को उपभोक्ता की निम्न क्रयशक्ति के आधार पर परिभाषित किया जाता है, जो बहुत बड़ा नहीं है.

इसमें कहा गया है, "यह जीडीपी आंकड़ा से बहुत कम है. चीन की तुलना में बहुत कम है. विश्व बाजार का बहुत छोटा हिस्सा है. इसका कारण यह है कि भारत में गरीब ग्राहकों की संख्या अधिक है जबकि जो धनी हैं, वे अधिक खपत के बजाए बचत पर जोर देते हैं."

(पीटीआई-भाषा)

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