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ममता पर हुए कथित हमले के बाद क्यों असहज हुई भाजपा ? - टीएमसी हमलावर नंदीग्राम

नंदीग्राम और सिंगूर में आंदोलन का नेतृत्व कर ममता बनर्जी ने 2011 में सत्ता पर कब्जा जमाया था. एक बार फिर से वही नंदीग्राम चर्चा में है. लेकिन इस बार आंदोलन नहीं, बल्कि ममता पर हुए कथित हमले को लेकर मुद्दा गरम है. भाजपा इसे बखूबी समझ रही है. अब जबकि ममता ने ऐलान कर दिया है कि वह व्हील चेयर पर प्रचार करेंगी, भाजपा के लिए आने वाले दिनों में चुनौती कड़ी होगी.

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प. बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह
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Published : Mar 12, 2021, 4:18 PM IST

हैदराबाद : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर नंदीग्राम में हुए कथित हमले के बाद राज्य की सियासत में नया मोड़ आ गया है. तृणमूल कांग्रेस ने इसे 'बंगाल की शेरनी' पर हमला बताया है. पार्टी का कहना है कि न तो प्रधानमंत्री और न ही गृह मंत्री ने पूरे मामले पर अपना बयान दिया है. इन दोनों नेताओं ने ममता से फोनकर हाल भी नहीं पूछा है.

दरअसल, चुनाव से ठीक पहले टीएमसी को अचानक ही एक ऐसा मुद्दा मिल गया है, जिसका पार्टी अधिकतम राजनीतिक फायदा उठाना चाहती है. ममता बनर्जी ने घोषणा कर दी है कि वह व्हील चेयर पर प्रचार करेंगी. अब सच्चाई क्या है, यह तो जांच के बाद ही पता चल पाएगा, लेकिन इतना तो तया है कि प्रचार के दौरान इसका राजनीतिक संदेश बहुत प्रभावकारी हो सकती है. भाजपा इसे भलीभांति जानती है. इसलिए वह नई रणनीति पर विचार कर रही है.

ममता के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले शुभेंदु अधिकारी भी इसे अच्छी तरह जानते हैं. यही वजह है कि नामांकन दाखिल करने से पहले उन्होंने कहा कि वह विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ेंगे. उन्हें पता था कि दुर्घटना से संबंधित कुछ भी बयान देंगे, तो ममता उसका फायदा उठाएंगी.

टीएमसी सुप्रीमो ममता राजनीति की मंझी हुई खिलाड़ी हैं. 1974-75 से ही वह राजनीति में हैं. मुद्दों को कैसे उछाला जाता है, वह बखूबी जानती हैं.

ममता बनर्जी ने अपने कार्यों से अपनी छवि एक जुझारू नेता के तौर पर बनाई है. चार दशक के राजनीतिक करियर में चाहे उन पर हमले हुए हों या वह चोटिल हुई हों, हर बार वह अपने सार्वजनिक जीवन में मजबूती से उभरकर सामने आई हैं.

ऐसी घटनाओं के बाद जब-जब उन्होंने वापसी की, अपने विरोधियों पर और मजबूती से हमलावर हुईं.

1990 में सीपीएम के एक युवा नेता (लालू आलम) ने उनके सिर पर वार किया था, जिसके चलते उन्हें पूरे महीने अस्पताल में बिताना पड़ा था. लेकिन उसके बाद वह बेहद मजबूत नेता के तौर पर उभरीं.

जुलाई 1993 में बनर्जी जब युवा कांग्रेस नेता थीं, तब फोटो मतदाता पहचान पत्र की मांग को लेकर उस वक्त के सचिवालय राइटर्स बिल्डिंग की ओर एक रैली का नेतृत्व करने के दौरान पुलिस ने उनकी पिटाई की थी.

रैली में शामिल प्रदर्शनकारियों की पुलिस से झड़प हुई थी, जिसमें पुलिस की गोली लगने से युवा कांग्रेस के 14 कार्यकर्ताओं की मौत हो गई थी और पुलिस की पिटाई से घायल बनर्जी को कई हफ्तों तक अस्पताल में बिताना पड़ा था.

नंदीग्राम में उनका मुकाबला अपने पूर्व राजनीतिक समर्थक और अब भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी से है. उनके राजनीतिक करियर में नंदीग्राम की अहम भूमिका है, क्योंकि 2007 में किसानों के जमीन अधिग्रहण के खिलाफ ऐतिहासिक आंदोलन और पुलिस के साथ संघर्ष तथा हिंसा के बाद वह बड़ी नेता के तौर पर उभरी थीं.

इसी आंदोलन की लहर से उन्होंने 2011 में वामपंथियों के सबसे लंबे शासन का अंत किया और पश्चिम बंगाल में माकपा के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे के 34 साल के शासन को उखाड़ फेंका.

तृणमूल नेता सौगत राय ने मीडिया से कहा कि ममता एक योद्धा हैं. आप उन पर जितना हमला करेंगे, वह उतनी मजबूती से वापसी करेंगी.

भाजपा ने बनर्जी के आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि वह सिर्फ सहानुभूति वोट बटोरने की कोशिश कर रही हैं.

पश्चिम बंगाल में भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष ने मामले में सीबीआई जांच की मांग की और कहा कि यह देखना जरूरी है कि कहीं यह सहानुभूति वोट बटोरने के लिए 'नाटक' तो नहीं है क्योंकि राज्य के लोग पहले भी ऐसे नाटक देख चुके हैं.

कांग्रेस ने भी नंदीग्राम में बनर्जी पर हमले को लेकर उनकी आलोचना की. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने बुधवार को बनर्जी पर विधानसभा चुनाव में वोट के लिए सहानुभूति बटोरने का आरोप लगाया.

हैदराबाद : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर नंदीग्राम में हुए कथित हमले के बाद राज्य की सियासत में नया मोड़ आ गया है. तृणमूल कांग्रेस ने इसे 'बंगाल की शेरनी' पर हमला बताया है. पार्टी का कहना है कि न तो प्रधानमंत्री और न ही गृह मंत्री ने पूरे मामले पर अपना बयान दिया है. इन दोनों नेताओं ने ममता से फोनकर हाल भी नहीं पूछा है.

दरअसल, चुनाव से ठीक पहले टीएमसी को अचानक ही एक ऐसा मुद्दा मिल गया है, जिसका पार्टी अधिकतम राजनीतिक फायदा उठाना चाहती है. ममता बनर्जी ने घोषणा कर दी है कि वह व्हील चेयर पर प्रचार करेंगी. अब सच्चाई क्या है, यह तो जांच के बाद ही पता चल पाएगा, लेकिन इतना तो तया है कि प्रचार के दौरान इसका राजनीतिक संदेश बहुत प्रभावकारी हो सकती है. भाजपा इसे भलीभांति जानती है. इसलिए वह नई रणनीति पर विचार कर रही है.

ममता के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले शुभेंदु अधिकारी भी इसे अच्छी तरह जानते हैं. यही वजह है कि नामांकन दाखिल करने से पहले उन्होंने कहा कि वह विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ेंगे. उन्हें पता था कि दुर्घटना से संबंधित कुछ भी बयान देंगे, तो ममता उसका फायदा उठाएंगी.

टीएमसी सुप्रीमो ममता राजनीति की मंझी हुई खिलाड़ी हैं. 1974-75 से ही वह राजनीति में हैं. मुद्दों को कैसे उछाला जाता है, वह बखूबी जानती हैं.

ममता बनर्जी ने अपने कार्यों से अपनी छवि एक जुझारू नेता के तौर पर बनाई है. चार दशक के राजनीतिक करियर में चाहे उन पर हमले हुए हों या वह चोटिल हुई हों, हर बार वह अपने सार्वजनिक जीवन में मजबूती से उभरकर सामने आई हैं.

ऐसी घटनाओं के बाद जब-जब उन्होंने वापसी की, अपने विरोधियों पर और मजबूती से हमलावर हुईं.

1990 में सीपीएम के एक युवा नेता (लालू आलम) ने उनके सिर पर वार किया था, जिसके चलते उन्हें पूरे महीने अस्पताल में बिताना पड़ा था. लेकिन उसके बाद वह बेहद मजबूत नेता के तौर पर उभरीं.

जुलाई 1993 में बनर्जी जब युवा कांग्रेस नेता थीं, तब फोटो मतदाता पहचान पत्र की मांग को लेकर उस वक्त के सचिवालय राइटर्स बिल्डिंग की ओर एक रैली का नेतृत्व करने के दौरान पुलिस ने उनकी पिटाई की थी.

रैली में शामिल प्रदर्शनकारियों की पुलिस से झड़प हुई थी, जिसमें पुलिस की गोली लगने से युवा कांग्रेस के 14 कार्यकर्ताओं की मौत हो गई थी और पुलिस की पिटाई से घायल बनर्जी को कई हफ्तों तक अस्पताल में बिताना पड़ा था.

नंदीग्राम में उनका मुकाबला अपने पूर्व राजनीतिक समर्थक और अब भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी से है. उनके राजनीतिक करियर में नंदीग्राम की अहम भूमिका है, क्योंकि 2007 में किसानों के जमीन अधिग्रहण के खिलाफ ऐतिहासिक आंदोलन और पुलिस के साथ संघर्ष तथा हिंसा के बाद वह बड़ी नेता के तौर पर उभरी थीं.

इसी आंदोलन की लहर से उन्होंने 2011 में वामपंथियों के सबसे लंबे शासन का अंत किया और पश्चिम बंगाल में माकपा के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे के 34 साल के शासन को उखाड़ फेंका.

तृणमूल नेता सौगत राय ने मीडिया से कहा कि ममता एक योद्धा हैं. आप उन पर जितना हमला करेंगे, वह उतनी मजबूती से वापसी करेंगी.

भाजपा ने बनर्जी के आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि वह सिर्फ सहानुभूति वोट बटोरने की कोशिश कर रही हैं.

पश्चिम बंगाल में भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष ने मामले में सीबीआई जांच की मांग की और कहा कि यह देखना जरूरी है कि कहीं यह सहानुभूति वोट बटोरने के लिए 'नाटक' तो नहीं है क्योंकि राज्य के लोग पहले भी ऐसे नाटक देख चुके हैं.

कांग्रेस ने भी नंदीग्राम में बनर्जी पर हमले को लेकर उनकी आलोचना की. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने बुधवार को बनर्जी पर विधानसभा चुनाव में वोट के लिए सहानुभूति बटोरने का आरोप लगाया.

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