नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को दिवाला कानून में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. इस संशोधन के तहत कंपनी के पूर्व प्रवर्तकों के अपराधों के लिए उसके नए खरीदारों के खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं चलाया जाएगा.
एक आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया है कि दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) में इस संशोधन का लक्ष्य दिवाला समाधान प्रक्रिया में आ रही कठिनाइयों को दूर करना और कारोबार में और अधिक सुगमता सुनिश्चित करना है.
आईबीसी (दूसरा संशोधन) विधेयक 2019 का उद्देश्य इस संहिता की कई धाराओं में संशोधन करने के साथ - साथ कानून में नई धारा को शामिल करना है.
विज्ञप्ति के मुताबिक, दिवाला कानून में संशोधन से बाधाएं दूर होंगी, कॉरपोरेट दिवाला समाधान की प्रक्रिया सुव्यवस्थित होगी और आखिरी चरण के वित्तपोषण की सुरक्षा होगी, जिससे वित्तीय संकट से जूझ रहे क्षेत्रों में निवेश को बढ़ावा मिलेगा. संशोधन के तहत, पूर्ववर्ती प्रबंधन/प्रवर्तकों की ओर से किए गए अपराधों के लिए नए खरीदार पर कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं की जाएगी.
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अधिनियम में संशोधन यह भी सुनिश्चित करेगा कि कॉरपोरेट लेनदार के कारोबार का आधार कमजोर न पड़े और उसका व्यवसाय निरंतर जारी रहे. इसके लिए यह स्पष्ट किया जाएगा कि कर्ज वसूली स्थगन की अवधि के दौरान उद्यम का लाइसेंस, परमिट, रियायत, मंजूरी इत्यादि को समाप्त अथवा निलंबित नहीं किया जाएगा और न ही उनका नवीकरण रोका जाएगा. इससे कंपनी चलाता हाल उद्यम मानी जाएगी.