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विरासत के अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: जानिए ये कैसे बदलेगी बेटियों की किस्मत

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Published : Aug 12, 2020, 11:01 AM IST

Updated : Aug 12, 2020, 11:20 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नौ सितंबर, 2005 से पहले जन्मी बेटियां धारा 6 (1) के प्रावधान के तहत 20 दिसंबर, 2004 से पहले बेची गयी या बंटवारा की गयी संपत्तियों के मामले में इन अधिकारों पर दावा कर सकती हैं. चूंकि सहदायिकी का अधिकार जन्म से ही है, इसलिए यह जरूरी नहीं है कि नौ सितंबर 2005 को पिता जीवित ही होना चाहिए.

विशेष: बेटियों को अब बेटों की तरह पैतृक संपत्ति पर समान अधिकार मिलेगा
विशेष: बेटियों को अब बेटों की तरह पैतृक संपत्ति पर समान अधिकार मिलेगा

हैदराबाद: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपनी व्यवस्था में कहा कि पुत्रियों को समता के उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है और संयुक्त हिन्दू परिवार की संपत्ति में उनका बेटों के समान ही अधिकार होगा, भले ही हिन्दू उत्तराधिकार संशोधन कानून, 2005 बनने से पहले ही पिता की मृत्यु हो गयी हो.

121 पन्नों के फैसले में न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, "बेटी जीवन भर बेटों के समान ही अधिकार मिलेगा, भले ही उसके पिता जीवित हों या नहीं."

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फैसले ने कानून की पूर्वव्यापी प्रकृति पर जोर दिया और स्पष्ट किया कि बेटियों द्वारा समान अधिकारों का भी दावा किया जा सकता है जो 9 सितंबर 2005 से पहले पैदा हुए थे.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बेहतर ढंग से समझने के लिए वर्तमान कानून क्या है. यह जानना जरुरी है. वर्तमान कानून पर एक नज़र डालें.

एचयूएफ क्या है?

हिंदू कानून के तहत एक हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) एक समूह है जिसमें एक से अधिक व्यक्ति होते हैं. सभी पूर्वजों के एक सामान्य वंशज होते हैं और पत्नियों और अविवाहित बेटियों को शामिल करते हैं. एक एचयूएफ का गठन हिंदू, जैन, सिख या बौद्ध धर्म के लोगों द्वारा किया जा सकता है.

समान उत्तराधिकारी कौन हैं?

एचयूएफ के भीतर कुछ समान उत्तराधिकारी हैं. ये वे लोग हैं जो जन्म से पैतृक संपत्ति में कानूनी अधिकार ग्रहण करने की क्षमता रखते हैं. विशेष रूप से, वारिस केवल जन्म के समय ही समान उत्तराधिकारी हो जाता है.

समान उत्तराधिकारी में परिवार की तीन पीढ़ियां शामिल हैं. 2005 से पहले इसमें केवल उन लोगों को शामिल किया गया था जैसे कि बेटे, पोते, और परपोते. एक विवाहित बेटी एक समान उत्तराधिकारी नहीं हो सकती है, भले ही वह एचयूएफ का सदस्य हो. लेकिन 2005 में हर विवाहित बेटी को बेटों के समान अधिकार, दायित्व और कर्तव्य देने के लिए अधिनियम में संशोधन किया गया.

एक समान उत्तराधिकारी के अधिकार क्या हैं?

पैतृक संपत्ति में कानूनी अधिकार के अलावा समान उत्तराधिकारी भी पैतृक संपत्ति के विभाजन की मांग के लिए मुकदमा दायर कर सकते हैं. पुत्री एक समान उत्तराधिकारी के रूप में अब अपने पिता की संपत्ति के विभाजन की मांग कर सकती है जिसे 2005 से पहले अनुमति नहीं थी.

समान उत्तराधिकारी संपत्ति में क्या शामिल है?

पैतृक और स्व-अधिग्रहित संपत्ति दोनों समान उत्तराधिकारी संपत्ति हो सकती है. पैतृक संपत्ति के मामले में यह समान रूप से समान उत्तराधिकारी के सभी सदस्यों द्वारा साझा किया जाता है. स्व-अधिग्रहित होने के मामले में व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार संपत्ति का प्रबंधन करने के लिए स्वतंत्र है.

यदि पिता निधन हो जाता है तो पुत्री का पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति दोनों में पुत्र के समान अधिकार होगा.

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में 2005 का संशोधन क्या था?

इससे पहले के कानून में यह था कि एक बार जब बेटी की शादी हो जाती है तो वह अपने पिता के एचयूएफ का हिस्सा बनना बंद कर देती थी और उसके पास कोई समान सामूहिक अधिकार नहीं था. लेकिन 9 सितंबर 2005 को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में संशोधन किया गया. हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम, 2005 के अनुसार हर बेटी, चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित उसे उसके पिता के एचयूएफ का सदस्य माना जाता है और उसे उसकी एचयूएफ संपत्ति का हिस्सा माना जाएगा.

इसका मतलब था कि बेटी संपत्ति के शेयरों और अन्य अधिकारों के अलावा ऋण और नुकसान के लिए भी उत्तरदायी होगी.

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपनी व्यवस्था में कहा कि पुत्रियों को समता के उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है और संयुक्त हिन्दू परिवार की संपत्ति में उनका बेटों के समान ही अधिकार होगा, भले ही हिन्दू उत्तराधिकार संशोधन कानून, 2005 बनने से पहले ही पिता की मृत्यु हो गयी हो. शीर्ष अदालत ने कहा, "एक बेटी हमेशा बेटी रहती है. बेटा पत्नी आने से पहले तक बेटा रहता है. बेटी जिंदगी भर बेटी रहती है."

साथ ही शीर्ष अदालत के एक पिछले फैसले ने इस बात पर भ्रम पैदा कर दिया था कि 9 सितंबर 2005 से पहले पैदा हुई बेटियां विरासत में समान अधिकार का दावा कर सकती हैं या नहीं.

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चूंकि सामूहिक अधिकारों में अधिकार जन्म से है. इसलिए यह आवश्यक नहीं है कि पिता 9 सितंबर 2005 को जीवित रहना चाहिए. इसके अलावा 9 सितंबर 2005 से पहले पैदा हुई बेटी द्वारा अधिकारों का दावा किया जा सकता है.

किन मामलों में बेटियों के सामूहिक अधिकारों पर अंकुश लगाया जाएगा?

2005 के संशोधन के आलोक में पुत्री के अधिकार पर केवल तभी रोक लगाई जा सकती है जब संपत्ति को अधिनियम में प्रदान की गई कट-ऑफ तारीख 20 दिसंबर 2004 से पहले ही निपटा दिया गया हो.

इसका अर्थ है कि बेटियां 20 मई 2004 से पहले किए गए मौजूदा सामूहिक अधिकारों द्वारा पैतृक संपत्ति के निपटान या अलगाव पर सवाल नहीं उठा सकेंगी.

(ईटीवी भारत रिपोर्ट)

हैदराबाद: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपनी व्यवस्था में कहा कि पुत्रियों को समता के उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है और संयुक्त हिन्दू परिवार की संपत्ति में उनका बेटों के समान ही अधिकार होगा, भले ही हिन्दू उत्तराधिकार संशोधन कानून, 2005 बनने से पहले ही पिता की मृत्यु हो गयी हो.

121 पन्नों के फैसले में न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, "बेटी जीवन भर बेटों के समान ही अधिकार मिलेगा, भले ही उसके पिता जीवित हों या नहीं."

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फैसले ने कानून की पूर्वव्यापी प्रकृति पर जोर दिया और स्पष्ट किया कि बेटियों द्वारा समान अधिकारों का भी दावा किया जा सकता है जो 9 सितंबर 2005 से पहले पैदा हुए थे.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बेहतर ढंग से समझने के लिए वर्तमान कानून क्या है. यह जानना जरुरी है. वर्तमान कानून पर एक नज़र डालें.

एचयूएफ क्या है?

हिंदू कानून के तहत एक हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) एक समूह है जिसमें एक से अधिक व्यक्ति होते हैं. सभी पूर्वजों के एक सामान्य वंशज होते हैं और पत्नियों और अविवाहित बेटियों को शामिल करते हैं. एक एचयूएफ का गठन हिंदू, जैन, सिख या बौद्ध धर्म के लोगों द्वारा किया जा सकता है.

समान उत्तराधिकारी कौन हैं?

एचयूएफ के भीतर कुछ समान उत्तराधिकारी हैं. ये वे लोग हैं जो जन्म से पैतृक संपत्ति में कानूनी अधिकार ग्रहण करने की क्षमता रखते हैं. विशेष रूप से, वारिस केवल जन्म के समय ही समान उत्तराधिकारी हो जाता है.

समान उत्तराधिकारी में परिवार की तीन पीढ़ियां शामिल हैं. 2005 से पहले इसमें केवल उन लोगों को शामिल किया गया था जैसे कि बेटे, पोते, और परपोते. एक विवाहित बेटी एक समान उत्तराधिकारी नहीं हो सकती है, भले ही वह एचयूएफ का सदस्य हो. लेकिन 2005 में हर विवाहित बेटी को बेटों के समान अधिकार, दायित्व और कर्तव्य देने के लिए अधिनियम में संशोधन किया गया.

एक समान उत्तराधिकारी के अधिकार क्या हैं?

पैतृक संपत्ति में कानूनी अधिकार के अलावा समान उत्तराधिकारी भी पैतृक संपत्ति के विभाजन की मांग के लिए मुकदमा दायर कर सकते हैं. पुत्री एक समान उत्तराधिकारी के रूप में अब अपने पिता की संपत्ति के विभाजन की मांग कर सकती है जिसे 2005 से पहले अनुमति नहीं थी.

समान उत्तराधिकारी संपत्ति में क्या शामिल है?

पैतृक और स्व-अधिग्रहित संपत्ति दोनों समान उत्तराधिकारी संपत्ति हो सकती है. पैतृक संपत्ति के मामले में यह समान रूप से समान उत्तराधिकारी के सभी सदस्यों द्वारा साझा किया जाता है. स्व-अधिग्रहित होने के मामले में व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार संपत्ति का प्रबंधन करने के लिए स्वतंत्र है.

यदि पिता निधन हो जाता है तो पुत्री का पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति दोनों में पुत्र के समान अधिकार होगा.

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में 2005 का संशोधन क्या था?

इससे पहले के कानून में यह था कि एक बार जब बेटी की शादी हो जाती है तो वह अपने पिता के एचयूएफ का हिस्सा बनना बंद कर देती थी और उसके पास कोई समान सामूहिक अधिकार नहीं था. लेकिन 9 सितंबर 2005 को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में संशोधन किया गया. हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम, 2005 के अनुसार हर बेटी, चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित उसे उसके पिता के एचयूएफ का सदस्य माना जाता है और उसे उसकी एचयूएफ संपत्ति का हिस्सा माना जाएगा.

इसका मतलब था कि बेटी संपत्ति के शेयरों और अन्य अधिकारों के अलावा ऋण और नुकसान के लिए भी उत्तरदायी होगी.

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपनी व्यवस्था में कहा कि पुत्रियों को समता के उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है और संयुक्त हिन्दू परिवार की संपत्ति में उनका बेटों के समान ही अधिकार होगा, भले ही हिन्दू उत्तराधिकार संशोधन कानून, 2005 बनने से पहले ही पिता की मृत्यु हो गयी हो. शीर्ष अदालत ने कहा, "एक बेटी हमेशा बेटी रहती है. बेटा पत्नी आने से पहले तक बेटा रहता है. बेटी जिंदगी भर बेटी रहती है."

साथ ही शीर्ष अदालत के एक पिछले फैसले ने इस बात पर भ्रम पैदा कर दिया था कि 9 सितंबर 2005 से पहले पैदा हुई बेटियां विरासत में समान अधिकार का दावा कर सकती हैं या नहीं.

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चूंकि सामूहिक अधिकारों में अधिकार जन्म से है. इसलिए यह आवश्यक नहीं है कि पिता 9 सितंबर 2005 को जीवित रहना चाहिए. इसके अलावा 9 सितंबर 2005 से पहले पैदा हुई बेटी द्वारा अधिकारों का दावा किया जा सकता है.

किन मामलों में बेटियों के सामूहिक अधिकारों पर अंकुश लगाया जाएगा?

2005 के संशोधन के आलोक में पुत्री के अधिकार पर केवल तभी रोक लगाई जा सकती है जब संपत्ति को अधिनियम में प्रदान की गई कट-ऑफ तारीख 20 दिसंबर 2004 से पहले ही निपटा दिया गया हो.

इसका अर्थ है कि बेटियां 20 मई 2004 से पहले किए गए मौजूदा सामूहिक अधिकारों द्वारा पैतृक संपत्ति के निपटान या अलगाव पर सवाल नहीं उठा सकेंगी.

(ईटीवी भारत रिपोर्ट)

Last Updated : Aug 12, 2020, 11:20 AM IST
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