नई दिल्ली: भारत ने अपनी गरीब आबादी की घरेलू खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिये विपणन वर्ष 2018-19 के लिये धान की खेती करने वाले किसानों को अधिक समर्थन देने को लेकर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के शांति उपबंध (पीस क्लॉज) का उपयोग किया है.
शांति उपबंध के तहत डब्ल्यूटीओ सदस्य देश विकासशील देशों द्वारा निर्धारित सब्सिडी सीमा से अधिक देने पर जिनेवा स्थित संगठन के विवाद निपटान मंच पर चुनौती नहीं दे सकते हैं. निर्धारित सीमा से अधिक सब्सिडी को कारोबार बिगाड़ने वाले के रूप में देखा जाता है.
भारत जैसे विकासशील देशों के लिये यह सीमा खाद्य उत्पादन मूल्य का 10 प्रतिशत तय है. भारत ने एक अधिसूचना में डब्ल्यूटीओ को सूचित किया है कि चावल उत्पादन का मूल्य 2018-19 में 43.67 अरब डॉलर था और उसने उसके लिये 5 अरब डॉलर मूल्य की सब्सिडी दी है जो निर्धारित सीमा 10 प्रतिशत से अधिक है.
इसमें कहा गया है, "भारत ने कृषि पर समझौता के प्रावधान के तहत अपने परंपरागत खाद्य पदार्थ चावल के मामले में प्रतिबद्धता को तोड़ा है. इसका उद्देश्य खाद्य सुरक्षा मकसद से सार्वजनिक भंडारण व्यवस्था बनाये रखना है..."
यह व्यवस्था खाद्य सुरक्षा उद्देश्य के लिये सार्वजनिक भंडारण पर बाली में मंत्री स्तरीय बैठक के निर्णय के अनुरूप है. अधिसूचना में कहा गया है कि खाद्य सुरक्षा उद्देश्य से सार्वजनिक भंडारण कार्यक्रम के बारे में निरंतर डब्ल्यूटीओ को सूचना दी जाती रही है. इसमें चावल और अन्य जिंस शामिल हैं.
इसमें कहा गया है कि देश के गरीब आबादी की खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिये भंडारण तैयार किया जाता है. यह कोई वाणिज्यिक व्यापार या अन्य देशों की खाद्य सुरक्षा के लिये नहीं है.
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अधिसूचना में कहा गया है कि इन कारणों से चावल के मामले में (सब्सिडी) सीमा का उल्लंघन किया गया है इसकी मंजूरी शांति उपबंध देता है जिसके बारे में इंडोनेशिया के बाली में मंत्री स्तरीय बैठक में निर्णय किया गया था.
उल्लेखनीय है कि भारत कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों के आधार पर रबी/खरीफ फसल की कटाई से पहले अनाज की खरीद को लेकर न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करता है. इसमें कच्चे माल की लागत के अलावा किसानों के उनकी उपज के लाभ को ध्यान में रखा जाता है.
(पीटीआई-भाषा)