नई दिल्ली : अंसल बंधुओं का याचिका दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज (Uphaar evidence tampering Ansal brothers) कर दी है. उपहार अग्निकांड मामले में अंसल बंधुओं ने सात साल की जेल की सजा (7 year jail term of Ansal brothers) निलंबित करने की अपील की थी. उपहार सबूतों से छेड़छाड़ के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय (Uphaar evidence tampering case) ने रियल एस्टेट टाइकून सुशील अंसल और गोपाल अंसल के आवेदन खारिज किए हैं.
बता दें कि उपहार सिनेमा के मालिक अंसल बंधुओं (Uphaar fire tragedy ansal brothers) ने उनकी सजा को निलंबित नहीं करने के सत्र न्यायालय के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय का रुख किया था. गौरतलब है कि उपहार सिनेमाघर में 13 जून, 1997 को 'बॉर्डर' फिल्म के प्रदर्शन के दौरान आग लगी थी और 59 लोगों की जान चली गयी थी.
अंसल बंधुओं के केस में दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court Uphaar case) में न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, 'जहां तक अंसल बंधुओं की बात है, तो मैं इस याचिका को खारिज कर रहा हूं.' हालांकि, न्यायमूर्ति प्रसाद ने सह-दोषी अनूप सिंह करायत की सजा स्थगित करने की याचिका को स्वीकार कर लिया.
पिछले साल अंसल बंधुओं और अदालत के पूर्व कर्मचारी दिनेश चंद शर्मा तथा दो अन्य -पी. पी. बत्रा तथा अनूप सिंह करायत को निचली अदालत ने सात वर्ष कैद की सजा सुनाई थी और सत्र अदालत ने सजा स्थगित करने एवं उन्हें जमानत पर रिहा करने से इनकार कर दिया था.
इन वकीलों ने दी दलीलें
दोषसिद्धि के खिलाफ दायर अपील पर मजिस्ट्रेट अदालत में फैसला होने तक सज़ा को निलंबित करने का आग्रह करने वाली अर्जी को खारिज करते हुए सत्र अदालत ने कहा था कि यह अपनी तरह का सबसे गंभीर मामला है और यह आपराधिक न्याय की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने के लिए दोषियों की सोची समझी साजिश का नतीजा है. उच्च न्यायालय में अंसल बंधुओं ने अधिक उम्र होने समेत विभिन्न आधार पर सजा को निलंबित किए जाने का अनुरोध किया था. उनका प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद निगम और अभिषेक मनु सिंघवी और अन्य ने किया है.
सुशील अंसल के वकील ने दलील दी कि विकृत दस्तावेज़ उपहार कांड की मुख्य सुनवाई में उसे दोषी ठहराने के लिए प्रासंगिक नहीं थे और सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने के मामले में उसकी दोषसिद्धि "न्याय का उपहास" है. उन्होंने यह भी कहा कि सुशील अंसल 80 वर्ष से अधिक आयु का है और विभिन्न बीमारियों से पीड़ित है. गोपाल अंसल के वकील ने दलील दी थी कि उसका मुवक्किल 70 साल से ज्यादा उम्र का है और अदालत को उसे रिहा करने के लिए अपने बड़े और उदार विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए.
अदालत को बताया गया कि मुख्य मामले में अंसल बंधुओं को दोषी ठहराया गया था और उच्चतम न्यायालय ने उन्हें दो साल कैद की सज़ा दी थी. लेकिन न्यायालय ने जेल में बिताए गए समय पर संज्ञान लेने के बाद 30-30 करोड़ रुपये का जुर्माना चुकाने पर उन्हें रिहा कर दिया था. दिल्ली पुलिस और उपहार त्रासदी पीड़ित संघ (एवीयूटी) ने भी अंसल बंधुओं की याचिका का विरोध किया था. पुलिस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दयान कृष्णन जबकि एवीयूटी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास पहवा पेश हुए थे.
पुलिस के वकील ने दलील दी थी कि याचिकाकर्ताओं ने मुख्य उपहार सिनेमा मामले में सुनवाई के रिकॉर्ड का हिस्सा बनने वाले अहम दस्तावेजों को विकृत किया था जिससे अभियोजन पक्ष को मुख्य मामले में द्वितीयक साक्ष्य दर्ज करने के लिए मजबूर होना पड़ा और इस वजह से निचली अदालत में कार्यवाही में देरी हुई. उन्होंने यह भी दावा किया था कि महामारी याचिकाकर्ताओं के आग्रह को अनुमति देने का आधार नहीं हो सकती है. एवीयूटी के वकील ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि आरोपी व्यक्तियों को कानून अपने हाथ में लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.
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20 साल पहले सामने आया मामला
सबूतों के साथ छेड़छाड़ का मामला 20 जुलाई, 2002 को सामने आया था, जिसके बाद शर्मा के विरूद्ध विभागीय जांच शुरू की गई थी एवं उसे निलंबित कर दिया था. शर्मा को 25 जून, 2004 को बर्खास्त कर दिया गया था. मजिस्ट्रेट अदालत ने मामले में सात साल की सजा के अलावा अंसल बंधुओं पर सवा दो- सवा दो करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया था. दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्देश पर यह मामला दर्ज किया गया था. उच्च न्यायालय ने एवीयूटी की अध्यक्ष नीलम कृष्णमूर्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया था.
(इनपुट-पीटीआई-भाषा)