नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह दिल्ली दंगा मामले में पूर्व जेएनयू छात्र उमर खालिद की जमानत याचिका पर 24 जुलाई को सुनवाई करेगा. दिल्ली पुलिस ने न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान याचिका पर जवाब देने के लिए समय मांगा. दिल्ली पुलिस की ओर से पेश वकील रजत नायर ने पीठ से आग्रह किया कि उन्हें मामले में जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए कुछ समय दिया जाए. खालिद का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा, 'जमानत मामले में कौन सा जवाब दाखिल किया जाना है. वह (आरोपी) दो साल और 10 महीने से जेल के अंदर है.' इसपर नायर ने कहा कि वह इस मामले में जवाब दाखिल करने के लिए थोड़े समय के लिए प्रार्थना कर रहे हैं.
उन्होंने पीठ से कुछ उचित समय देने का अनुरोध करते हुए कहा, 'आरोपपत्र बहुत बड़ा है. यह हजारों पन्नों में है.' पीठ ने कहा, 'यह आज तैयार हो जाना चाहिए था' और मामले की सुनवाई 24 जुलाई को तय की. शीर्ष अदालत ने 18 मई को खालिद की याचिका पर दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा था. खालिद ने अपनी अपील में दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें उसे मामले में जमानत देने से इनकार कर दिया गया था.
पिछले साल 18 अक्टूबर को उच्च न्यायालय ने उसकी जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि वह अन्य सह-आरोपियों के साथ लगातार संपर्क में था और उनके खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही पाए गए. उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि आरोपियों की हरकतें प्रथम दृष्टया आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए के तहत आतंकवादी कृत्य के रूप में योग्य हैं.
खालिद, शरजील इमाम और कई अन्य के खिलाफ फरवरी 2020 के दंगों के दौरान कथित मास्टरमाइंड के रूप में काम करने के लिए यूएपीए और भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया. इस दंगे में 53 लोग मारे गए थे जबकि 700 से अधिक घायल हो गए थे. सीएए और एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क गई थी.
सितंबर 2020 में दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए खालिद ने इस आधार पर जमानत मांगी थी कि हिंसा में उसकी न तो कोई आपराधिक भूमिका थी और न ही मामले में किसी अन्य आरोपी के साथ कोई षड्यंत्रकारी संबंध था. उच्च न्यायालय के समक्ष, दिल्ली पुलिस ने खालिद की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि उसके द्वारा दिया गया भाषण बहुत उत्तेजक था. इसमें बाबरी मस्जिद, तीन तलाक, कश्मीर, मुसलमानों के कथित दमन और नागरिकता (संशोधन) अधिनियम जैसे मुद्दे उठाए गए थे.