नई दिल्ली: रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने कहा है कि देश की वृद्धि की अल्पकलिक और मध्यावधिक संभावनाएं अभी धुंधली हैं और लॉकडाउन के बाद जो आर्थिक गतिविधियां बढ़ रही हैं, उसको लेकर सरकार को ज्यादा मतलब नहीं निकालना चाहिए.
उन्होंने यह भी कहा कि जो सुधार के संकेत दिख रहे हैं, वे यंत्रवत हैं (बिना किसी प्रयास के) हैं. वैश्विक स्तर पर कोविड-19 महामारी के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति संकटपूर्ण बनी हुई है. कोविड-19 संकट से पहले, वास्तविक जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर 7 प्रतिशत थी जो 2018-19 में घटकर 6.1 प्रतिशत और 2019-20 में 4.2 प्रतिशत पर आ गयी.
सुब्बाराव ने कहा, "जिन आर्थिक पुनरूद्धार के संकेतों का आप जिक्र कर रहे हैं, मुझे नहीं लगता कि उसका ज्यादा मतलब निकालना चाहिए. हम जो भी देख रहे हैं, वह 'लॉकडाउन' के दौरान आर्थिक गतिविधियों की तुलना में सुधार है. यह यंत्रवत है." उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की अल्पकालिक व मध्यकालिक संभावनाएं अभी धुंधली बनी हुई है.
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सुब्बाराव ने कहा, "महामारी अब भी बढ़ रही है, रोजाना नये मामले बढ़ रहे हैं और यह नये क्षेत्रों में फैल रहा है." मध्यम अवधि में वृद्धि संभावना के बारे में आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा कि जब से कोविड-19 संकट सामने आया है, अर्थव्यवस्था समस्या में है.
उन्होंने कहा, "जब यह संकट समाप्त होगा और मैं उम्मीद करता हूं कि यह जल्दी हो, ये समस्याएं काफी बड़ी होने जा रही हैं. राजकोषीय घाटा बहुत अधिक होगा. कर्ज का बोझ बढ़ेगा और वित्तीय क्षेत्र की स्थिति खरब होगी."
विश्वबैंक ने पिछले सप्ताह कहा कि भारत का राजकोषीय घाटा 2020-21 में जीडीपी का 6.6 प्रतिशत होगा और आने वाने वर्ष में यह 5.5 प्रतिशत के उच्च स्तर पर बना रहेगा. सरकार ने चालू वित्त वर्ष के लिये राजकोषीय घाटा 3.5 प्रतिशत रखने का लक्ष्य रखा है.
सुब्बाराव ने कहा, "हमारी मध्यम अवधि की संभावना इस बात पर निर्भर करेगी कि कितने प्रभावी तरीके से हम इन चुनौतियों का समाधान करते हैं." यह पूछे जाने पर कि क्या वह इस निराशाजनक परिदृश्य में कोई सकारात्मक चीज देखते हैं.
उन्होंने कहा कि शहरी अर्थव्यवस्था के मुकाबले ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार बेहतर है. इसके कारण हैं. इसमें एक प्रमुख कारण मनरेगा है जिसका ऐसे समय विस्तार किया गया, जब इसकी काफी जरूरत थी. सुब्बाराव ने कहा कि एक और बड़ी राहत की बात अर्थव्यवस्था में बुनियादी सुरक्षा दायरा का होना है, जिस पर गौर नहीं किया गया.
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कोविड-18 संकट के दौरान करीब 4 करोड़ शहरी प्रवासी मजदूर अपने गांवो को लौटे. इसके बावजूद भुखमरी की कोई रिपोर्ट नहीं है.
सुब्बाराव ने कहा, "अगर 20 साल या 15 साल पहले देखें, तो यह कल्पना करना आसान है कि किस प्रकार इतनी संख्या में प्रवासी मजदूरों के अपने घरों को लौटने से भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो जाती. यह केवल इस सरकार का ही नहीं बल्कि पूर्व की सरकारों को किये गये अच्छे कामों का नतीजा है." इस आलोचना के बारे में सरकार देश को आर्थिक संकट से उबारने के लिये बहुत ज्यादा खर्च नहीं कर रही है, आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा कि उनका मानना है कि सरकार के लिए ऋण लेना और अधिक खर्च करना महत्वपूर्ण है.
उन्होंने कहा, "वास्तव में सरकार वृद्धि को बढ़ाने वाले अल्पकालिक तत्वों पर खर्च कर रही है. निजी खपत, निवेश और निर्यात संकटपूर्ण स्थिति में हैं." सुब्बाराव ने कहा, "अगर सरकार गिरावट को रोकने के लिये अधिक खर्च नहीं करती है, फंसे कर्ज की समस्या बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था पर उसका अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा."
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि सरकार की उधारी एकदम से खुली नहीं हो सकती, उसे स्वयं उस पर एक सीमा लगानी चाहिए. सुब्बाराव ने कहा, "इससे सरकार कुशल, पारदर्शी और जवाबदेह होगी." यह पूछे जाने पर कि अतिरिक्त खर्च कहां करने की जरूरत है, उन्होंने कहा कि राजकोषीय गुंजाइश सीमित है, इसको देखते हुए, सरकार को खर्च किये गये पैसे से अधिकतम लाभ पर ध्यान देना चाहिए.
सुब्बाराव ने कहा, "खर्च या तो खपत अथवा उत्पादन के लिए जा सकता है." उनका मानना है कि खपत के ऊपर उत्पादन को तरजीह दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि आरबीआई पहले ही बैंकों द्वारा कर्ज पुनर्गठन को लेकर दिशानिर्देश जारी कर चुका है. "
सरकार एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उदद्यमों) और मुद्रा कर्ज का कुछ बोझ लेकर राहत दे सकती है. सुब्बाराव ने कहा कि सरकार को बैंकों में पर्याप्त मात्रा में पूंजी डालने की भी जरूरत है. साथ ही इसके जरिये एनबीएफसी (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों) को पूंजी समर्थन देने की आवश्यकता है.
(पीटीआई-भाषा)