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गोबर-कचरे से खेत को खाद, रसोई में गैस, जानें कैसे बिहार में बहार ला रहा 'सुखेत मॉडल'

बिहार का सुखेत मॉडल चर्चा में है क्योंकि पीएम मोदी ने इसकी तारीफ की है. आइये जानते हैं क्या सुखेत मॉडल और कैसे यह आत्मनिर्भर बनने की राह में मील का पत्थर साबित हो रहा है.

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Published : Aug 29, 2021, 9:22 PM IST

मधुबनी : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने अपने 'मन की बात' (Mann ki Baat) कार्यक्रम में रविवार को बिहार के मधुबनी के 'सुखेत मॉडल' (Sukhet Model) की तारीफ की. उन्होंने इसे देश के हर गांव को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बड़ा कदम बताया.

डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ रमेश चंद्र श्रीवास्तव के नेतृत्व में मधुबनी जिले के झंझारपुर प्रखंड के सुखेत कृषि विज्ञान केंद्र में कचरा से कंचन योजना चलाई जा रही है. सुखेत मॉडल डॉ रमेश चंद्र श्रीवास्तव की अनूठी योजना है. इसका विस्तार अब अन्य गांव में भी किया जा रहा है. इसे सबसे पहले मधुबनी जिले के सुखेत में 4 फरवरी 2021 को शुरू किया गया था. इसीलिए इसे 'सुखेत मॉडल' नाम दिया गया.

क्या है सुखेत मॉडल

इस परियोजना के तहत गांव के घरों से कचरा और गोबर इकट्ठा किया जाता है फिर उसे वर्मी कम्पोस्ट में बदला जाता है. एक परिवार से 20 किलो गोबर और कचरा रोज लिया जाता है. वर्मी कम्पोस्ट बेचने से जो आमदनी होती है उससे हर परिवार को कचरे और गोबर के बदले 2 महीने पर एक सिलेंडर एलपीजी गैस का पैसा दिया जाता है. इस योजना से गांव के 44 परिवारों को जोड़ा गया है.

योजना से गांव की महिलाओं में काफी खुशी है. रानी देवी, रेखा देवी, लालू देवी और मुन्नी देवी ने बताया कि यह बहुत अच्छी योजना है. खाना बनाने के लिए गैस मिल जाता है. इससे काफी सुविधा मिलती है. धुंआ से मुक्ति मिल गई है. पहले हमलोग गोबर से गोइठा (उपले) बनाते थे या गोबर को खेत में फेंक देते थे. प्रधानमंत्री से मिली सराहना से गांव के लोग गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं.

देखें वीडियो

"गांव में सफाई और रासायनिक उर्वरकों पर किसानों की निर्भरता कम करने के लिए इस योजना की शुरुआत हुई थी. इससे गांव के लोगों को रोजगार भी मिला है. रोज हमारे यहां से एक वाहन को घर-घर से कचरा जमा करने के लिए भेजा जाता है. कचरा को दो सप्ताह तक बाहर रखा जाता है. इसके बाद उससे वर्मी कम्पोस्ट बनाने की प्रक्रिया की शुरुआत होती है. वर्मी कम्पोस्ट बनने में तीन माह लगते हैं. वर्मी कम्पोस्ट को स्थानीय किसानों को बेचा जाता है."- आशुतोष यादव, वरिष्ठ शोधकर्ता, डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में रविवार को बिहार के मधुबनी के 'सुखेत मॉडल' की तारीफ की. नरेंद्र मोदी ने कहा, 'साथियों, मेरे सामने एक उदाहरण बिहार के मधुबनी से आया है. मधुबनी में डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय और वहां के स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र ने मिलकर एक अच्छा प्रयास किया है. इसका लाभ किसानों को तो हो ही रहा है, इससे स्वच्छ भारत अभियान को भी नई ताकत मिल रही है. विश्वविद्यालय की इस पहल का नाम 'सुखेत मॉडल' है. इसका मकसद गांवों में प्रदूषण कम करना है.'

पीएम ने कहा, 'इस मॉडल के तहत गांव के किसानों से गोबर और खेतों व घरों से निकलने वाला कचरा इकट्ठा किया जाता है. बदले में गांववालों को रसोई गैस सिलेंडर के लिए पैसे दिए जाते हैं. जो कचरा गांव से एकत्रित होता है उसके निपटारे के लिए वर्मी कम्पोस्ट बनाने का भी काम किया जा रहा है.

यानी सुखेत मॉडल के चार लाभ तो सीधे-सीधे नजर आते हैं. एक तो गांव को प्रदूषण से मुक्ति, दूसरा गांव को गंदगी से मुक्ति, तीसरा गांव वालों को रसोई गैस सिलेंडर के लिए पैसे और चौथा गांव के किसानों को जैविक खाद.

यह भी पढ़ें-मन की बात में पीएम मोदी बोले- छोटे-छोटे शहरों में भी स्टार्ट-अप कल्चर का विस्तार हो रहा है

आप सोचिए, इस तरह के प्रयास हमारे गांवों की शक्ति कितनी ज्यादा बढ़ा सकते हैं. यही तो आत्मनिर्भरता का विषय है. मैं देश के प्रत्येक पंचायत से कहूंगा कि ऐसा कुछ करने के बारे में वे भी जरूर सोचें.'

मधुबनी : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने अपने 'मन की बात' (Mann ki Baat) कार्यक्रम में रविवार को बिहार के मधुबनी के 'सुखेत मॉडल' (Sukhet Model) की तारीफ की. उन्होंने इसे देश के हर गांव को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बड़ा कदम बताया.

डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ रमेश चंद्र श्रीवास्तव के नेतृत्व में मधुबनी जिले के झंझारपुर प्रखंड के सुखेत कृषि विज्ञान केंद्र में कचरा से कंचन योजना चलाई जा रही है. सुखेत मॉडल डॉ रमेश चंद्र श्रीवास्तव की अनूठी योजना है. इसका विस्तार अब अन्य गांव में भी किया जा रहा है. इसे सबसे पहले मधुबनी जिले के सुखेत में 4 फरवरी 2021 को शुरू किया गया था. इसीलिए इसे 'सुखेत मॉडल' नाम दिया गया.

क्या है सुखेत मॉडल

इस परियोजना के तहत गांव के घरों से कचरा और गोबर इकट्ठा किया जाता है फिर उसे वर्मी कम्पोस्ट में बदला जाता है. एक परिवार से 20 किलो गोबर और कचरा रोज लिया जाता है. वर्मी कम्पोस्ट बेचने से जो आमदनी होती है उससे हर परिवार को कचरे और गोबर के बदले 2 महीने पर एक सिलेंडर एलपीजी गैस का पैसा दिया जाता है. इस योजना से गांव के 44 परिवारों को जोड़ा गया है.

योजना से गांव की महिलाओं में काफी खुशी है. रानी देवी, रेखा देवी, लालू देवी और मुन्नी देवी ने बताया कि यह बहुत अच्छी योजना है. खाना बनाने के लिए गैस मिल जाता है. इससे काफी सुविधा मिलती है. धुंआ से मुक्ति मिल गई है. पहले हमलोग गोबर से गोइठा (उपले) बनाते थे या गोबर को खेत में फेंक देते थे. प्रधानमंत्री से मिली सराहना से गांव के लोग गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं.

देखें वीडियो

"गांव में सफाई और रासायनिक उर्वरकों पर किसानों की निर्भरता कम करने के लिए इस योजना की शुरुआत हुई थी. इससे गांव के लोगों को रोजगार भी मिला है. रोज हमारे यहां से एक वाहन को घर-घर से कचरा जमा करने के लिए भेजा जाता है. कचरा को दो सप्ताह तक बाहर रखा जाता है. इसके बाद उससे वर्मी कम्पोस्ट बनाने की प्रक्रिया की शुरुआत होती है. वर्मी कम्पोस्ट बनने में तीन माह लगते हैं. वर्मी कम्पोस्ट को स्थानीय किसानों को बेचा जाता है."- आशुतोष यादव, वरिष्ठ शोधकर्ता, डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में रविवार को बिहार के मधुबनी के 'सुखेत मॉडल' की तारीफ की. नरेंद्र मोदी ने कहा, 'साथियों, मेरे सामने एक उदाहरण बिहार के मधुबनी से आया है. मधुबनी में डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय और वहां के स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र ने मिलकर एक अच्छा प्रयास किया है. इसका लाभ किसानों को तो हो ही रहा है, इससे स्वच्छ भारत अभियान को भी नई ताकत मिल रही है. विश्वविद्यालय की इस पहल का नाम 'सुखेत मॉडल' है. इसका मकसद गांवों में प्रदूषण कम करना है.'

पीएम ने कहा, 'इस मॉडल के तहत गांव के किसानों से गोबर और खेतों व घरों से निकलने वाला कचरा इकट्ठा किया जाता है. बदले में गांववालों को रसोई गैस सिलेंडर के लिए पैसे दिए जाते हैं. जो कचरा गांव से एकत्रित होता है उसके निपटारे के लिए वर्मी कम्पोस्ट बनाने का भी काम किया जा रहा है.

यानी सुखेत मॉडल के चार लाभ तो सीधे-सीधे नजर आते हैं. एक तो गांव को प्रदूषण से मुक्ति, दूसरा गांव को गंदगी से मुक्ति, तीसरा गांव वालों को रसोई गैस सिलेंडर के लिए पैसे और चौथा गांव के किसानों को जैविक खाद.

यह भी पढ़ें-मन की बात में पीएम मोदी बोले- छोटे-छोटे शहरों में भी स्टार्ट-अप कल्चर का विस्तार हो रहा है

आप सोचिए, इस तरह के प्रयास हमारे गांवों की शक्ति कितनी ज्यादा बढ़ा सकते हैं. यही तो आत्मनिर्भरता का विषय है. मैं देश के प्रत्येक पंचायत से कहूंगा कि ऐसा कुछ करने के बारे में वे भी जरूर सोचें.'

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