नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme court) ने उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की सिफारिशों के बावजूद कई साल तक नियुक्तियां नहीं करने के सरकार के 'अड़ियल रवैये' पर सोमवार को गहरी नाराजगी व्यक्त की.
न्यायाधीशों के रिक्त स्थानों का जिक्र करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या इतनी सीमित है कि जहां उनके लिए महत्वपूर्ण मामलों में तेजी से न्याय करना असंभव हो जायेगा.
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सरकार को यह महसूस करना चाहिए कि वाणिज्यिक विवादों का जल्द से जल्द फैसला होना जरूरी है, जिसके लिए पर्याप्त संख्या में न्यायाधीश होने चाहिए.
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि इस साल 20 अप्रैल के अपने आदेश में शीर्ष अदालत द्वारा समय सीमा निर्धारित करने के बावजूद न्यायिक संस्थान इस तरह की स्थिति का सामना कर रहा है, जिससे ऐसा लगता है कि सरकार पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है.
पीठ ने कहा, 'हमने एएसजी (अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल) के सामने रखा है कि सिफारिशों को कॉलेजियम तक पहुंचने में महीनों और साल लगते हैं और उसके बाद महीनों और वर्षों के बाद कोई निर्णय नहीं लिया जाता है, उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या इतनी सीमित है कि जहां उनके लिए महत्वपूर्ण मामलों में तेजी से न्याय करना असंभव हो जायेगा.'
दो याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान की टिप्पणी
उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसमें एक याचिका और अंतरिम आवेदन पर नोटिस जारी किया गया था. उच्च न्यायालय ने संबंधित पक्षों को डंपिंग रोधी जांच के बारे में अधिसूचना से संबंधित मामले में पक्षकारों से जवाब मांगा था.
पीठ ने अपने आदेश में कहा, 'दिल्ली उच्च न्यायालय में एक सप्ताह के भीतर 50 प्रतिशत से कम न्यायाधीश होंगे, जिसमें 60 न्यायाधीशों में से केवल 29 न्यायाधीश होंगे, जबकि दो दशक पहले जब हम में से एक (न्यायमूर्ति संजय किशन कौल) को न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था, तब वह न्यायालय के 32वें न्यायाधीश थे जबकि संख्या 33 न्यायाधीशों की थी.'
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पीठ ने कहा कि आम तौर पर उसने पक्षों को विवाद के जल्द से जल्द निर्णय के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा होगा, लेकिन उस स्थिति में वह शायद ही ऐसा कह सकती है जब उच्च न्यायालय में आधे से भी कम संख्या में न्यायाधीश होंगे.
(पीटीआई-भाषा)