नई दिल्ली: देश में पुलिस विभाग में बड़ी संख्या में पद खाली पड़े हैं. आंकड़ों के अनुसार राज्य पुलिस बलों में स्वीकृत 26,23,225 के मुकाबले 5,31,737 पद खाली पड़े हैं. आंध्र प्रदेश की बात की जाए तो प्रति लाख जनसंख्या पर 141.06 पुलिस बल होना चाहिए लेकिन यहां ये संख्या सिर्फ 113.68 है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पुलिस-सार्वजनिक अनुपात में कितना अंतर है.
इसी तरह बिहार में प्रति लाख जनसंख्या पर 115.26 पुलिस बल की स्वीकृत है, लेकिन वास्तविकता में 76.20 बल ही तैनात हैं. हरियाणा जैसे राज्य में प्रति लाख जनसंख्या पर 241.63 की स्वीकृत शक्ति के मुकाबले 180.19, झारखंड में 218.15 के मुकाबले 172.18, मिजोरम में 942.07 की स्वीकृत शक्ति के मुकाबले ये संख्या 674.54 है.
केवल नागालैंड में औसत से ज्यादा पुलिसकर्मी हैं. यहां प्रति लाख जनसंख्या पर 1237.30 की स्वीकृत के वास्तविक संख्या 1300.93 है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, देशभर के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 20,91,488 पुलिस कर्मी हैं जिनमें 135 डीजीपी और विशेष डीजीपी, 364 अतिरिक्त डीजीपी, 99,283 सब इंस्पेक्टर और 8,10,554 कांस्टेबल शामिल हैं.
पुलिसकर्मियों की भर्ती करनी चाहिए : पूर्व डीजीपी
ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट (बीपीआरडी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर साल करीब 50 लाख अपराध दर्ज होते हैं. इस मुद्दे पर 'ईटीवी भारत' से बात करते हुए उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह (former director general of Uttar Pradesh police Prakash Singh) ने कहा 'राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को कानून और व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने के लिए आवश्यक पुलिस कर्मियों की भर्ती करनी चाहिए.'
सिंह ने कहा 'वास्तव में पुलिस आधुनिकीकरण के लिए सभी राज्यों को केंद्रीय धन मिलता है इसलिए, आवश्यक पुलिस बल की भर्ती के लिए राज्य सरकार की ओर से बोझ नहीं होना चाहिए. राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को बड़े पैमाने पर भर्ती प्रक्रिया शुरू करने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए.' वास्तव में राज्यसभा सांसद आनंद शर्मा की अध्यक्षता में गृह मामलों की एक संसदीय स्थायी समिति ने भी पुलिस कर्मियों की इस तरह की कमी पर कड़ा संज्ञान लिया. समिति ने कहा कि देश में अपराध से मुकाबला करने के लिए पर्याप्त पुलिस कर्मियों का न होना चिंतनीय है. समिति का मानना है कि कर्मचारियों की कमी का सीधा प्रभाव पुलिस की कार्यकुशलता पर पड़ता है.
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समिति ने कहा, 'मौजूदा कर्मचारियों का काम का बोझ उन्हें ओवरटाइम करने के लिए मजबूर करता है. वह ज्यादातर समय तनावपूर्ण और कठिन परिस्थितियों में बिताते हैं इससे न केवल आम लोगों पर पुलिस का दबाव बढ़ता है, बल्कि पुलिस कर्मियों का प्रदर्शन प्रभावित होता है.' समिति ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को मिशन मोड में पुलिस भर्ती अभियान चलाने और विभिन्न रैंकों पर पुलिस कर्मियों की भर्ती के लिए प्रशासनिक बाधाओं को समयबद्ध तरीके से दूर करने की सलाह देने का सुझाव दिया है.
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