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सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा, केंद्र और राज्यों को दिए जाने वाले टीकों की कीमत में अंतर क्यों - कोरोना महामारी

कोरोना महामारी के दौरान उठाए गए कदमों को लेकर देश की शीर्ष अदालत सुनवाई कर रही है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सवाल किया कि केंद्र और राज्यों को दिए जाने वाले टीकों की कीमत में अंतर क्यों है?

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Apr 30, 2021, 10:12 PM IST

नई दिल्ली : कोरोना महामारी के दौरान आवश्यक आपूर्ति और सेवाओं के वितरण को लेकर केंद्र ने क्या सार्थक कदम उठाए हैं इस पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सुनवाई की. शीर्ष न्यायालय ने केंद्र और राज्यों को दिए जाने वाले टीकों की कीमत को लेकर सवाल उठाए.

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एल नसवारा राव और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि केंद्र और राज्यों को दिए जाने वाले टीकों की कीमत में अंतर क्यों हैं? देश को इतना भुगतान क्यों करना चाहिए जब अमेरिका में एस्ट्राजेनेका भी अपने नागरिकों को कम दर पर टीके उपलब्ध करा रहा है.

कोर्ट ने माना कि यह अंतर लगभग 30-40 हजार करोड़ रुपये है और अलग-अलग कीमत होने का कोई मतलब नहीं है.

कोरोना महामारी के दौरान क्या कदम उठाए गए, इसे लेकर कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा था. इसी को लेकर सरकार की ओर से ये हलफनामा प्रस्तुत किया था.

टीकाकरण के लिए क्या कदम उठाए?

कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि कोविड 19 पर अंकुश लगाने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं. ऑक्सीजन टैंकरों और सिलेंडर की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए क्या किया. अनपढ़ या किसी व्यक्ति को बिना नेट के टीकाकरण के लिए पंजीकरण कराने की क्या योजना है. श्मशान कर्मचारियों या फ्रंट लाइन के श्रमिकों का टीकाकरण करना, अनिवार्य लाइसेंसिंग के बारे में क्या किया जा रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि केंद्र ने 100% वैक्सीन की खुराक क्यों नहीं सुनिश्चित कीं. राज्यों, जिलों और अस्पतालों को आवंटित ऑक्सीजन पर किसी भी वास्तविक समय अद्यतन के लिए किसी भी तंत्र को रैंप अप करने के लिए निवेश के बारे में पूछा. यही नहीं वायरस के नए प्रकार का परीक्षण कैसे किया जा रहा है और इससे कैसे निपटने की क्या कार्ययोजना है, इसके बारे में भी जानकारी ली.

कोर्ट ने अवलोकन किया कि चिकित्सा पेशेवर टूटने वाले बिंदु पर पहुंच रहे हैं ऐसे में उन्हें केवल कोविड योद्धा कहना पर्याप्त नहीं है. निर्णायक भूमिका निभाने वाली नर्सें मर रही हैं. कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि डॉक्टरों के लिए ठहरने की व्यवस्था क्यों नहीं है.

ऑक्सीजन की आपूर्ति के बारे में जानकारी ली

ऑक्सीजन की आपूर्ति पर केंद्र ने अदालत से कहा कि हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं. जहां से भी संभव है व्यवस्था की जा रही है. मेडिकल ऑक्सीजन के लिए 24 ×7 नियंत्रण कक्ष स्थापित किया गया है जरूरत के समय कोई भी राज्य संपर्क कर सकता है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि स्टील सेक्टर ने 21 अप्रैल को लगभग 16,000 मीट्रिक टन एलएमओ उपलब्ध कराया है. सितंबर 2020 से करीब 143,000 मीट्रिक टन की आपूर्ति की है.

दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी को लेकर कोर्ट ने कहा कि दिल्ली वालों के लिए केंद्र की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है. इस्पात क्षेत्र में जो ऑक्सीजन अधिशेष है उसका दिल्ली में उपयोग किया जाए. इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि केंद्र ऑक्सीजन को लेकर कमी के दौर से गुजर रहा है एक टैंकर हटाने से किसी और को ऑक्सीजन से वंचित किया जाएगा.

इस पर कोर्ट ने कहा कि वह संदेश देना चाहती है कि इस मानवीय संकट में जीवन को राजनीतिक नुकसान नहीं उठाना चाहिए. चुनाव के दौरान राजनीति की जा सकती है. अतिरिक्त सचिव सुमिता ने अदालत को जानकारी दी कि देश में 13,000 मीट्रिक टन अधिशेष ऑक्सीजन है और इससे घबराने की जरूरत नहीं है.

पढ़ें- 70 साल में मिली स्वास्थ्य संरचना की विरासत पर्याप्त नहीं, राजनीति न करें : कोरोना पर सुप्रीम कोर्ट

सुमिता ने पीपीटी के माध्यम से अदालत को ऑक्सीजन के उत्पादन, आपूर्ति में तेजी लाने के लिए उठाए गए कदम, राज्यों, हवाई, रेल, आपूर्ति के लिए काम करने वाले सड़क मार्गों आदि पर अपनी पहुंच सुनिश्चित करने के बारे में जानकारी दी.

'इलाज के लिए निवास प्रमाण की आवश्यकता नहीं'

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी अस्पताल में इलाज कराने के लिए निवास प्रमाण की आवश्यकता नहीं है. अदालत ने आज चार घंटे से अधिक समय तक इस मामले को सुना. 10 मई को फिर से सुनवाई होगी.

नई दिल्ली : कोरोना महामारी के दौरान आवश्यक आपूर्ति और सेवाओं के वितरण को लेकर केंद्र ने क्या सार्थक कदम उठाए हैं इस पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सुनवाई की. शीर्ष न्यायालय ने केंद्र और राज्यों को दिए जाने वाले टीकों की कीमत को लेकर सवाल उठाए.

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एल नसवारा राव और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि केंद्र और राज्यों को दिए जाने वाले टीकों की कीमत में अंतर क्यों हैं? देश को इतना भुगतान क्यों करना चाहिए जब अमेरिका में एस्ट्राजेनेका भी अपने नागरिकों को कम दर पर टीके उपलब्ध करा रहा है.

कोर्ट ने माना कि यह अंतर लगभग 30-40 हजार करोड़ रुपये है और अलग-अलग कीमत होने का कोई मतलब नहीं है.

कोरोना महामारी के दौरान क्या कदम उठाए गए, इसे लेकर कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा था. इसी को लेकर सरकार की ओर से ये हलफनामा प्रस्तुत किया था.

टीकाकरण के लिए क्या कदम उठाए?

कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि कोविड 19 पर अंकुश लगाने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं. ऑक्सीजन टैंकरों और सिलेंडर की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए क्या किया. अनपढ़ या किसी व्यक्ति को बिना नेट के टीकाकरण के लिए पंजीकरण कराने की क्या योजना है. श्मशान कर्मचारियों या फ्रंट लाइन के श्रमिकों का टीकाकरण करना, अनिवार्य लाइसेंसिंग के बारे में क्या किया जा रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि केंद्र ने 100% वैक्सीन की खुराक क्यों नहीं सुनिश्चित कीं. राज्यों, जिलों और अस्पतालों को आवंटित ऑक्सीजन पर किसी भी वास्तविक समय अद्यतन के लिए किसी भी तंत्र को रैंप अप करने के लिए निवेश के बारे में पूछा. यही नहीं वायरस के नए प्रकार का परीक्षण कैसे किया जा रहा है और इससे कैसे निपटने की क्या कार्ययोजना है, इसके बारे में भी जानकारी ली.

कोर्ट ने अवलोकन किया कि चिकित्सा पेशेवर टूटने वाले बिंदु पर पहुंच रहे हैं ऐसे में उन्हें केवल कोविड योद्धा कहना पर्याप्त नहीं है. निर्णायक भूमिका निभाने वाली नर्सें मर रही हैं. कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि डॉक्टरों के लिए ठहरने की व्यवस्था क्यों नहीं है.

ऑक्सीजन की आपूर्ति के बारे में जानकारी ली

ऑक्सीजन की आपूर्ति पर केंद्र ने अदालत से कहा कि हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं. जहां से भी संभव है व्यवस्था की जा रही है. मेडिकल ऑक्सीजन के लिए 24 ×7 नियंत्रण कक्ष स्थापित किया गया है जरूरत के समय कोई भी राज्य संपर्क कर सकता है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि स्टील सेक्टर ने 21 अप्रैल को लगभग 16,000 मीट्रिक टन एलएमओ उपलब्ध कराया है. सितंबर 2020 से करीब 143,000 मीट्रिक टन की आपूर्ति की है.

दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी को लेकर कोर्ट ने कहा कि दिल्ली वालों के लिए केंद्र की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है. इस्पात क्षेत्र में जो ऑक्सीजन अधिशेष है उसका दिल्ली में उपयोग किया जाए. इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि केंद्र ऑक्सीजन को लेकर कमी के दौर से गुजर रहा है एक टैंकर हटाने से किसी और को ऑक्सीजन से वंचित किया जाएगा.

इस पर कोर्ट ने कहा कि वह संदेश देना चाहती है कि इस मानवीय संकट में जीवन को राजनीतिक नुकसान नहीं उठाना चाहिए. चुनाव के दौरान राजनीति की जा सकती है. अतिरिक्त सचिव सुमिता ने अदालत को जानकारी दी कि देश में 13,000 मीट्रिक टन अधिशेष ऑक्सीजन है और इससे घबराने की जरूरत नहीं है.

पढ़ें- 70 साल में मिली स्वास्थ्य संरचना की विरासत पर्याप्त नहीं, राजनीति न करें : कोरोना पर सुप्रीम कोर्ट

सुमिता ने पीपीटी के माध्यम से अदालत को ऑक्सीजन के उत्पादन, आपूर्ति में तेजी लाने के लिए उठाए गए कदम, राज्यों, हवाई, रेल, आपूर्ति के लिए काम करने वाले सड़क मार्गों आदि पर अपनी पहुंच सुनिश्चित करने के बारे में जानकारी दी.

'इलाज के लिए निवास प्रमाण की आवश्यकता नहीं'

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी अस्पताल में इलाज कराने के लिए निवास प्रमाण की आवश्यकता नहीं है. अदालत ने आज चार घंटे से अधिक समय तक इस मामले को सुना. 10 मई को फिर से सुनवाई होगी.

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