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Rhino day 2023 : दुधवा टाइगर रिजर्व में कभी थी 'बांके' की सल्तनत, अब चलता है 'रघू' व 'विजय' का राज

आज विश्व गैंडा दिवस है. यूपी के दुधवा टाइगर रिजर्व ( Dudhwa Rhinoceros Family) में बाघों के साथ ही गैंडों का भी अच्छा खासा कुनबा है. इनकी संख्या में लगातार बढ़ोतरी भी हो रही है.

Rhino day 2023
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 22, 2023, 7:47 PM IST

दुधवा टाइगर रिजर्व में बढ़ रहा गैंडों का कुनबा.
दुधवा टाइगर रिजर्व में बढ़ रहा गैंडों का कुनबा.

लखीमपुर-खीरी : सितंबर महीने की 22 तारीख को हर साल गैंडा दिवस मनाया जाता है. लोगों को गैंडों के प्रति जागरूक करने के लिए कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं. दुधवा टाइगर रिजर्व में गैंडों का ठीकठाक कुनबा रहता है. इस समय इनकी संख्या 46 है. एक दौर था जब यहां 'बांके' नाम के गैंडे की सल्तनत चलती थी, अब उसकी मौत हो चुकी है. अब 'रघु' और 'विजय' नाम के दो गैंडों का राज है. करीब 25 साल तक 'बांके' की एकतरफा सल्तनत रही. 'बांके' की मौत के बाद गैंडों का सरदार बनने के लिए 'रघु' और 'विजय' आमने-सामने हैं. नए खून में उबाल का नतीजा यह है कि आए दिन 'रघु' और 'विजय' में युद्द हो रहे हैं. नर गैंडा 'पवन' भी बीच-बीच में 'रघू' और 'विजय' को पटखनी देकर अपनी बादशाहत कायम करने की होड़ करता है.

दुधवा टाइगर रिजर्व में गैंडों की सख्या बढ़ रही है.
दुधवा टाइगर रिजर्व में गैंडों की सख्या बढ़ रही है.

भीमसेन और सहदेव ने भी छोड़ा साथ : दुधवा टाइगर रिजर्व में गैंडों के कुनबे को 'बांके' और 'राजू' के बाद अगर किसी ने चुनौती दी तो वो 'भीमसेन' और 'सहदेव' भी थे. मादा 'हेमरानी' और 'हेमवती' भी अब उम्र की ढलान पर हैं. कई नई मादाओं ने 'रघू' और 'भीमसेन' पर डोरे डाले. अपना वर्चस्व कायम करने को 'रघू' के साथ आए दिन भीमसेन की लड़ाइयां हुईं. इसी में 'भीमसेन' ने दम तक तोड़ दिया. इसके बाद 'सहदेव' ने भी रघु को चुनौती दी पर 'रघू' अब दुधवा के गैंडों का सरदार बन गया है. हालांकि 'रघू' से अब भी 'विजय' नाम का गैंडा मोर्चा ले रहा है.

साल 1984 में गैंडों को रिहेबिलिटेट किया गया था.
साल 1984 में गैंडों को रिहेबिलिटेट किया गया था.

1984 में बसा था गैंडों का परिवार : दुधवा टाइगर रिजर्व में 1984 में गैंडों को उनकी खोई जमीन पर 'रिहेबिलिटेट' किया गया था. यह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के व्यक्तिगत रुचि पर हुआ था. हवाई जहाज से असम से पांच मेल और फीमेल गैंडों को लाया गया था. गैंडों को तराई की धरती की आबोहवा खूब भाई. कुनबा फलने फूलने लगा. पहले 'राजू' फिर 'बांके' का बरसों तक गैंडों की सत्ता पर एकछत्र राज चलता रहा. करीब 25 सालों तक 'बांके' पूरे कुनबे पर अपने भारी भरकम डीलडौल और ताकत के बल पर राज करता रहा. अब दुधवा के सलूकापुर में चल रहे गैंडा पुनर्वासन केंद्र में 'बांके' की मौत के बाद कुनबे का सरदार बनने को दो युवा गैंडे बराबर कोशिश में जुटे हैं.

मादा को सम्मोहित करने को होती है लड़ाई : नई पीढ़ी का 'रघू' अपने आकर्षक गठीले शरीर सूझबूझ और ताकत के बल पर पूरे गैंडा कुनबे पर भारी साबित हो रहा है. 'रघू' दुधवा के मेल गैंडों में इस वक्त सबसे ताकतवर गैंडा है. 'रघू' की बादशाहत को फिलहाल 'भीमसेन' और 'सहदेव' की मौत के बाद अब 'विजय' ही चुनौती दे रहा है. आए दिन इन तीनों में भीषण लड़ाइयां होती हैं. वाइल्ड लाइफ के जानकार मोहम्मद शकील कहते हैं कि गैंडों में मादा को सम्मोहित करने और आधिपत्य दिखाने को लड़ाइयां होती हैं. 'बांके' की मौत के बाद कुनबे में सरदार बनने को नई पीढ़ी आगे आई है. 'सर्वाइवल आफ द फिटेस्ट' प्रकृति का नियम है.

टाइगर रिजर्व में  'रघू' व 'विजय' का राज चलता है.
टाइगर रिजर्व में 'रघू' व 'विजय' का राज चलता है.

असम के बाद दुधवा में सबसे ज्यादा गैंडे : दुधवा टाइगर रिजर्व में इस वक्त 46 गैंडों का परिवार फलफूल रहा है. पुनर्वासन केंद्र ने कई उतार-चढ़ाव और झटके भी खाए पर गैंडों की कालोनी तराई में रच बस गई. भारत में असम के बाद अगर सबसे ज्यादा गैंडे कहीं हैं तो वो यूपी के दुधवा टाइगर रिजर्व में है. असम के काजीरंगा, पवित्रा और मानस नेशनल पार्क के बाद तराई की धरती ही इस सबसे बड़े जीव से आबाद है.

इन ब्रीडिंग का है गैंडों पर खतरा : दुधवा टाइगर रिजर्व यूं तो देश विदेश में बाघों के लिए मशहूर है, लेकिन यहां गैंडों भी बड़ी तादाद में रहते हैं. 'बांके' नाम के मेल गैंडे की ही यहां सल्तनत चलती थी. मेटिंग के वक्त अपनी ताकत के दम पर भारी भरकम 'बांके' हर फीमेल पे डोरे डालने में सफल रहता था. गैंडों में मेटिंग के वक्त उनकी ताकत का खूब जोर चलता था. 1984 में दुधवा में शुरू हुए 'राइनो रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम' के बाद जो गैंडे असम से लाए गए थे, बांके नर उनमें से एक था. वह काफी ताकतवर माना जाता था. बांके के डील-डौल और आक्रामक स्वभाव ने ही उसे कुनबे का 'डोमिनेन्ट मेल' बना दिया था.

डीएनए की जांच में सब मिला ओके : दुधवा के गैंडा परिवार में आने वाली नई पीड़ियों के बारे में वाइल्ड लाइफ के जानकार कहने लगे कि एक ही पिता की संताने होने से यहां इनब्रीडिंग (आंतरिक प्रजनन)का खतरा बढ़ रहा है. विशेषज्ञों के लिए यह बात चिंता का विषय थी. इसी को लेकर दुधवा पार्क प्रसाशन ने डब्लूआईआई से गैंडो के डीएनए की जांच कराई. इसमें सब कुछ ओके मिला है. इन्ब्रीडिंग की कोई अलार्मिंग कंडीशन नहीं थी. पार्क के अफसरों ने इसी लिए दुधवा के गैंडों की खोई जमीन पर उनका कुनबा बढ़ाने को 'राइनो फेज 2' शुरू कर दिया, जिससे जीन को कोई खतरा न हो.

नर गैंडों की नई पीढ़ी तैयार : डब्लूडब्लूएफ के फील्ड कोआर्डिनेटर दबीर हसन कहते हैं कि सबसे अच्छी बात ये है कि नर गैंडों की एक नई पीढ़ी तैयार हो गई है, जो गैंडों के परिवार को बढ़ाने में सहायक हो रही है. दुधवा के ही भादी इलाके में एक नया गैंडों का फेन्स तैयार कर उसमें भी चार गैंडों को छोड़ा जा चुका है. फेज 2 में भी गैंडों का कुनबा बढ़ता जा रहा. आज वर्ल्ड राइनो डे पर हम सबकी जिम्मेदारी है कि गैंडों के संरक्षण की दिशा में पूरे प्रयास हो. 'रघु', 'विजय' या 'पवन' कौन दुधवा के गैंडों का नया सरदार बनता है, ये देखने वाली बात होगी.

यह भी पढ़ें : IUCN Red List में शामिल दुर्लभ 2900 गैंडों का घर है भारत, इसके संरक्षण के लिए उठाये जा रहे हैं कदम

चिड़ियाघर में विश्व गैंडा दिवस के मौके पर 'कीपर्स टॉक' का किया गया आयोजन

दुधवा टाइगर रिजर्व में बढ़ रहा गैंडों का कुनबा.
दुधवा टाइगर रिजर्व में बढ़ रहा गैंडों का कुनबा.

लखीमपुर-खीरी : सितंबर महीने की 22 तारीख को हर साल गैंडा दिवस मनाया जाता है. लोगों को गैंडों के प्रति जागरूक करने के लिए कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं. दुधवा टाइगर रिजर्व में गैंडों का ठीकठाक कुनबा रहता है. इस समय इनकी संख्या 46 है. एक दौर था जब यहां 'बांके' नाम के गैंडे की सल्तनत चलती थी, अब उसकी मौत हो चुकी है. अब 'रघु' और 'विजय' नाम के दो गैंडों का राज है. करीब 25 साल तक 'बांके' की एकतरफा सल्तनत रही. 'बांके' की मौत के बाद गैंडों का सरदार बनने के लिए 'रघु' और 'विजय' आमने-सामने हैं. नए खून में उबाल का नतीजा यह है कि आए दिन 'रघु' और 'विजय' में युद्द हो रहे हैं. नर गैंडा 'पवन' भी बीच-बीच में 'रघू' और 'विजय' को पटखनी देकर अपनी बादशाहत कायम करने की होड़ करता है.

दुधवा टाइगर रिजर्व में गैंडों की सख्या बढ़ रही है.
दुधवा टाइगर रिजर्व में गैंडों की सख्या बढ़ रही है.

भीमसेन और सहदेव ने भी छोड़ा साथ : दुधवा टाइगर रिजर्व में गैंडों के कुनबे को 'बांके' और 'राजू' के बाद अगर किसी ने चुनौती दी तो वो 'भीमसेन' और 'सहदेव' भी थे. मादा 'हेमरानी' और 'हेमवती' भी अब उम्र की ढलान पर हैं. कई नई मादाओं ने 'रघू' और 'भीमसेन' पर डोरे डाले. अपना वर्चस्व कायम करने को 'रघू' के साथ आए दिन भीमसेन की लड़ाइयां हुईं. इसी में 'भीमसेन' ने दम तक तोड़ दिया. इसके बाद 'सहदेव' ने भी रघु को चुनौती दी पर 'रघू' अब दुधवा के गैंडों का सरदार बन गया है. हालांकि 'रघू' से अब भी 'विजय' नाम का गैंडा मोर्चा ले रहा है.

साल 1984 में गैंडों को रिहेबिलिटेट किया गया था.
साल 1984 में गैंडों को रिहेबिलिटेट किया गया था.

1984 में बसा था गैंडों का परिवार : दुधवा टाइगर रिजर्व में 1984 में गैंडों को उनकी खोई जमीन पर 'रिहेबिलिटेट' किया गया था. यह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के व्यक्तिगत रुचि पर हुआ था. हवाई जहाज से असम से पांच मेल और फीमेल गैंडों को लाया गया था. गैंडों को तराई की धरती की आबोहवा खूब भाई. कुनबा फलने फूलने लगा. पहले 'राजू' फिर 'बांके' का बरसों तक गैंडों की सत्ता पर एकछत्र राज चलता रहा. करीब 25 सालों तक 'बांके' पूरे कुनबे पर अपने भारी भरकम डीलडौल और ताकत के बल पर राज करता रहा. अब दुधवा के सलूकापुर में चल रहे गैंडा पुनर्वासन केंद्र में 'बांके' की मौत के बाद कुनबे का सरदार बनने को दो युवा गैंडे बराबर कोशिश में जुटे हैं.

मादा को सम्मोहित करने को होती है लड़ाई : नई पीढ़ी का 'रघू' अपने आकर्षक गठीले शरीर सूझबूझ और ताकत के बल पर पूरे गैंडा कुनबे पर भारी साबित हो रहा है. 'रघू' दुधवा के मेल गैंडों में इस वक्त सबसे ताकतवर गैंडा है. 'रघू' की बादशाहत को फिलहाल 'भीमसेन' और 'सहदेव' की मौत के बाद अब 'विजय' ही चुनौती दे रहा है. आए दिन इन तीनों में भीषण लड़ाइयां होती हैं. वाइल्ड लाइफ के जानकार मोहम्मद शकील कहते हैं कि गैंडों में मादा को सम्मोहित करने और आधिपत्य दिखाने को लड़ाइयां होती हैं. 'बांके' की मौत के बाद कुनबे में सरदार बनने को नई पीढ़ी आगे आई है. 'सर्वाइवल आफ द फिटेस्ट' प्रकृति का नियम है.

टाइगर रिजर्व में  'रघू' व 'विजय' का राज चलता है.
टाइगर रिजर्व में 'रघू' व 'विजय' का राज चलता है.

असम के बाद दुधवा में सबसे ज्यादा गैंडे : दुधवा टाइगर रिजर्व में इस वक्त 46 गैंडों का परिवार फलफूल रहा है. पुनर्वासन केंद्र ने कई उतार-चढ़ाव और झटके भी खाए पर गैंडों की कालोनी तराई में रच बस गई. भारत में असम के बाद अगर सबसे ज्यादा गैंडे कहीं हैं तो वो यूपी के दुधवा टाइगर रिजर्व में है. असम के काजीरंगा, पवित्रा और मानस नेशनल पार्क के बाद तराई की धरती ही इस सबसे बड़े जीव से आबाद है.

इन ब्रीडिंग का है गैंडों पर खतरा : दुधवा टाइगर रिजर्व यूं तो देश विदेश में बाघों के लिए मशहूर है, लेकिन यहां गैंडों भी बड़ी तादाद में रहते हैं. 'बांके' नाम के मेल गैंडे की ही यहां सल्तनत चलती थी. मेटिंग के वक्त अपनी ताकत के दम पर भारी भरकम 'बांके' हर फीमेल पे डोरे डालने में सफल रहता था. गैंडों में मेटिंग के वक्त उनकी ताकत का खूब जोर चलता था. 1984 में दुधवा में शुरू हुए 'राइनो रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम' के बाद जो गैंडे असम से लाए गए थे, बांके नर उनमें से एक था. वह काफी ताकतवर माना जाता था. बांके के डील-डौल और आक्रामक स्वभाव ने ही उसे कुनबे का 'डोमिनेन्ट मेल' बना दिया था.

डीएनए की जांच में सब मिला ओके : दुधवा के गैंडा परिवार में आने वाली नई पीड़ियों के बारे में वाइल्ड लाइफ के जानकार कहने लगे कि एक ही पिता की संताने होने से यहां इनब्रीडिंग (आंतरिक प्रजनन)का खतरा बढ़ रहा है. विशेषज्ञों के लिए यह बात चिंता का विषय थी. इसी को लेकर दुधवा पार्क प्रसाशन ने डब्लूआईआई से गैंडो के डीएनए की जांच कराई. इसमें सब कुछ ओके मिला है. इन्ब्रीडिंग की कोई अलार्मिंग कंडीशन नहीं थी. पार्क के अफसरों ने इसी लिए दुधवा के गैंडों की खोई जमीन पर उनका कुनबा बढ़ाने को 'राइनो फेज 2' शुरू कर दिया, जिससे जीन को कोई खतरा न हो.

नर गैंडों की नई पीढ़ी तैयार : डब्लूडब्लूएफ के फील्ड कोआर्डिनेटर दबीर हसन कहते हैं कि सबसे अच्छी बात ये है कि नर गैंडों की एक नई पीढ़ी तैयार हो गई है, जो गैंडों के परिवार को बढ़ाने में सहायक हो रही है. दुधवा के ही भादी इलाके में एक नया गैंडों का फेन्स तैयार कर उसमें भी चार गैंडों को छोड़ा जा चुका है. फेज 2 में भी गैंडों का कुनबा बढ़ता जा रहा. आज वर्ल्ड राइनो डे पर हम सबकी जिम्मेदारी है कि गैंडों के संरक्षण की दिशा में पूरे प्रयास हो. 'रघु', 'विजय' या 'पवन' कौन दुधवा के गैंडों का नया सरदार बनता है, ये देखने वाली बात होगी.

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