इंफाल : मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने रविवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने इंफाल के राजभवन में राज्यपाल अजय कुमार भल्ला को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा सौंपा.
बीरेन सिंह थोड़ी देर पहले ही भाजपा सांसद संबित पात्रा के अलावा मणिपुर सरकार के मंत्री और विधायकों के साथ राज्यपाल से मुलाकात करने राजभवन पहुंचे थे. इस निर्णय से पहले बीरेन सिंह ने आज ही दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से भी मुलाकात की थी. बताया जा रहा है कि विधायक दल की बैठक होगी, जिसमें पार्टी हाईकमान से बात करने के बाद नया नेता चुना जाएगा.
#WATCH | Manipur CM N Biren Singh hands over the letter of resignation from the post of Chief Minister to Governor Ajay Kumar Bhalla at the Raj Bhavan in Imphal. pic.twitter.com/xCoiQUsmgQ
— ANI (@ANI) February 9, 2025
भाजपा नेता बीरेन सिंह ने अपने इस्तीफे में लिखा, "अब तक मणिपुर के लोगों की सेवा करना सम्मान की बात रही है. मैं केंद्र सरकार का बहुत आभारी हूं. उन्होंने समय पर कार्रवाई की, मदद की और विकास के काम किए. साथ ही बीरेन सिंह ने लिखा कि हर मणिपुरी के हितों की रक्षा के लिए कई परियोजनाएं भी चलाईं. मेरा केंद्र सरकार से अनुरोध है कि वह इसी तरह काम करती रहे."
वहीं राज्यपाल ने उन्हें नई सरकार का गठन होने तक जिम्मेदारी संभालने का निर्देश दिया है. ऐसे में एन. बीरेन सिंह मणिपुर के कार्यवाहक मुख्यमंत्री को रूप में काम करेंगे. गौरतलब है कि कल यानी 10 फरवरी 2025 से मणिपुर विधानसभा का सत्र शुरू होना था. वहीं विपक्ष मणिपुर सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी में था. कांग्रेस ने कहा कि एन बीरेन सिंह को दो साल पहले ही बर्खास्त किया जाना चाहिए था. इस संबंध में कांग्रेस नेता आलोक शर्मा ने कहा, "देश उन्हें कभी माफ नहीं करेगा. मणिपुर में विधायकों की अंतरात्मा जागी है. उन्होंने मजबूरी में इस्तीफा दिया है."
Manipur CM N Biren Singh hands over the letter of resignation from the post of Chief Minister to Governor Ajay Kumar Bhalla at the Raj Bhavan in Imphal. pic.twitter.com/zcfGNVdPPo
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बता दें कि मणिपुर में हिंसा काफी लंबे समय से एक गंभीर मुद्दा बना हुआ था. राज्य में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच तनाव बढ़ने की वजह से कई बार हिंसक झड़पों में सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है. वहीं हजारों लोगों को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है. मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच काफी समय से जमीन, आरक्षण और राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर विवाद चल रहा है.
भाजपा विधायक कर रहे बीरेन सिंह के कामकाज का विरोध
भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को इस बात की चिंता है कि 60 सदस्यीय मणिपुर विधानसभा में कई भाजपा विधायक बीरेन सिंह के कामकाज का विरोध कर रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि दिल्ली पहुंचे चार कैबिनेट मंत्रियों में थे. 2023 में जब भाजपा ने लगातार दूसरी बार सत्ता बरकरार रखी, तो बिस्वजीत सीएम पद के दावेदार थे. मणिपुर विधानसभा के अध्यक्ष थोकचम सत्यब्रत सिंह ने भी शाह से मुलाकात की.
वहीं कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने पहले राज्य की कानून व्यवस्था की स्थिति को संभालने में विफल रहने पर बीरेन सिंह सरकार के खिलाफ 10 फरवरी को विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला किया था. वर्तमान में 60 सदस्यीय सदन में सत्तारूढ़ भाजपा के 37 विधायक हैं. हालांकि, उनकी चिंता तब शुरू हुई जब पिछले साल 19 नवंबर को मुख्यमंत्री द्वारा बुलाई गई बैठक में कई विधायक शामिल नहीं हुए. छह विधायकों वाली एनपीपी जो भाजपा की सहयोगी थी, उसने पहले ही बीरेन सिंह से नाराजगी जताते हुए समर्थन वापस ले लिया है.
दिलचस्प बात यह है कि एनपीपी प्रमुख और मेघालय के सीएम कोनराड के संगमा ने भी अपनी पार्टी के समर्थन के लिए पूर्व शर्त के रूप में बीरेन के प्रतिस्थापन की मांग की है. कांग्रेस के नेतृत्व वाले प्रस्ताव को एनपीपी और कुछ बीरेन, भाजपा और जेडी(यू) विरोधी विधायकों का भी समर्थन मिलने की संभावना है. राज्य में शांति स्थापित करने में बीरेन सिंह सरकार की विफलता पर 10 कुकी विधायकों ने अपनी नाराजगी जाहिर की है, जिनमें से सात भाजपा के हैं.
विपक्ष के नेता ने राज्यपाल से की थी मुलाकात
इस सप्ताह की शुरुआत में पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता ओकराम इबोबी सिंह ने राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से मुख्यमंत्री को सलाह देने का आग्रह किया था कि वे राज्य विधानसभा के सदस्यों को डराने-धमकाने से बचें. इबोबी सिंह ने भल्ला से शिकायत की कि बीरेन सिंह ने पिछले महीने एक समारोह के दौरान कुछ विधायकों को अविश्वास प्रस्ताव में शामिल न होने की धमकी दी थी.
इस्तीफा देना अंतिम विकल्प था- आईटीएलएफ
इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए स्वदेशी आदिवासी नेता मंच (आईटीएलएफ) के प्रवक्ता ने कहा कि भाजपा सरकार के पास इस्तीफा देना ही आखिरी विकल्प बचा था.
आईटीएलएफ प्रवक्ता ने कहा, "बीरेन सिंह जानते थे कि मणिपुर विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव में उन्हें बाहर कर दिया जाएगा और अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए उन्होंने इस्तीफा दे दिया होगा. साथ ही, लीक हुए ऑडियो टेप के मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाने के बाद भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भी उन्हें बचाने के लिए कुछ नहीं कर सकता."
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