रांची: झारखंड समेत पूरे देश में संघर्ष और जीजीविषा की कहानियां बिखरी पड़ी हैं. जिनके नायकों की गाथा सुन किसी की पलकें बोझिल हो जाएंगी तो किसी के लिए ये नायक मिसाल बन जाएंगे. ऐसे ही किसी व्यक्ति की जीजीविषा को देखकर शायद शायर दुष्यंत कुमार ने लिखा होगा कि कौन कहता है कि आसमां में सुराख हो नहीं सकता, जरा एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों... दुष्यंत की इस लाइन को अब रांची के एक नायक ने सार्थकता दी है, जिसने अपनी लगन से कठिनाइयों के बीच आसमां में सुराख करने जैसी सफलता हासिल की है. हिम्मत को तोड़ देने वाली आर्थिक कठिनाइयों को धूल चटाकर रांची का कुली नंबर 1 बन गया है मेधावी नंबर 1, जो साहित्य के रहस्य से पर्दा उठाने के लिए दिन-रात एक किए हुए है.
ये भी पढे़ं:- हजारीबाग के शिवम ने पेश किया मिसाल, लाखों की नौकरी छोड़ सेना में बन गया लेफ्टिनेंट
दरअसल, रांची के सोनाहातू के रहने वाले उमरेन सेठ ने यूजीसी द्वारा आयोजित साहित्य और समाज पर शोध के लिए देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा, राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा नेट-जेआरएफ में पहले प्रयास में सफलता हासिल कर ली है. उमरेन सेठ का चयन जूनियर रिसर्च फेलोशिप के लिए किया गया है. इन्हें शोध के लिए यूजीसी की ओर से प्रतिमाह लगभग 32 हजार रुपये की छात्रवृत्ति दी जा रही है. बता दें कि इसमें चयन के कड़े मानक हैं और जेआरएफ की संख्या सीमित होती है.
छात्रों के लिए प्रेरणा हैं उमरेन: अपनी कोशिशों से उमरेन ऐसे विद्यार्थियों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं, जिनके पास सीमित संसाधन हैं और आर्थिक कठिनाई के कारण पढ़ाई छोड़ देते हैं. उमरेन ने अपनी कोशिशों से लक्ष्य पाने के लिए ऐसे लोगों को रास्ता दिखाकर बताया है कि जहां चाह है, वहां राह है. बशर्ते चाह को स्पष्ट करना पड़ेगा.
उमरेन सेठ ने यह मुकाम यूं ही नहीं पा लिया. इसके लिए पहाड़ जैसी आर्थिक कठिनाइयों को पछाड़ने के साथ पढ़ाई जारी रखी. यूजीसी की नेट-जेआरएफ की परीक्षा क्लियर करने के लिए उमरेन को वह भी करना पड़ा, जिसके लिए कम लोग ही सोचते हैं. उन्हें जीने के लिए पैसे की दरकार तो थी ही, पढ़ाई के लिए भी पैसे जुटाने थे. इसलिए कभी कुली की तो कभी गार्ड की नौकरी करनी पड़ी. जिस काम से दो पैसे मिल जाय वह काम करना पड़ा. इस दौरान लोगों की कड़वी बातें बर्दाश्त करनी पड़ी.
उमरेन बताते हैं कि वह पढ़ाई के लिए गांव से अपने माता पिता को बिना बताए रांची चले आए थे. शुरुआत में उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. रांची आने के बाद आजीविका के लिए रेजा, कुली और गार्ड की नौकरी की. ज्यादातर लोगों का व्यवहार अच्छा रहता था लेकिन कुछ लोगों का तिरस्कार भी बर्दाश्त करना पड़ा. उमरेन ने बताया कि जिस अपार्टमेंट में उन्हें गार्ड की नौकरी मिली उसी में रांची यूनिवर्सिटी के शिक्षक भी रहते थे. जिनके सहयोग की वजह से उनको अपना लक्ष्य साधने में मदद मिली.
सोनाहातू से की प्रारंभिक पढ़ाई: उमरेन ने बताया कि उसने सोनाहातू गांव से ही अपनी प्रारंभिक पढ़ाई पूरी की. वहीं से दसवीं और इंटर करने के बाद पीपीके कॉलेज बुंडू से स्नातक किया. इसके बाद पीजी करने के लिए रांची विश्वविद्यालय में आरयू पीजी हिंदी विभाग में एडमिशन लिया और उसी दौरान उन्होंने रांची में गार्ड, कुली समेत और भी कई तरीके की नौकरी किया और पठन-पाठन जारी रखा.
फिलहाल उमरेन यूजीसी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा नेट में पहली बार में सफल हुए हैं. उनका चयन जूनियर रिसर्च फेलोशिप के लिए हुआ है. इसके लिए उन्हें प्रतिमाह 32000 रुपये फेलोशिप भी मिलने लगी है और वे साहित्य के रहस्य से पर्दा उठाने में जुटे हैं. उन्होंने कहा कि कोई भी काम छोटा बड़ा नहीं होता है. काम के साथ-साथ लगन से अगर पढ़ाई की जाए तो वह उपलब्धि हासिल की जा सकती है, जिसे लोग पाना चाहते हैं. इसलिए ऐसे बच्चे जो आर्थिक परेशानी से जूझ रहे हैं वे खुद आत्मनिर्भर बनकर अपनी पढ़ाई जारी रख सकते हैं.