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'बनिया दिमाग' लगाकर केजरीवाल ने बचाई मुख्यमंत्री की कुर्सी

कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली सरकार ने 2014-15 और 2017-18 के बीच प्राथमिक अधिशेष को बनाए रखा. यह 2017-18 में जीएसडीपी के 0.43 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 62.88 प्रतिशत बढ़ गया.

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'बनिया दिमाग' लगाकर केजरीवाल ने बचाई मुख्यमंत्री की कुर्सी
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Published : Feb 12, 2020, 5:11 PM IST

Updated : Mar 1, 2020, 2:40 AM IST

नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने शानदार जीत हासिल की. उनकी आम आदमी पार्टी (आप) 62 सीटें पर जीत दर्ज की है. जहां आप ने इसे 'सुशासन' की जीत करार दिया है, वहीं विपक्ष इसे आप द्वारा घोषित मुफ्त घोषणाओं के परिणाम के रूप में देखता है.

लेकिन केजरीवाल को इन खर्चों के लिए पैसे कहां से मिले? केजरीवाल एक चतुर 'बनिया' है, जिसने अपने राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए दिल्ली के स्वस्थ वित्त का विवेकपूर्ण उपयोग किया.

सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, 2016-17 में 1,051 करोड़ रुपये के राजकोषीय घाटे से, दिल्ली 2017-18 में 113 करोड़ रुपये के अधिशेष राज्य में बदल गया, जो कि सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 0.02 प्रतिशत था.

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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप मुख्यमंत्री व वित्त मंत्री मनीष सिसोदिया

कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली सरकार ने 2014-15 और 2017-18 के बीच प्राथमिक अधिशेष को बनाए रखा. यह 2017-18 में जीएसडीपी के 0.43 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 62.88 प्रतिशत बढ़ गया.

दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) में पिछले पांच वर्षों में अधिशेष राजस्व था. 2017-18 में इसमें 2.59 प्रतिशत की गिरावट आई, लेकिन यह जीएसडीपी का 0.72 प्रतिशत था.

सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017-18 में कुल 49,202.08 करोड़ रुपये के खर्च के मुकाबले 41,159.42 करोड़ रुपये खर्च हुए, जिससे 8,042.66 करोड़ रुपये की बचत हुई. यह 16.35 प्रतिशत की बचत थी.

ये भी पढ़ें:झटका: 144 रुपये बढ़ गए रसोई गैस सिलेंडर के दाम

इन आंकड़ों के साथ, दिल्ली से कई राज्य से ईर्ष्या कर रहे हैं और इसने केजरीवाल को "मुफ्त बिजली" देने के लिए पर्याप्त बल दिया.

दिसंबर में, केजरीवाल ने ट्वीट किया, "स्कूलों, अस्पतालों, पानी और बिजली पर पांच साल का बढ़ता खर्च - सरप्लस राजस्व को बनाए रखने और दिल्ली के राजकोषीय स्वास्थ्य में सुधार करते हुए यह सब संभव है. यह संभव था क्योंकि दिल्ली में एक गैर-भ्रष्ट सरकार है, जो करदाता के हर पैसों का उपयोग लोक कल्याण पर करती है."

  • Five years of increased expenditure on schools, hospitals, water and power - all this while maintaining revenue surplus and improving Delhi's fiscal health. This was possible because Delhi has a non-corrupt govt which uses every paisa of taxpayer money on public welfare. pic.twitter.com/7RZpMHpezW

    — Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) December 3, 2019 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

आईएएनएस के साथ एक साक्षात्कार में, उन्होंने अपनी सफलता के लिए भ्रष्टाचार के अंत का दावा किया. वास्तव में, केजरीवाल सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए आए थे.

दिल्ली के मुख्यमंत्री ने दावा किया कि उनकी 'बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा' का खाका सब्सिडी पर आधारित नहीं था, बल्कि सिस्टम से भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करके पैसे की बचत थी.

(आईएएनएस की रिपोर्ट)

नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने शानदार जीत हासिल की. उनकी आम आदमी पार्टी (आप) 62 सीटें पर जीत दर्ज की है. जहां आप ने इसे 'सुशासन' की जीत करार दिया है, वहीं विपक्ष इसे आप द्वारा घोषित मुफ्त घोषणाओं के परिणाम के रूप में देखता है.

लेकिन केजरीवाल को इन खर्चों के लिए पैसे कहां से मिले? केजरीवाल एक चतुर 'बनिया' है, जिसने अपने राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए दिल्ली के स्वस्थ वित्त का विवेकपूर्ण उपयोग किया.

सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, 2016-17 में 1,051 करोड़ रुपये के राजकोषीय घाटे से, दिल्ली 2017-18 में 113 करोड़ रुपये के अधिशेष राज्य में बदल गया, जो कि सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 0.02 प्रतिशत था.

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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप मुख्यमंत्री व वित्त मंत्री मनीष सिसोदिया

कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली सरकार ने 2014-15 और 2017-18 के बीच प्राथमिक अधिशेष को बनाए रखा. यह 2017-18 में जीएसडीपी के 0.43 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 62.88 प्रतिशत बढ़ गया.

दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) में पिछले पांच वर्षों में अधिशेष राजस्व था. 2017-18 में इसमें 2.59 प्रतिशत की गिरावट आई, लेकिन यह जीएसडीपी का 0.72 प्रतिशत था.

सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017-18 में कुल 49,202.08 करोड़ रुपये के खर्च के मुकाबले 41,159.42 करोड़ रुपये खर्च हुए, जिससे 8,042.66 करोड़ रुपये की बचत हुई. यह 16.35 प्रतिशत की बचत थी.

ये भी पढ़ें:झटका: 144 रुपये बढ़ गए रसोई गैस सिलेंडर के दाम

इन आंकड़ों के साथ, दिल्ली से कई राज्य से ईर्ष्या कर रहे हैं और इसने केजरीवाल को "मुफ्त बिजली" देने के लिए पर्याप्त बल दिया.

दिसंबर में, केजरीवाल ने ट्वीट किया, "स्कूलों, अस्पतालों, पानी और बिजली पर पांच साल का बढ़ता खर्च - सरप्लस राजस्व को बनाए रखने और दिल्ली के राजकोषीय स्वास्थ्य में सुधार करते हुए यह सब संभव है. यह संभव था क्योंकि दिल्ली में एक गैर-भ्रष्ट सरकार है, जो करदाता के हर पैसों का उपयोग लोक कल्याण पर करती है."

  • Five years of increased expenditure on schools, hospitals, water and power - all this while maintaining revenue surplus and improving Delhi's fiscal health. This was possible because Delhi has a non-corrupt govt which uses every paisa of taxpayer money on public welfare. pic.twitter.com/7RZpMHpezW

    — Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) December 3, 2019 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

आईएएनएस के साथ एक साक्षात्कार में, उन्होंने अपनी सफलता के लिए भ्रष्टाचार के अंत का दावा किया. वास्तव में, केजरीवाल सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए आए थे.

दिल्ली के मुख्यमंत्री ने दावा किया कि उनकी 'बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा' का खाका सब्सिडी पर आधारित नहीं था, बल्कि सिस्टम से भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करके पैसे की बचत थी.

(आईएएनएस की रिपोर्ट)

Last Updated : Mar 1, 2020, 2:40 AM IST
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