हैदराबाद : कोरोना वायरस महामारी के बीच भारतीय छात्रों की विदेश यात्रा फिर शुरू हो गई है. इस साल 55,000 से ज्यादा इंडियन स्टूडेंट पढाई-लिखाई के लिए अमेरिका जा रहे हैं. अमेरिकी दूतावास ने सोमवार को ट्वीट कर इस आंकड़े की जानकारी दी है. इसके साथ ही ऑस्ट्रेलिया और कई यूरोपीय देशों के दरवाजे भी इंडियन स्टूडेंट के लिए खुलने की उम्मीद जगी है. कोविड प्रोटोकॉल के तहत कई देशों ने स्टूडेंट वीजा जारी करने पर रोक लगा दी थी.
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Huge congratulations to our hardworking consular teams across the U.S. Mission in India. This year, more than 55K students are boarding planes to study in the United States, an all-time record in India. Wishing all students a successful academic year! https://t.co/t3ieDOoGvF pic.twitter.com/cGK4WsmcYn
— U.S. Embassy India (@USAndIndia) August 23, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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नए देशों में भी बढ़ी इंडियन स्टूडेंट की जमात
कोरोना के कहर और वैक्सिनेशन को लेकर देशों की पॉलिसी के कारण पिछले साल के मुकाबले 2021 में कम भारतीय छात्रों ने विदेश जाने में रुचि दिखाई. मगर यह रुझान फिर बढ़ा है. अमेरिकी और यूके के विश्वविद्यालयों में एडमिशन के लिए सेशन शुरू हो गया है. यह तादाद और बढ़ेगी. एजुकेशन के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था लीवरेज एडु के सर्वे में सामने आया कि भारतीय छात्रों को पसंदीदा ठिकाना बदल रहा है. यह सर्वेक्षण 2021 की शुरुआत में किया गया था. सर्वे के अनुसार, विदेश जाने वाले छात्र अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, कनाडा और यूके को पसंद कर रहे हैं. इसके साथ ही शॉर्ट टर्म कोर्सेज के लिए आयरलैंड, न्यूजीलैंड और संयुक्त अरब अमीरात भी नया डेस्टिनेशन बना है.
यूनेस्को के आंकड़ों के अनुसार 2019 में कुल 10.9 लाख भारतीय छात्रों ने उच्च शिक्षा के लिए विदेश यात्रा की थी. यह 2018 के 7.5 लाख के आंकड़े से 45 प्रतिशत ज्यादा थी. जनवरी 2021 तक 85 देशों में 1 मिलियन से अधिक भारतीय छात्र पढ़ाई कर रहे थे. सबसे अधिक स्टूडेंट अमेरिका में पढ़ रहे हैं. 2020 में 2 लाख 7 हजार भारतीय छात्र अमेरिका गए थे. भारतीय छात्र अमेरिका की इकोनॉमी में फीस और अन्य खर्चों की बदौलत 7.6 बिलियन डॉलर का योगदान करते हैं.
दूसरा नंबर कनाडा का है. 2019 तक, कनाडा में 2 लाख19 हजार 855 से अधिक भारतीय स्टूडेंट वीजा के आधार पर रह रहे थे. 2015 में यह संख्या सिर्फ 48,765 ही थी. रिपोर्टस के अनुसार, अमेरिका के एच-1बी वीजा जारी करने के पॉलिसी में बदलाव के कारण भारतीय छात्र कनाडा में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में प्रवासी छात्रों के लिए वीजा पर रोक लगी है. इस कारण कनाडा की तरफ भारतीय छात्रों का रुझान बढ़ा है.
हालांकि 2021 तक ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों की संख्या 77,000 थी. मार्च 2020 में महामारी की चपेट में आने के बाद से, लगभग 38,000 भारतीय छात्रों ने ऑस्ट्रेलिया छोड़ दिया था. इसके अलावा 2021 तक 6,500 भारतीय छात्र रूस के संस्थानों में रजिस्टर्ड हैं. स्पेन में भी इंडियन स्टूडेंट्स की संख्या 4,500 है.
कई देशों में पढ़ाई के साथ पार्ट टाइम नौकरी के ऑप्शन
भारतीय स्टूडेंट्स के बीच विदेशों में पढ़ाई करने की ललक और बढ़ी है क्योंकि कई देशों ने अपनी अप्रवासन नीतियों में बदलाव किए हैं. भारतीय छात्र कम लागत और अधिकतम कैरियर अवसर की तलाश करते हैं, जो ऑस्ट्रेलिया और कनाडा की पॉलिसी में ज्यादा फिट बैठती है. कनाडा ने 2006 में पोस्ट-ग्रेजुएशन वर्क परमिट प्रोग्राम (PGWPP) शुरू किया था, जो छात्रों को पढ़ाई के साथ नौकरी करने की अनुमति देता है. इससे कनाडा में परमानेंट सेटल के चांस भी बन जाते हैं. इसी तरह 1999 के बाद से ऑस्ट्रेलिया ने अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को ऑस्ट्रेलिया में स्थायी निवास के लिए प्रोत्साहित किया.
एजुकेशन के बाद वर्किंग वीजा का लालच
यूनाइटेड किंगडम यानी ब्रिटेन ने 2011 में पढ़ाई खत्म करने के बाद काम के अधिकारों को समाप्त करने दिया था. इस कारण यूके में भारतीय छात्रों की संख्या 2011 में 38,677 से गिरकर 2016 में 16,655 हो गई. ब्रिटेन की सरकार ने सितंबर 2019 में दोबारा दो साल की पढ़ाई के बाद के कार्य वीजा की घोषणा की. इसका असर यह है कि 2020 में 55 हजार 465 हो गई. अमेरिका में पढ़ाई के दौरान कई मैनेजमेंट कोर्सेज में पार्ट टाइम जॉब ऑफर किए जाते हैं. इसके बाद वर्किंग वीजा मिलने की राह आसान हो जाती है. अगर कोई 6 साल तक H1B वीजा के आधार पर काम कर लेता है तो ग्रीन कार्ड मिलने की संभावना बढ़ जाती है.
भारत में वर्ल्ड क्लास यूनिवर्सिटी की कमी
भारत में वर्ल्ड क्लास यूनिवर्सिटी की कमी है. आईआईटी तथा आईआईएम को छोड़ दें भारत में विश्वस्तरीय शिक्षण संस्थान नहीं हैं. 2021 में जारी रैकिंग के अनुसार, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस (IISc) बेंगलुरु, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) मुंबई और आईआईटी दिल्ली ही टॉप-200 में जगह बना सकी. दूसरी ओर, कई प्राइवेट यूनिवर्सिटी वर्ल्ड क्लास होने का दावा करती है, मगर वह रैकिंग में कभी नहीं आती है.
आरक्षण की मार, मैनेजमेंट कोटे में महंगा डोनेशन
भारत के सरकारी कॉलेजों और यूनिवर्सिटी में सामान्य जाति वालों के लिए काफी उच्च मानक हैं. उदाहरण के लिए नीट ( NEET) को लें. इसमें सरकारी नियमों के अनुसार, ओबीसी के लिए 27% सीटें, ईडब्ल्यूएस के लिए 10% सीटें, एससी के लिए 15% सीटें और एसटी के लिए 7.5% सीटें केंद्रीय विश्वविद्यालयों और स्टेट मेडिकल कॉलेजों में आरक्षित हैं. दूसरी ओर, अगर स्टूडेंट भारत के अच्छे प्रफेशनल प्राइवेट कॉलेजों के मैनेजमेंट कोटे में एडमिशन लेता है तो उसकी लागत अप्रत्यक्ष तौर पर विदेशों में पढ़ाई के बराबर ही आती है. इसलिए भारतीय छात्र विदेशों में कैरियर की तलाश करते हैं.
भारत में विदेशी डिग्रियों का ग्लैमर
भारत की मैनेजमेंट और आईटी सेक्टर की मल्टिनैशनल कंपनियां आईआईएम और आईआईटी के अलावा अन्य भारतीय विश्वविद्यालयों की डिग्री को ज्यादा महत्व नहीं देती है. जब कंपनियों के पास विदेश से डिग्री लेकर आए स्टूडेंट और भारत के नामी यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले छात्र में एक चुनने का मौका मिलता है तो वह विदेशी डिग्री को तवज्जो देती है. कंपनियों का मानना है कि विदेशी संस्थानों में छात्रों को अलग-अलग संस्कृतियों को समझने का बेहतर अवसर मिलता है, इसलिए वह ज्यादा योग्य हैं.
टूटा मिथक, बच्चे को विदेश में पढ़ाने के लिए जमीन बेचना जरूरी नहीं
इंटरनेट के प्रति जागरूकता के कारण पिछले 10 साल में विदेशों में पढ़ाई को लेकर कई ऐसे मिथक टूटे, जिसे अज्ञानता के कारण खुद ब खुद गढ़ लिया गया था. अब आम लोगों को यह पता चल गया है कि विदेशों में पढ़ाई करने के लिए जमीन जायदाद बेचने की जरूरत नहीं है. अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, जापान और कई यूरोपीय देश भारतीय छात्रों को मेरिट के आधार पर स्कॉलरशिप भी प्रदान करते हैं. इसके अलावा कई विदेशी संस्था भी एशियाई छात्रों के लिए स्कॉलरशिप प्रोग्राम चलाती है. साथ ही इंडिया की नामचीन प्राइवेट यूनिवर्सिटी में यह सुविधा उपलब्ध नहीं है. इसके अलावा बैंक भी चयनित कोर्सेज के लिए एजुकेशन लोन देता है. इसके अलावा यह धारणा भी दूर हुई कि भाषा और क्षेत्र के कारण भारतीय छात्रों की यूरोपीय देशों में उपेक्षा होती है.
यह माना जा रहा है कि जैसे-जैसे विदेश की यूनिवर्सिटीज की जानकारी भारत के लोगों को मिलेगी, वैसे विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या भी बढ़ोतरी होगी.