लखनऊ : बिहार में हुई जातिगत जनगणना के बाद अब देश भर में जातीय आधारित जनगणना कराने की बहस छिड़ गई है. तमाम राजनीतिक दल केंद्र सरकार से राष्ट्रीय स्तर पर जातीय जनगणना कराने की मांग कर रहे हैं. हालांकि जातीय जनगणना का सबसे अहम पक्ष ये है कि इसमें जिन जातियों की संख्या एक परसेंट से नीचे या फिर दो से तीन परसेंट है उनके लिए सरकार आरक्षण को लेकर क्या व्यवस्था करेगी या इसमें क्या हो सकता है? इसे लेकर "ईटीवी भारत" ने विशेषज्ञ से बातचीत की.
राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय का कहना है कि 'बिहार में जातिगत जनगणना के जो आंकड़े आए हैं उसमें कोई चौंकाने वाली बात नहीं है. उसमें सिर्फ एक नई बात है कि जो मुस्लिम आबादी वहां पिछली जनगणना में 15% एज्यूम की जाती थी वह थोड़ी सी बढ़ी हुई है. बाकी जितने भी आंकड़े आए हैं वह सब एस्टीमेट है. वहां के पॉलिटिकल सिस्टम के लोग जो बात करते थे कि यादव इतने परसेंट और दूसरी जाति के इतने परसेंट हैं वह उतने ही आए हैं. इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी वर्गों को मिलाकर चाहे सामान्य वर्ग हो, दलित वर्ग हो, अति पिछड़ा या फिर पिछड़ा. बिहार में 25 जातियां ही ऐसी हैं जिनकी आबादी एक परसेंट से ज्यादा है और बाकी 183 और जातियां हैं उन सबकी आबादी एक परसेंट से कम है. खास बात यह है कि क्या उन सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक तौर पर पिछड़े उन 1% आबादी वाले लोगों को उनका हक मिलेगा? यानी जो एक-एक परसेंट वाली या एक परसेंट से कम वाली जातियां हैं उनका हक मिल पाएगा, क्योंकि बहुत सी ऐसी जातियां हैं जिनके समाज से कोई जिला पंचायत सदस्य तक नहीं हुआ है तो विधायक होना तो दूर की बात है. इन एक परसेंट या इससे नीचे के लिए क्या फार्मूला लेकर आएंगे? क्या कोटे में कोटा करेंगे या क्या फार्मूला हो सकता है, मुझे लगता है कि यह सबसे इंपोर्टेंट बात है.'
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उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो उत्तर प्रदेश में हुकुम सिंह कमेटी ने जो रिपोर्ट दी थी और जो 1931 की जातीय जनगणना हुई उसके हिसाब से देखेंगे तो यहां भी 24 जातियां ऐसी हैं जिनकी आबादी एक परसेंट से अधिक है. बाकी सभी जातियों की आबादी एक परसेंट से नीचे है. यानी वह .9%, .8% या .5% है तो जातीय जनगणना के बाद इनके लिए क्या फार्मूला होगा? क्या तरीका होगा? राजनीति में उनकी भागीदारी कैसे होगी? जो 30 वर्षों में जातियां संपन्न हो चुकी हैं आरक्षण का लाभ उठा चुकी हैं और प्रूवैन है? क्या उनको आरक्षण से बाहर किया जाएगा या वह कोशिश करेंगे. इस तरह की भी मांग सामने आ सकती है. यूपी में 21 परसेंट एससी, एसटी हैं और 54 परसेंट ओबीसी हैं इनमें मुस्लिम ओबीसी को मिलाकर यह जातियां हैं. मंडल आयोग ने पिछड़े वर्ग में मुसलमानों को शामिल करके उन्हें आरक्षण दिया था. अलग-अलग सरकारों में 1991 से 2000 के बीच 24 नई जातियों को ओबीसी घोषित किया गया था. उन सबको मिलाने के बाद 74% या 75% के करीब उत्तर प्रदेश में भी पिछड़े और दलित हैं.