नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उत्तराखंड उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें कथित तौर पर अनुचित लाभ देकर और निविदा के मानदंडों की अनदेखी करके एक ठेकेदार को दिए गए पार्किंग अनुबंध की जांच करने के लिए सीबीआई को निर्देश दिया गया था, जिसमें कुछ उच्च-रैंकिंग अधिकारी शामिल थे.
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि हमें यकीन है कि सीबीआई उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश में की गई अस्थायी टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना निष्पक्ष तरीके से जांच करेगी. ऊपर जो देखा गया है, उसके अधीन, विशेष अनुमति याचिकाएं खारिज की जाती हैं. लंबित आवेदनों का भी निस्तारण किया जाए.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता शीर्ष अदालत के समक्ष राज्य सरकार की ओर से पेश हुए. पीठ ने 10 नवंबर को पारित एक आदेश में कहा कि सॉलिसिटर जनरल और याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील को सुनने के बाद, अदालत ने पाया कि केंद्रीय जांच ब्यूरो के माध्यम से जांच का निर्देश देने वाले आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है.
पीठ ने कहा कि यह स्पष्ट है कि विवादित आदेश में की गई टिप्पणियां इस निष्कर्ष पर पहुंचने के सीमित उद्देश्यों के लिए हैं कि सीबीआई के माध्यम से जांच की आवश्यकता है और इसे गुण-दोष के आधार पर उच्च न्यायालय द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों के रूप में नहीं समझा जाएगा.
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इस मामले की सीबीआई जांच का आदेश देते हुए यह टिप्पणी की थी कि निविदा देने में मानदंडों की अनदेखी करके, अनुचित लाभ देकर, प्रतिवादी को पार्किंग का ठेका देने में प्रतिवादी विभाग के संबंधित अधिकारियों का आचरण प्रथम दृष्टया दर्शाता है कि वे इन दो फर्मों के चंगुल में थे. इनके मालिक दो सगे भाई थे, जो एक ही स्थान और एक ही पते से अपनी फर्में चला रहे थे और वे बहुत प्रभावशाली व्यक्ति प्रतीत होते थे.
उच्च न्यायालय ने कहा था कि राज्य के उच्च पदस्थ अधिकारियों की भी संलिप्तता स्पष्ट है और यदि जांच राज्य पुलिस अधिकारियों द्वारा की जाती है, तो निष्पक्ष जांच की संभावना कम है और यह एक निरर्थक अभ्यास के अलावा कुछ नहीं होगा.