नई दिल्ली: संसद की सुरक्षा में सेंध लगाने के मामले में कानून के जानकारों का मानना है कि लचीले कानूनों के चलते इस मामले को बहुत करीने से जांचना होगा. सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि संसद में कूद जाना, चूंकि कोई जघन्य अपराध नहीं है इसलिए इस केस में आरोपियों से पूछताछ की जानी चाहिए.
उन्होंने कहा कि 'चूंकि हमारे पास ऐसा कोई स्पेशल कानून नहीं है कि संसद में कूद जाना या सुप्रीम कोर्ट की इमारत के भीतर कूद जाना कोई जघन्य अपराध हो. इस एंगल को लेकर इन लोगों ने किसी न किसी से ओपिनियन ली होगी, इन्हें पता चला होगा कि ये कोई गंभीर अपराध नहीं है, इसमें दस-पांच साल की भी सज़ा नहीं होगी. इसलिए इन लोगों ने ये कदम उठाया होगा.'
जानकार मानते हैं कि फिलहाल वो साधारण ट्रेसपासिंग का मामला बनता है, इसलिए इन आरोपियों का नार्को-पोलिग्राफ-ब्रेन मैंपिंग टेस्ट करना चाहिए और इनका पिछले 15 दिन का कॉल डिटेल भी निकाला चाहिए, जिससे जानकारी मिले कि इन्होंने किस-किस से बात की है, किससे व्हाट्सएप पर चैट की है. अश्विनी उपाध्याय कहते हैं कि मुमकिन है कि उन्हें किसी तरह का राजनैतिक संरक्षण भी प्राप्त हो.
उन्होंने कहा कि 'देखना होगा कि उन्हें कौन संरक्षण दे रहा है. वो तभी पता चल पाएगा, जब इनकी पूरी सीडीआर निकाली जाए और पॉलीग्राफ-ब्रेन मैंपिंग की जाएगी. कानून की निगाह में ये कोई गंभीर अपराध नहीं बनता. सिम्पल ट्रैसपासिंग का मामला बन सकता है. संसद में कूदने पर कोई अपराध नहीं बनता है. ये देखना होगा कि एफआईआर में क्या धाराएं लगाईं हैं. लेकिन पुलिस कुछ भी लगा ले, ट्रायल तो कोर्ट में कानून के ऊपर चलेगा. मेरी समझ में संसद में कूदना कोई जघन्य अपराध हो, ऐसा कानून नहीं है.'
जानकार मानते हैं कि ये भी हो सकता है कि इन लोगों ने फोन पर प्लानिंग न की हो, आपस में मीटिंग कर के योजना बनाई हो. बाकायदा इसकी रेकी हुई होगी कि किया जा सकता है या नहीं, कौन सी चीज़ गेट पर पकड़ी जा सकती है, कौन सी नहीं. ये सारा करने के बाद ये काम किया गया. जूते में मेटल डिटेक्ट हो जाता है, इसमें मेटल था नहीं. इसलिए पता नहीं चला. इसलिए इस मामले की तह तक जाना चाहिए.