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आखिर कब तक 'श्रापित' रहेगा मुख्यमंत्री आवास, क्या कभी टूटेगा मिथक ? - मुख्यमंत्री आवास को लेकर चले आ रहे मिथक की चर्चाएं

उत्तराखंड में एक तरफ जहां मुख्यमंत्री की तलाश तेज है, वहीं एक बार फिर से मुख्यमंत्री आवास को लेकर चले आ रहे मिथक की चर्चाएं भी तेज हो गई है. मुख्यमंत्री आवास के मिथक जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर...

मुख्यमंत्री आवास
मुख्यमंत्री आवास
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Published : Mar 15, 2022, 9:17 PM IST

देहरादून : उत्तराखंड विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Assembly Election) में भारतीय जनता पार्टी ने 47 सीटों पर जीत हासिल कर राज्य में शानदार जीत हालिस की है. हालांकि, जिस सीएम चेहरे पर भाजपा ने चुनाव लड़ा था, वह पुष्कर सिंह धामी अपनी सीट बचाने में नाकामयाब रहे. जिसके बाद से प्रदेश का अगला सीएम कौन होगा, यह चर्चा का विषय बना हुआ है. वहीं, इसके अलावा एक और विषय इन दिनों सियासी गलियारों में चर्चा में है, जो है मुख्यमंत्री आवास.

सीएम आवास को लेकर मिथक: उत्तराखंड में मुख्यमंत्री आवास हमेशा से चर्चाओं में (Uttarakhand CM house in discussion) रहा है. वहीं, पुष्कर सिंह धामी की हार के बाद एक बार फिर से सियासी गलियारों में इसकी चर्चा है. ऐसा मिथक है कि राज्य गठन के बाद से आज तक कोई भी सीएम इस मुख्यमंत्री आवास से पांच साल की सरकार नहीं चला पाया. जो उत्तराखंड की राजनीतिक परिस्थितियों (Uttarakhand political situation) के साथ इन दिनों कहीं ना कहीं सच साबित होता दिखाई दे रहा है.

देहरादून स्थित करोड़ों की लागत से बना यह सीएम का आलिशान आवास फिर से यह चर्चाएं जोरों (Uttarakhand CM residence Myths) पर है कि चार साल मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी और अब पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री बनने के बाद ना केवल अपना चुनाव हारे हैं, बल्कि पार्टी आलाकमान यह तय नहीं कर पाया है कि धामी को ही मुख्यमंत्री बनाना है या नहीं.

बीजेपी की जीत, धामी की हार: पुष्कर सिंह धामी के छह महीने के कार्यकाल के बाद यह सवाल एक बार फिर से चर्चा जोरों पर है कि क्या धामी इस बार अपना सीएम पद का टिकट पक्का कर पाएंगे या नहीं. मुख्यमंत्री आवास में रहने वाले सभी सीएम के बारे में देखा जाए तो यह मिथक सटीक साबित होता दिखाई देता है. सीएम आवास के बारे में मिथक है कि जो भी सीएम यहां आकर रहता है, वह अपना पांच सालों का कार्य पूरा नहीं कर पाता है.

बेहद शानदार है सरकारी आवास: देहरादून राजधानी में मुख्यमंत्री का आवास बेहद शानदार क्षेत्र में बना हुआ है. घर के दो बड़े दरवाजे हैं, जिन्हें पहाड़ी शैली से बनाया गया है. मुख्य दरवाजे के अंदर दाखिल होते ही बड़ा सा बगीचा है. बगीचे में तरह-तरह के महंगे पेड़ पौधे लगाए हुए हैं.

पहाड़ी शैली में निर्मित: पहाड़ी शैली से मुख्य दरवाजे के बाद मुख्य बिल्डिंग बनी हुई है. महंगी लकड़ियों से खिड़की और दरवाजे बनाए गए हैं. पहाड़ी शैली में डिजाइन किया गया 60 कमरों वाला विशाल बंगला 2010 में बनाया गया था. इसमें एक बैडमिंटन कोर्ट, स्विमिंग पूल, कई लॉन, सीएम और उनके स्टाफ सदस्यों के लिए अलग-अलग कार्यालय हैं. अंदर दाखिल होते हुए राजस्थानी पत्थरों से किए गए काम नजर आते हैं. मुख्यमंत्री के दफ्तर को बेहद शानदार तरीके से बनाया गया है. दफ्तर के अलावा मुख्यमंत्री के घर में भी दो बड़े-बड़े ऑफिस हैं, जहां पर बैठकर मुख्यमंत्री अपने काम देखते हैं. पब्लिक के लिए एक बड़ा हॉल है, जहां पर सोफे और कुर्सियां रखी हुई हैं. घर के बैक साइड में ही मुख्यमंत्री का दफ्तर है.

एनडी तिवारी के कार्यकाल में बना था आवास: गढ़ी कैंट में राजभवन के बराबर में बने मुख्यमंत्री आवास का निर्माण कार्य तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी की सरकार में हुआ था. हालांकि, जबतक मुख्यमंत्री आवास का निर्माण कार्य पूरा होता, उसके पहले ही उनका पांच साल का कार्यकाल पूरा हो गया. इसके बाद 2007 में बीजेपी की सरकार बनी और प्रदेश की कमान मुख्यमंत्री के तौर पर बीसी खंडूड़ी को मिली. खंडूड़ी ने अधूरे बंगले का पूरा निर्माण करवाया. मुख्यमंत्री के तौर पर खंडूड़ी ने ही इस बंगले का उद्घाटन किया, लेकिन वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और ढाई साल बाद ही उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ी. उसके बाद तो जैसे मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाने का सिलसिला ही चल पड़ा.

ऐसे उड़ी अफवाहें: पूर्व सीएम निशंक और बाद में विजय बहुगुणा को उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले हटा दिया गया था. जिसके बाद इस आवास के अपशकुनी होने की चर्चाएं होने लगीं. पूर्व सीएम हरीश रावत भी इसी वजह से सरकारी आवास में शिफ्ट नहीं हुए और स्टेट गेस्ट हाउस में रहना पसंद किया. साल 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत इस बंगले में शिफ्ट हुए और बाद में उन्हें भी सीएम पद से हटा दिया गया. दिलचस्प बात यह है कि पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत यहां नहीं रहे पर तब भी उन्हें सीएम पद छोड़ना पड़ा.

धामी को सीएम बनाने को लेकर संशय: बता दें कि, मुख्यमंत्री रहते हुए बीसी खंडूड़ी, डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक, विजय बहुगुणा या फिर त्रिवेंद्र सिंह रावत जो भी इस आवास में रहा है, किसी का कार्यकाल पूरा नहीं हुआ है. इसके बावजूद एक बार फिर से सीएम पुष्कर सिंह धामी ने इस मिथक को चुनौती देते हुए मुख्यमंत्री आवास की ओर रूख किया है. लेकिन भाजपा की सत्ता में वापसी होने के बावजूद, धामी के चुनाव हार जाने से उनके मुख्यमंत्री बनने को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है.

देहरादून : उत्तराखंड विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Assembly Election) में भारतीय जनता पार्टी ने 47 सीटों पर जीत हासिल कर राज्य में शानदार जीत हालिस की है. हालांकि, जिस सीएम चेहरे पर भाजपा ने चुनाव लड़ा था, वह पुष्कर सिंह धामी अपनी सीट बचाने में नाकामयाब रहे. जिसके बाद से प्रदेश का अगला सीएम कौन होगा, यह चर्चा का विषय बना हुआ है. वहीं, इसके अलावा एक और विषय इन दिनों सियासी गलियारों में चर्चा में है, जो है मुख्यमंत्री आवास.

सीएम आवास को लेकर मिथक: उत्तराखंड में मुख्यमंत्री आवास हमेशा से चर्चाओं में (Uttarakhand CM house in discussion) रहा है. वहीं, पुष्कर सिंह धामी की हार के बाद एक बार फिर से सियासी गलियारों में इसकी चर्चा है. ऐसा मिथक है कि राज्य गठन के बाद से आज तक कोई भी सीएम इस मुख्यमंत्री आवास से पांच साल की सरकार नहीं चला पाया. जो उत्तराखंड की राजनीतिक परिस्थितियों (Uttarakhand political situation) के साथ इन दिनों कहीं ना कहीं सच साबित होता दिखाई दे रहा है.

देहरादून स्थित करोड़ों की लागत से बना यह सीएम का आलिशान आवास फिर से यह चर्चाएं जोरों (Uttarakhand CM residence Myths) पर है कि चार साल मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी और अब पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री बनने के बाद ना केवल अपना चुनाव हारे हैं, बल्कि पार्टी आलाकमान यह तय नहीं कर पाया है कि धामी को ही मुख्यमंत्री बनाना है या नहीं.

बीजेपी की जीत, धामी की हार: पुष्कर सिंह धामी के छह महीने के कार्यकाल के बाद यह सवाल एक बार फिर से चर्चा जोरों पर है कि क्या धामी इस बार अपना सीएम पद का टिकट पक्का कर पाएंगे या नहीं. मुख्यमंत्री आवास में रहने वाले सभी सीएम के बारे में देखा जाए तो यह मिथक सटीक साबित होता दिखाई देता है. सीएम आवास के बारे में मिथक है कि जो भी सीएम यहां आकर रहता है, वह अपना पांच सालों का कार्य पूरा नहीं कर पाता है.

बेहद शानदार है सरकारी आवास: देहरादून राजधानी में मुख्यमंत्री का आवास बेहद शानदार क्षेत्र में बना हुआ है. घर के दो बड़े दरवाजे हैं, जिन्हें पहाड़ी शैली से बनाया गया है. मुख्य दरवाजे के अंदर दाखिल होते ही बड़ा सा बगीचा है. बगीचे में तरह-तरह के महंगे पेड़ पौधे लगाए हुए हैं.

पहाड़ी शैली में निर्मित: पहाड़ी शैली से मुख्य दरवाजे के बाद मुख्य बिल्डिंग बनी हुई है. महंगी लकड़ियों से खिड़की और दरवाजे बनाए गए हैं. पहाड़ी शैली में डिजाइन किया गया 60 कमरों वाला विशाल बंगला 2010 में बनाया गया था. इसमें एक बैडमिंटन कोर्ट, स्विमिंग पूल, कई लॉन, सीएम और उनके स्टाफ सदस्यों के लिए अलग-अलग कार्यालय हैं. अंदर दाखिल होते हुए राजस्थानी पत्थरों से किए गए काम नजर आते हैं. मुख्यमंत्री के दफ्तर को बेहद शानदार तरीके से बनाया गया है. दफ्तर के अलावा मुख्यमंत्री के घर में भी दो बड़े-बड़े ऑफिस हैं, जहां पर बैठकर मुख्यमंत्री अपने काम देखते हैं. पब्लिक के लिए एक बड़ा हॉल है, जहां पर सोफे और कुर्सियां रखी हुई हैं. घर के बैक साइड में ही मुख्यमंत्री का दफ्तर है.

एनडी तिवारी के कार्यकाल में बना था आवास: गढ़ी कैंट में राजभवन के बराबर में बने मुख्यमंत्री आवास का निर्माण कार्य तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी की सरकार में हुआ था. हालांकि, जबतक मुख्यमंत्री आवास का निर्माण कार्य पूरा होता, उसके पहले ही उनका पांच साल का कार्यकाल पूरा हो गया. इसके बाद 2007 में बीजेपी की सरकार बनी और प्रदेश की कमान मुख्यमंत्री के तौर पर बीसी खंडूड़ी को मिली. खंडूड़ी ने अधूरे बंगले का पूरा निर्माण करवाया. मुख्यमंत्री के तौर पर खंडूड़ी ने ही इस बंगले का उद्घाटन किया, लेकिन वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और ढाई साल बाद ही उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ी. उसके बाद तो जैसे मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाने का सिलसिला ही चल पड़ा.

ऐसे उड़ी अफवाहें: पूर्व सीएम निशंक और बाद में विजय बहुगुणा को उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले हटा दिया गया था. जिसके बाद इस आवास के अपशकुनी होने की चर्चाएं होने लगीं. पूर्व सीएम हरीश रावत भी इसी वजह से सरकारी आवास में शिफ्ट नहीं हुए और स्टेट गेस्ट हाउस में रहना पसंद किया. साल 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत इस बंगले में शिफ्ट हुए और बाद में उन्हें भी सीएम पद से हटा दिया गया. दिलचस्प बात यह है कि पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत यहां नहीं रहे पर तब भी उन्हें सीएम पद छोड़ना पड़ा.

धामी को सीएम बनाने को लेकर संशय: बता दें कि, मुख्यमंत्री रहते हुए बीसी खंडूड़ी, डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक, विजय बहुगुणा या फिर त्रिवेंद्र सिंह रावत जो भी इस आवास में रहा है, किसी का कार्यकाल पूरा नहीं हुआ है. इसके बावजूद एक बार फिर से सीएम पुष्कर सिंह धामी ने इस मिथक को चुनौती देते हुए मुख्यमंत्री आवास की ओर रूख किया है. लेकिन भाजपा की सत्ता में वापसी होने के बावजूद, धामी के चुनाव हार जाने से उनके मुख्यमंत्री बनने को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है.

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