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आईएलएंडएफएस मामला : एजेंसियों ने निवेशकों से ठगी के लिए फर्जी रेटिंग दी

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Published : Jun 13, 2019, 8:46 PM IST

दस्तावेजों से पता चलता है कि कई निवेशकों ने आईएल एंड एफएस की वित्तीय इकाई के एनसीडी और वाणिज्यिक पेपरों की खरीद की थी, क्योंकि उन्होंने यह फैसला रेटिंग एजेंसियों द्वारा दी गई उच्च रेटिंग को देखकर किया था.

आईएलएंडएफएस मामला : एजेंसियों ने निवेशकों से ठगी के लिए फर्जी रेटिंग दी

नई दिल्ली: आईएलएंडएफएस संकट में सबसे बड़े खलनायक क्रेडिट रेटिंग एजेंसिंया रही हैं, क्योंकि उन्होंने आईएल एंड एफएस फाइनेंसियल सर्विसेज (आईएफआईएस) के वाणिज्यिक पत्रों और गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर्स (एनसीडीज) को लगातार सकारात्मक और प्रभावशाली रेटिंग प्रदान की, जबकि कंपनी की वित्तीय हालत खस्ताहाल थी. गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) द्वारा कार्पोरेट मामलों के मंत्रालय को सौंपी गई जांच रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है.

दस्तावेजों से पता चलता है कि कई निवेशकों ने आईएल एंड एफएस की वित्तीय इकाई के एनसीडी और वाणिज्यिक पेपरों की खरीद की थी, क्योंकि उन्होंने यह फैसला रेटिंग एजेंसियों द्वारा दी गई उच्च रेटिंग को देखकर किया था.

केनरा एचएसबीसी ओबीसी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के मुख्य निवेश अधिकारी अनुराग जैन ने आईएफआईएन के वाणिज्यिक पेपरों में करीब 30 करोड़ रुपये एसीडीज में करीब 10 करोड़ रुपये का निवेश किया था. उन्होंने बताया कि उनका निवेश का फैसला मुख्य तौर से सीएआरई और आईसीआरए जैसी रेटिंग एजेंसियों द्वारा दी गई रेटिंग से प्रभावित था.

ये भी पढ़ें: बिश्केक पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी, भारत-किर्गिज बिजनेस फोरम का करेंगे उद्घाटन

एसएफआईओ के दस्तावेजों में जैन के हवाले से कहा गया, "आईएल एंड एएस/आईएफआईएन के पेपरों में निवेश मुख्य तौर पर सीएआरई और आईसीआरए जैसी रेटिंग एजेंसियों द्वारा दी गई रेटिंग से प्रभावित होकर किया गया, जिन्होंने कंपनी को अपनी श्रेणी में सबसे उच्च रेटिंग प्रदान की."

दस्तावेजों के मुताबिक, साल 2013 से 2018 के अवधि के दौरान जिन एजेंसियों ने आईएफआईएन को रेटिंग प्रदान की थी, उनमें सीएआरई रेटिंग्स, आईसीआरए लि., इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च और ब्रिकवर्क रेटिंग्स इंडिया शामिल हैं.

आईएफआईएन के एनसीडीज में करीब 115 रुपये के निवेश के साथ ही ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी ने भी आईएफआईएन को मिली रेटिंग के कारण धोखा खाया है.

ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी के डीजीएम दुष्यंत कुमार बागोती ने कहा, "ऋण प्रतिभूतियों के चयन का आधार वित्तीय, क्रेडिट रेटिंग और बाजार में उपलब्ध सर्वोत्तम यील्ड होता है. आईएफआईएन एक एनबीएफसी है और उसकी वित्तीय, क्रेडिट रेटिंग और बेहतर यील्ड के आधार पर, दो रेटिंग एजेंसियों, सीएआरई और इंडिया रेटिंग्स द्वारा आवंटित लगातार एएए रेटिंग के आधार कुछ फंडों द्वारा समय-समय पर लगातार इसमें निवेश किया गया."

न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी के प्रबंधक ज्ञानरंजन ने कहा, "अगर रेटिंग एए या उससे ऊपर है तो पुनर्भुगतान में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए."

न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी ने आईएफआईएन के एनसीडीज में 62 करोड़ रुपये का निवेश किया था.

रेटिंग एजेंसियों को लेकर एसएफआईओ ने दस्तावेज में कहा, "सभी चारों रेटिंग एजेंसियों ने आईएफआईएन के दीर्घकालिक और अल्पकालिक इंस्ट्रमेंट्स को उच्चतम रेटिंग प्रदान की, जबकि कंपनी का प्रबंधन लगातार असली तथ्य छुपा रहा था और धोखाधड़ी में लिप्त था."

दस्तावेज में कहा गया कि इसलिए आईएल एंड एफएस की चल रही जांच के सिलसिले में आईएफआईएन को उच्च रेटिंग देने वाली इन रेटिंग एजेंसियों की भी भूमिका की आगे जांच की जानी चाहिए.

इससे पहले आईएल एंड एफएस के मामले में कंपनी के ऑडिटर्स की भूमिका पर गंभीर सवाल उठे थे और क्रेडिट रेटिंग कंपनियां संदेह के दायरे में है.

वहीं, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) और आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) पहले से ही रेटिंग एजेसिंयों के परिचालन की कड़ी निगरानी कर रहा है और दोनों नियामकीय निकाय इन एजेंसियों के बिजनेस मॉडल की छानबीन कर रही हैं.

नई दिल्ली: आईएलएंडएफएस संकट में सबसे बड़े खलनायक क्रेडिट रेटिंग एजेंसिंया रही हैं, क्योंकि उन्होंने आईएल एंड एफएस फाइनेंसियल सर्विसेज (आईएफआईएस) के वाणिज्यिक पत्रों और गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर्स (एनसीडीज) को लगातार सकारात्मक और प्रभावशाली रेटिंग प्रदान की, जबकि कंपनी की वित्तीय हालत खस्ताहाल थी. गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) द्वारा कार्पोरेट मामलों के मंत्रालय को सौंपी गई जांच रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है.

दस्तावेजों से पता चलता है कि कई निवेशकों ने आईएल एंड एफएस की वित्तीय इकाई के एनसीडी और वाणिज्यिक पेपरों की खरीद की थी, क्योंकि उन्होंने यह फैसला रेटिंग एजेंसियों द्वारा दी गई उच्च रेटिंग को देखकर किया था.

केनरा एचएसबीसी ओबीसी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के मुख्य निवेश अधिकारी अनुराग जैन ने आईएफआईएन के वाणिज्यिक पेपरों में करीब 30 करोड़ रुपये एसीडीज में करीब 10 करोड़ रुपये का निवेश किया था. उन्होंने बताया कि उनका निवेश का फैसला मुख्य तौर से सीएआरई और आईसीआरए जैसी रेटिंग एजेंसियों द्वारा दी गई रेटिंग से प्रभावित था.

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एसएफआईओ के दस्तावेजों में जैन के हवाले से कहा गया, "आईएल एंड एएस/आईएफआईएन के पेपरों में निवेश मुख्य तौर पर सीएआरई और आईसीआरए जैसी रेटिंग एजेंसियों द्वारा दी गई रेटिंग से प्रभावित होकर किया गया, जिन्होंने कंपनी को अपनी श्रेणी में सबसे उच्च रेटिंग प्रदान की."

दस्तावेजों के मुताबिक, साल 2013 से 2018 के अवधि के दौरान जिन एजेंसियों ने आईएफआईएन को रेटिंग प्रदान की थी, उनमें सीएआरई रेटिंग्स, आईसीआरए लि., इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च और ब्रिकवर्क रेटिंग्स इंडिया शामिल हैं.

आईएफआईएन के एनसीडीज में करीब 115 रुपये के निवेश के साथ ही ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी ने भी आईएफआईएन को मिली रेटिंग के कारण धोखा खाया है.

ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी के डीजीएम दुष्यंत कुमार बागोती ने कहा, "ऋण प्रतिभूतियों के चयन का आधार वित्तीय, क्रेडिट रेटिंग और बाजार में उपलब्ध सर्वोत्तम यील्ड होता है. आईएफआईएन एक एनबीएफसी है और उसकी वित्तीय, क्रेडिट रेटिंग और बेहतर यील्ड के आधार पर, दो रेटिंग एजेंसियों, सीएआरई और इंडिया रेटिंग्स द्वारा आवंटित लगातार एएए रेटिंग के आधार कुछ फंडों द्वारा समय-समय पर लगातार इसमें निवेश किया गया."

न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी के प्रबंधक ज्ञानरंजन ने कहा, "अगर रेटिंग एए या उससे ऊपर है तो पुनर्भुगतान में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए."

न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी ने आईएफआईएन के एनसीडीज में 62 करोड़ रुपये का निवेश किया था.

रेटिंग एजेंसियों को लेकर एसएफआईओ ने दस्तावेज में कहा, "सभी चारों रेटिंग एजेंसियों ने आईएफआईएन के दीर्घकालिक और अल्पकालिक इंस्ट्रमेंट्स को उच्चतम रेटिंग प्रदान की, जबकि कंपनी का प्रबंधन लगातार असली तथ्य छुपा रहा था और धोखाधड़ी में लिप्त था."

दस्तावेज में कहा गया कि इसलिए आईएल एंड एफएस की चल रही जांच के सिलसिले में आईएफआईएन को उच्च रेटिंग देने वाली इन रेटिंग एजेंसियों की भी भूमिका की आगे जांच की जानी चाहिए.

इससे पहले आईएल एंड एफएस के मामले में कंपनी के ऑडिटर्स की भूमिका पर गंभीर सवाल उठे थे और क्रेडिट रेटिंग कंपनियां संदेह के दायरे में है.

वहीं, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) और आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) पहले से ही रेटिंग एजेसिंयों के परिचालन की कड़ी निगरानी कर रहा है और दोनों नियामकीय निकाय इन एजेंसियों के बिजनेस मॉडल की छानबीन कर रही हैं.

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नई दिल्ली: आईएलएंडएफएस संकट में सबसे बड़े खलनायक क्रेडिट रेटिंग एजेंसिंया रही हैं, क्योंकि उन्होंने आईएल एंड एफएस फाइनेंसियल सर्विसेज (आईएफआईएस) के वाणिज्यिक पत्रों और गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर्स (एनसीडीज) को लगातार सकारात्मक और प्रभावशाली रेटिंग प्रदान की, जबकि कंपनी की वित्तीय हालत खस्ताहाल थी. गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) द्वारा कार्पोरेट मामलों के मंत्रालय को सौंपी गई जांच रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है.

दस्तावेजों से पता चलता है कि कई निवेशकों ने आईएल एंड एफएस की वित्तीय इकाई के एनसीडी और वाणिज्यिक पेपरों की खरीद की थी, क्योंकि उन्होंने यह फैसला रेटिंग एजेंसियों द्वारा दी गई उच्च रेटिंग को देखकर किया था.

केनरा एचएसबीसी ओबीसी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के मुख्य निवेश अधिकारी अनुराग जैन ने आईएफआईएन के वाणिज्यिक पेपरों में करीब 30 करोड़ रुपये एसीडीज में करीब 10 करोड़ रुपये का निवेश किया था. उन्होंने बताया कि उनका निवेश का फैसला मुख्य तौर से सीएआरई और आईसीआरए जैसी रेटिंग एजेंसियों द्वारा दी गई रेटिंग से प्रभावित था.

एसएफआईओ के दस्तावेजों में जैन के हवाले से कहा गया, "आईएल एंड एएस/आईएफआईएन के पेपरों में निवेश मुख्य तौर पर सीएआरई और आईसीआरए जैसी रेटिंग एजेंसियों द्वारा दी गई रेटिंग से प्रभावित होकर किया गया, जिन्होंने कंपनी को अपनी श्रेणी में सबसे उच्च रेटिंग प्रदान की."

दस्तावेजों के मुताबिक, साल 2013 से 2018 के अवधि के दौरान जिन एजेंसियों ने आईएफआईएन को रेटिंग प्रदान की थी, उनमें सीएआरई रेटिंग्स, आईसीआरए लि., इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च और ब्रिकवर्क रेटिंग्स इंडिया शामिल हैं.

आईएफआईएन के एनसीडीज में करीब 115 रुपये के निवेश के साथ ही ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी ने भी आईएफआईएन को मिली रेटिंग के कारण धोखा खाया है.

ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी के डीजीएम दुष्यंत कुमार बागोती ने कहा, "ऋण प्रतिभूतियों के चयन का आधार वित्तीय, क्रेडिट रेटिंग और बाजार में उपलब्ध सर्वोत्तम यील्ड होता है. आईएफआईएन एक एनबीएफसी है और उसकी वित्तीय, क्रेडिट रेटिंग और बेहतर यील्ड के आधार पर, दो रेटिंग एजेंसियों, सीएआरई और इंडिया रेटिंग्स द्वारा आवंटित लगातार एएए रेटिंग के आधार कुछ फंडों द्वारा समय-समय पर लगातार इसमें निवेश किया गया."

न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी के प्रबंधक ज्ञानरंजन ने कहा, "अगर रेटिंग एए या उससे ऊपर है तो पुनर्भुगतान में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए."

न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी ने आईएफआईएन के एनसीडीज में 62 करोड़ रुपये का निवेश किया था.

रेटिंग एजेंसियों को लेकर एसएफआईओ ने दस्तावेज में कहा, "सभी चारों रेटिंग एजेंसियों ने आईएफआईएन के दीर्घकालिक और अल्पकालिक इंस्ट्रमेंट्स को उच्चतम रेटिंग प्रदान की, जबकि कंपनी का प्रबंधन लगातार असली तथ्य छुपा रहा था और धोखाधड़ी में लिप्त था."

दस्तावेज में कहा गया कि इसलिए आईएल एंड एफएस की चल रही जांच के सिलसिले में आईएफआईएन को उच्च रेटिंग देने वाली इन रेटिंग एजेंसियों की भी भूमिका की आगे जांच की जानी चाहिए.

इससे पहले आईएल एंड एफएस के मामले में कंपनी के ऑडिटर्स की भूमिका पर गंभीर सवाल उठे थे और क्रेडिट रेटिंग कंपनियां संदेह के दायरे में है.

वहीं, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) और आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) पहले से ही रेटिंग एजेसिंयों के परिचालन की कड़ी निगरानी कर रहा है और दोनों नियामकीय निकाय इन एजेंसियों के बिजनेस मॉडल की छानबीन कर रही हैं.

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