ETV Bharat / bharat

प्रीमैच्योर बर्थ जटिलाओं के कारण भारत में सालाना 3.50 लाख से अधिक बच्चों की होती है मौत

समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं और उनके परिवारों के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ ऐसे परिवारों के लिए एकजुटता और करुणा प्रदर्शित करने के लिए हर साल 17 नवंबर को वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे मनाया जाता है. ये भी पढ़ें..World Prematurity Day, World Prematurity Day 2023, Neonatal Mortality Rate, National Family Health Survey 5.

World Prematurity Day 2023
वर्ल्ड प्रीमैच्योर दिवस
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 15, 2023, 9:08 PM IST

Updated : Nov 17, 2023, 11:59 AM IST

हैदराबाद : नवजात शिशु शायद दुनिया भर में सबसे असुरक्षित आबादी (Most Vulnerable Population The World) हैं. समय से पहले पैदा हुए बच्चे या बहुत जल्दी पैदा हुए बच्चे, 37 सप्ताह से कम गर्भावस्था, विशेष रूप से जोखिम में हैं. वर्तमान में, दुनिया भर में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु का प्रमुख कारण समय से पहले जन्म है. बाद में जीवन में विकलांगता और खराब स्वास्थ्य का एक प्रमुख कारण है. दुनिया भर में समय से पहले जन्म के 60 प्रतिशत से अधिक मामले उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया ( Sub-Saharan Africa and south Asia) में हैं.

प्रत्येक वर्ष समय से पहले जन्म लेने वाले 1.5 करोड़ (15 मिलियन) शिशुओं में से 10 लाख से अधिक की मृत्यु समय से पहले प्रीमैच्योर जन्म से संबंधित जटिलताओं के कारण हो जाती है. जन्म के समय कम वजन (नवजात शिशुओं का वजन 2,500 ग्राम से कम) जन्म के समय, समय से पहले जन्म और/या गर्भाशय में सीमित वृद्धि के कारण, वैश्विक स्तर पर नवजात और बच्चों की मृत्यु के साथ-साथ दिव्यांगता और गैर-संचारी रोगों का भी एक बड़ा कारण है.

भारत में प्रीमैच्योर बच्चों की स्थिति

  1. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) का सर्वे 2019-21 में किया गया था.
  2. विश्लेषण के लिए सैंपल के तौर पर हाल में जन्म लेने वाले 170253 बच्चों के डेट का उपयोग किया गया.
  3. NFHS-5 सर्वे के अनुसार भारत में हर साल 3341000 प्रीमैच्योर बच्चों का जन्म होता है.
  4. प्रीमैच्योर जन्म के कारण होने वाली जटिलताओं के कारण पांच साल से कम उम्र के 361600 बच्चे की मौत हो जाती है.
  5. भारत में 2019-21 में अनुमानित 12 फीसदी बच्चे एलबीडब्ल्यू (Low Birth Rate-LBW) थे.
  6. वहीं इस दौरान 18 फीसदी बच्चे पीटीबी (Pre Term Birth- PTB) थे.
  7. देश भर में एलबीडब्ल्यू और पीटीबी की गणना सैंपल के आधार पर होता है.
  8. पीटीबी और एलबीडब्ल्यू की व्यापकता में अलग-अलग राज्यों में काफी असमान्यताएं हैं.
  9. एलबीडब्ल्यू और पीटीबी के सहसंबंधों का विश्लेषण (Correlates of LBW and PTB) लॉजिस्टिक मॉडल (Logistic Models) का उपयोग करके किया गया है.
  10. LBW और PTB बच्चों के जन्म के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं. मातृ प्रसूति और मानवशास्त्रीय कारक (Maternal obstetric And Anthropometric Factors) जैसे प्रसवपूर्व देखभाल की कमी, पूर्व में हुए सीजेरियन डिलीवरी, कम कद वाली माताएं सहित अन्य मानक शामिल हैं.

प्रीमैच्योर बच्चों के मामलों में 5 टॉप देश

  1. संयुक्त राष्ट्र से जुड़े रिपोर्ट के अनुसार बीते दशक में 15.20 करोड़ (152 मिलियन) प्रीमैच्योर बच्चों का जन्म हुआ था.
  2. 2020 यानि कोरोना महामारी वर्ष में, यह संख्या 13.4 Crore (13.4 मिलियन) थी.
  3. उस साल, भारत उन टॉप पांच देशों में से एक था जहां प्रीमैच्योर बच्चों का जन्म हुआ. अर्थात गर्भावस्था के 37 सप्ताह से पहले जीवित बच्चे पैदा हुए थे (पूर्णकालिक गर्भावस्था के विपरीत यानि कम से कम 39 सप्ताह).
  4. भारत में 2020 के दौरान प्रीमैच्योर जन्म बच्चों की अनुमानित संख्या सबसे अधिक 30,16,700 थी. भारत के बाद पाकिस्तान (9.14 लाख से काफी पीछे), नाइजीरिया (7.74 लाख) का स्थान था. इसके बाद चीन (7.52 लाख) और इथियोपिया (4.95 लाख) था.

वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे का इतिहास
वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे की नींव का इतिहास 1997 माना जाता है. जब यूरोप की सिल्के मैडर नामक एक महिला जुड़वां बच्चों की उम्मीद कर रही थीं. गर्भावस्था के 25वें सप्ताह में उनकी समय से पहले डिलीवरी हो गई, एक की एक सप्ताह के बाद मृत्यु हो गई और दूसरी अब एक स्वस्थ किशोरी बन रही है. इस चुनौतीपूर्ण अनुभव ने सिल्के मैडर को सिखाया कि समय से पहले बच्चों की देखभाल में स्थान-संबंधित अंतराल होते हैं. 2008 में, उन्होंने नवजात शिशुओं की देखभाल के लिए यूरोपीय फाउंडेशन (The European Foundation For The Care Of Newborn Infants-EFCNI) की सह-स्थापना की.

वह पीडी डॉ. मैथियास केलर, नियोनेटोलॉजिस्ट, थॉमस फोरिंगर, वकील और जुर्गन पॉप, पिता, जिन्होंने अपने तीन बच्चों को समय से पहले खो दिया था, के साथ जुड़ गईं. तब से, उनका उद्देश्य यूरोपीय स्तर पर समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं और उनके परिवारों की देखभाल और स्थिति में सार्थक सुधार करना रहा है. अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए, उन्होंने 2009 में, अंतरराष्ट्रीय समयपूर्वता जागरूकता दिवस बनाया, जिसे कुछ साल बाद वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे नाम दिया गया. इस दिन को एक अंतरमहाद्वीपीय आंदोलन के रूप में मनाने के लिए अफ्रीका, संयुक्त राज्य अमेरिका और अमेरिका के देशों के संस्थापक संगठन एक साथ आए. चुनौतियों को पहचानने, जागरूकता बढ़ाने और समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं और उनके परिवारों की मदद करने के लिए 100 से अधिक देश एक साथ आए हैं.

वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे का महत्व

  1. प्रीमैच्योर जन्म लेने वाले शिशुओं और कई बार मां के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव के बारे में सभी लोग पर्याप्त मात्रा में जागरूक हों.
  2. गर्भावस्था के आखिरी हफ्तों तक भ्रूण में मस्तिष्क और फेफड़े जैसे अंग विकसित नहीं होते हैं, इसलिए जन्म के बाद बच्चे के मानसिक व शारीरिक कठिनाइयों से पीड़ित होने की संभावना होती है.
  3. लोगों को सामान्य रूप से यह नहीं पता है कि समय से पहले जन्मे बच्चों की माताएं आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने में सहायक हो सकती हैं क्योंकि स्तन के दूध में अतिरिक्त प्रोटीन, खनिज और वसा होते हैं जो बच्चे के विकास के लिए आवश्यक होते हैं.
  4. जागरूकता अभियान को गंभीरता से लेना महत्वपूर्ण है क्योंकि समय से पहले जन्म लेने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है. लोग गर्भावस्था की अवधि और शिशु के वजन के आधार पर समय से पहले जन्म लेने वाले विभिन्न प्रकार के बच्चों से अनजान होते हैं.

प्रीमैच्योर बर्थ निवारक उपायों को सुदृढ़ करना:
वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे, समयपूर्व जन्म की संभावनाओं को रोकने और पता लगाने के महत्व को बढ़ावा देता है. साथ ही जटिलताओं को कम करने के लिए शिशुओं के लिए सक्रिय देखभाल सुनिश्चित करता है और समयपूर्व जन्म से जुड़े जोखिमों को उजागर करके समयपूर्व शिशुओं की देखभाल को प्रोत्साहित करता है.

अनुसंधान को प्रोत्साहित करना:
वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे, इस समस्या के बारे में विस्तृत रिसर्स को बढ़ावा, समर्थन और प्रोत्साहित करने का अवसर है. इससे प्रीमैच्योर जन्म की रोकथाम, बेहतर प्रबंधन, देखभाल में मदद मिलेगी. साथ ही समय से प्रीमैच्योर बर्थ के परिणामों और जटिलताओं से निपटने के लिए उपचार आसानी से उपलब्ध होंगे. दुनिया भर के संगठनों और स्वयंसेवकों के योगदान के माध्यम से, हम भविष्य में दुश्मनों को स्वस्थ और मजबूत बनाने के लिए चिकित्सीय देखभाल के विकास में तेजी ला सकते हैं.

वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे 2023 थीम
वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे 2023 के लिए ग्लोबल थीम 'छोटे कार्य, बड़ा प्रभाव: हर जगह हर बच्चे के लिए तत्काल त्वचा से त्वचा की देखभाल' (Small Action Big Impact : Immediate Skin To Skin Care For Every Baby Everywhere) तय किया गया है. वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे का थीम त्वचा से त्वचा का संपर्क हर बच्चे के लिए काफी प्रभावी साबित हुआ है. खासकर प्रीमैच्योर जन्मे लेने वाले बच्चों के लिए.

प्रीटर्म को गर्भावस्था के 37 सप्ताह पूरे होने से पहले जीवित जन्मे बच्चों के रूप में परिभाषित किया गया है. गर्भकालीन आयु के आधार पर समय से पहले जन्म की उप-श्रेणियों में बांटा गया है.

  1. अत्यधिक अपरिपक्व (Extremely preterm) -28 सप्ताह से कम
  2. बहुत समय से पहले (Very Preterm) - 28 से 32 सप्ताह से कम
  3. मध्यम से देर से समयपूर्व (Moderate To Late Preterm) - 32 से 37 सप्ताह

ये भी पढ़ें

हैदराबाद : नवजात शिशु शायद दुनिया भर में सबसे असुरक्षित आबादी (Most Vulnerable Population The World) हैं. समय से पहले पैदा हुए बच्चे या बहुत जल्दी पैदा हुए बच्चे, 37 सप्ताह से कम गर्भावस्था, विशेष रूप से जोखिम में हैं. वर्तमान में, दुनिया भर में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु का प्रमुख कारण समय से पहले जन्म है. बाद में जीवन में विकलांगता और खराब स्वास्थ्य का एक प्रमुख कारण है. दुनिया भर में समय से पहले जन्म के 60 प्रतिशत से अधिक मामले उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया ( Sub-Saharan Africa and south Asia) में हैं.

प्रत्येक वर्ष समय से पहले जन्म लेने वाले 1.5 करोड़ (15 मिलियन) शिशुओं में से 10 लाख से अधिक की मृत्यु समय से पहले प्रीमैच्योर जन्म से संबंधित जटिलताओं के कारण हो जाती है. जन्म के समय कम वजन (नवजात शिशुओं का वजन 2,500 ग्राम से कम) जन्म के समय, समय से पहले जन्म और/या गर्भाशय में सीमित वृद्धि के कारण, वैश्विक स्तर पर नवजात और बच्चों की मृत्यु के साथ-साथ दिव्यांगता और गैर-संचारी रोगों का भी एक बड़ा कारण है.

भारत में प्रीमैच्योर बच्चों की स्थिति

  1. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) का सर्वे 2019-21 में किया गया था.
  2. विश्लेषण के लिए सैंपल के तौर पर हाल में जन्म लेने वाले 170253 बच्चों के डेट का उपयोग किया गया.
  3. NFHS-5 सर्वे के अनुसार भारत में हर साल 3341000 प्रीमैच्योर बच्चों का जन्म होता है.
  4. प्रीमैच्योर जन्म के कारण होने वाली जटिलताओं के कारण पांच साल से कम उम्र के 361600 बच्चे की मौत हो जाती है.
  5. भारत में 2019-21 में अनुमानित 12 फीसदी बच्चे एलबीडब्ल्यू (Low Birth Rate-LBW) थे.
  6. वहीं इस दौरान 18 फीसदी बच्चे पीटीबी (Pre Term Birth- PTB) थे.
  7. देश भर में एलबीडब्ल्यू और पीटीबी की गणना सैंपल के आधार पर होता है.
  8. पीटीबी और एलबीडब्ल्यू की व्यापकता में अलग-अलग राज्यों में काफी असमान्यताएं हैं.
  9. एलबीडब्ल्यू और पीटीबी के सहसंबंधों का विश्लेषण (Correlates of LBW and PTB) लॉजिस्टिक मॉडल (Logistic Models) का उपयोग करके किया गया है.
  10. LBW और PTB बच्चों के जन्म के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं. मातृ प्रसूति और मानवशास्त्रीय कारक (Maternal obstetric And Anthropometric Factors) जैसे प्रसवपूर्व देखभाल की कमी, पूर्व में हुए सीजेरियन डिलीवरी, कम कद वाली माताएं सहित अन्य मानक शामिल हैं.

प्रीमैच्योर बच्चों के मामलों में 5 टॉप देश

  1. संयुक्त राष्ट्र से जुड़े रिपोर्ट के अनुसार बीते दशक में 15.20 करोड़ (152 मिलियन) प्रीमैच्योर बच्चों का जन्म हुआ था.
  2. 2020 यानि कोरोना महामारी वर्ष में, यह संख्या 13.4 Crore (13.4 मिलियन) थी.
  3. उस साल, भारत उन टॉप पांच देशों में से एक था जहां प्रीमैच्योर बच्चों का जन्म हुआ. अर्थात गर्भावस्था के 37 सप्ताह से पहले जीवित बच्चे पैदा हुए थे (पूर्णकालिक गर्भावस्था के विपरीत यानि कम से कम 39 सप्ताह).
  4. भारत में 2020 के दौरान प्रीमैच्योर जन्म बच्चों की अनुमानित संख्या सबसे अधिक 30,16,700 थी. भारत के बाद पाकिस्तान (9.14 लाख से काफी पीछे), नाइजीरिया (7.74 लाख) का स्थान था. इसके बाद चीन (7.52 लाख) और इथियोपिया (4.95 लाख) था.

वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे का इतिहास
वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे की नींव का इतिहास 1997 माना जाता है. जब यूरोप की सिल्के मैडर नामक एक महिला जुड़वां बच्चों की उम्मीद कर रही थीं. गर्भावस्था के 25वें सप्ताह में उनकी समय से पहले डिलीवरी हो गई, एक की एक सप्ताह के बाद मृत्यु हो गई और दूसरी अब एक स्वस्थ किशोरी बन रही है. इस चुनौतीपूर्ण अनुभव ने सिल्के मैडर को सिखाया कि समय से पहले बच्चों की देखभाल में स्थान-संबंधित अंतराल होते हैं. 2008 में, उन्होंने नवजात शिशुओं की देखभाल के लिए यूरोपीय फाउंडेशन (The European Foundation For The Care Of Newborn Infants-EFCNI) की सह-स्थापना की.

वह पीडी डॉ. मैथियास केलर, नियोनेटोलॉजिस्ट, थॉमस फोरिंगर, वकील और जुर्गन पॉप, पिता, जिन्होंने अपने तीन बच्चों को समय से पहले खो दिया था, के साथ जुड़ गईं. तब से, उनका उद्देश्य यूरोपीय स्तर पर समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं और उनके परिवारों की देखभाल और स्थिति में सार्थक सुधार करना रहा है. अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए, उन्होंने 2009 में, अंतरराष्ट्रीय समयपूर्वता जागरूकता दिवस बनाया, जिसे कुछ साल बाद वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे नाम दिया गया. इस दिन को एक अंतरमहाद्वीपीय आंदोलन के रूप में मनाने के लिए अफ्रीका, संयुक्त राज्य अमेरिका और अमेरिका के देशों के संस्थापक संगठन एक साथ आए. चुनौतियों को पहचानने, जागरूकता बढ़ाने और समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं और उनके परिवारों की मदद करने के लिए 100 से अधिक देश एक साथ आए हैं.

वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे का महत्व

  1. प्रीमैच्योर जन्म लेने वाले शिशुओं और कई बार मां के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव के बारे में सभी लोग पर्याप्त मात्रा में जागरूक हों.
  2. गर्भावस्था के आखिरी हफ्तों तक भ्रूण में मस्तिष्क और फेफड़े जैसे अंग विकसित नहीं होते हैं, इसलिए जन्म के बाद बच्चे के मानसिक व शारीरिक कठिनाइयों से पीड़ित होने की संभावना होती है.
  3. लोगों को सामान्य रूप से यह नहीं पता है कि समय से पहले जन्मे बच्चों की माताएं आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने में सहायक हो सकती हैं क्योंकि स्तन के दूध में अतिरिक्त प्रोटीन, खनिज और वसा होते हैं जो बच्चे के विकास के लिए आवश्यक होते हैं.
  4. जागरूकता अभियान को गंभीरता से लेना महत्वपूर्ण है क्योंकि समय से पहले जन्म लेने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है. लोग गर्भावस्था की अवधि और शिशु के वजन के आधार पर समय से पहले जन्म लेने वाले विभिन्न प्रकार के बच्चों से अनजान होते हैं.

प्रीमैच्योर बर्थ निवारक उपायों को सुदृढ़ करना:
वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे, समयपूर्व जन्म की संभावनाओं को रोकने और पता लगाने के महत्व को बढ़ावा देता है. साथ ही जटिलताओं को कम करने के लिए शिशुओं के लिए सक्रिय देखभाल सुनिश्चित करता है और समयपूर्व जन्म से जुड़े जोखिमों को उजागर करके समयपूर्व शिशुओं की देखभाल को प्रोत्साहित करता है.

अनुसंधान को प्रोत्साहित करना:
वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे, इस समस्या के बारे में विस्तृत रिसर्स को बढ़ावा, समर्थन और प्रोत्साहित करने का अवसर है. इससे प्रीमैच्योर जन्म की रोकथाम, बेहतर प्रबंधन, देखभाल में मदद मिलेगी. साथ ही समय से प्रीमैच्योर बर्थ के परिणामों और जटिलताओं से निपटने के लिए उपचार आसानी से उपलब्ध होंगे. दुनिया भर के संगठनों और स्वयंसेवकों के योगदान के माध्यम से, हम भविष्य में दुश्मनों को स्वस्थ और मजबूत बनाने के लिए चिकित्सीय देखभाल के विकास में तेजी ला सकते हैं.

वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे 2023 थीम
वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे 2023 के लिए ग्लोबल थीम 'छोटे कार्य, बड़ा प्रभाव: हर जगह हर बच्चे के लिए तत्काल त्वचा से त्वचा की देखभाल' (Small Action Big Impact : Immediate Skin To Skin Care For Every Baby Everywhere) तय किया गया है. वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे का थीम त्वचा से त्वचा का संपर्क हर बच्चे के लिए काफी प्रभावी साबित हुआ है. खासकर प्रीमैच्योर जन्मे लेने वाले बच्चों के लिए.

प्रीटर्म को गर्भावस्था के 37 सप्ताह पूरे होने से पहले जीवित जन्मे बच्चों के रूप में परिभाषित किया गया है. गर्भकालीन आयु के आधार पर समय से पहले जन्म की उप-श्रेणियों में बांटा गया है.

  1. अत्यधिक अपरिपक्व (Extremely preterm) -28 सप्ताह से कम
  2. बहुत समय से पहले (Very Preterm) - 28 से 32 सप्ताह से कम
  3. मध्यम से देर से समयपूर्व (Moderate To Late Preterm) - 32 से 37 सप्ताह

ये भी पढ़ें

Last Updated : Nov 17, 2023, 11:59 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.