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परमवीर विक्रम बत्रा की जयंती, करगिल का वो 'शेरशाह', जिसके किस्से आपमें जोश भर देंगे - करगिल हीरो

विक्रम बत्रा के शौर्य से पाकिस्तान की सेना में बेहद खौफ था. वे उसे शेरशाह के नाम से पुकारते थे. अहम चोटियों पर तिरंगा लहराने के बाद विक्रम बत्रा ने आराम की परवाह भी नहीं की और जो नारा बुलंद किया, वो इतिहास बन गया है. विक्रम बत्रा का- ये दिल मांगे मोर, नारा सैनिकों में जोश भर देता था.

परमवीर विक्रम बत्रा
परमवीर विक्रम बत्रा
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Published : Sep 9, 2021, 1:40 PM IST

Updated : Sep 9, 2021, 4:00 PM IST

कांगड़ा: वीर सपूत शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की आज जयंती है. कृतज्ञ देश और विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश आज अपने महान सपूत कैप्टन विक्रम बत्रा को स्मरण कर रहा है. विक्रम बत्रा वो परमवीर थे जिनके नाम से ही दुश्मन में डर की लहर दौड़ जाती थी. करगिल युद्ध में नापाक दुश्मन के मन में इस नाम का खौफ था. पाकिस्तान के सैनिक इन्हें शेरशाह कहते थे.

विक्रम बत्रा के शौर्य से पाकिस्तान की सेना में बेहद खौफ था. वे उसे शेरशाह के नाम से पुकारते थे. अहम चोटियों पर तिरंगा लहराने के बाद विक्रम बत्रा ने आराम की परवाह भी नहीं की और जो नारा बुलंद किया, वो इतिहास बन गया है. विक्रम बत्रा का- ये दिल मांगे मोर, नारा सैनिकों में जोश भर देता था.

कैप्टन विक्रम बत्रा भारतीय सेना के ताज में जड़े बेमिसाल हीरों में से एक हैं. हिमाचल में कांगड़ा जिला के पालमपुर के गांव घुग्गर में 9 सितंबर 1974 को विक्रम बत्रा का जन्म हुआ था. पिता जीएल बत्रा व मां जयकमल बत्रा की खुशी दोहरी हुई, जब विक्रम व विशाल के रूप में उनके घर जुड़वां बच्चों ने जन्म लिया. बचपन में पिता से अमर शहीदों की गाथाएं सुनकर विक्रम बत्रा को भी देश की सेवा का शौक पैदा हुआ.

डीएवी स्कूल पालमपुर में पढ़ाई के बाद कॉलेज की शिक्षा उन्होंने डीएवी चंडीगढ़ से हासिल की. विक्रम बत्रा का सेलेक्शन मर्चेंट नेवी में हांगकांग की एक शिपिंग कंपनी में हुआ था, ट्रेनिंग के लिए बुलावा भी आ चुका था लेकिन उन्होंने सेना की वर्दी को चुना. मर्चेंट नेवी की लाखों की तनख्वाह देश के लिए जान न्योछावर करने के जज्बे के सामने बौनी साबित हुई.

वर्ष 1996 में वे इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आईएमए) देहरादून के लिए चयनित हुए. कमीशन हासिल करने के बाद उनकी नियुक्ति 13 जैक राइफल में हुई. जून 1999 में कारगिल युद्ध छिड़ गया. ऑपरेशन विजय के तहत विक्रम बत्रा भी मोर्चे पर गए. उनकी डैल्टा कंपनी को पॉइंट 5140 को कैप्चर करने का आदेश मिला. दुश्मन सेना के ध्वस्त करते हुए विक्रम बत्रा और उनके साथियों ने पॉइंट 5140 की चोटी को कब्जे में कर लिया.

बत्रा ने युद्ध के दौरान कई दुस्साहसिक फैसले लिए. जुलाई, 1999 की 7 तारीख थी. कई दिनों से मोर्चे पर डटे विक्रम बत्रा को उनके ऑफिसर्स ने आराम करने की सलाह दी थी, जिसे वे नजर अंदाज करते रहे. इसी दिन वे पॉइंट 4875 पर युद्ध के दौरान शहादत को चूम गए, लेकिन इससे पहले वे भारतीय सेना के समक्ष आने वाले सारे अवरोध दूर कर चुके थे. युद्ध के दौरान उनका नारा ये दिल मांगे मोर था. उन्होंने इसे सच कर दिखाया. कैप्टन बत्रा के शौर्य के किस्से सदा अमर रहेंगे.

ये भी पढ़ें: वीरभूमि का जांबाज योद्धा, जिसने अपने सैनिकों को बचाने के लिए दी थी खुद की शहादत

कांगड़ा: वीर सपूत शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की आज जयंती है. कृतज्ञ देश और विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश आज अपने महान सपूत कैप्टन विक्रम बत्रा को स्मरण कर रहा है. विक्रम बत्रा वो परमवीर थे जिनके नाम से ही दुश्मन में डर की लहर दौड़ जाती थी. करगिल युद्ध में नापाक दुश्मन के मन में इस नाम का खौफ था. पाकिस्तान के सैनिक इन्हें शेरशाह कहते थे.

विक्रम बत्रा के शौर्य से पाकिस्तान की सेना में बेहद खौफ था. वे उसे शेरशाह के नाम से पुकारते थे. अहम चोटियों पर तिरंगा लहराने के बाद विक्रम बत्रा ने आराम की परवाह भी नहीं की और जो नारा बुलंद किया, वो इतिहास बन गया है. विक्रम बत्रा का- ये दिल मांगे मोर, नारा सैनिकों में जोश भर देता था.

कैप्टन विक्रम बत्रा भारतीय सेना के ताज में जड़े बेमिसाल हीरों में से एक हैं. हिमाचल में कांगड़ा जिला के पालमपुर के गांव घुग्गर में 9 सितंबर 1974 को विक्रम बत्रा का जन्म हुआ था. पिता जीएल बत्रा व मां जयकमल बत्रा की खुशी दोहरी हुई, जब विक्रम व विशाल के रूप में उनके घर जुड़वां बच्चों ने जन्म लिया. बचपन में पिता से अमर शहीदों की गाथाएं सुनकर विक्रम बत्रा को भी देश की सेवा का शौक पैदा हुआ.

डीएवी स्कूल पालमपुर में पढ़ाई के बाद कॉलेज की शिक्षा उन्होंने डीएवी चंडीगढ़ से हासिल की. विक्रम बत्रा का सेलेक्शन मर्चेंट नेवी में हांगकांग की एक शिपिंग कंपनी में हुआ था, ट्रेनिंग के लिए बुलावा भी आ चुका था लेकिन उन्होंने सेना की वर्दी को चुना. मर्चेंट नेवी की लाखों की तनख्वाह देश के लिए जान न्योछावर करने के जज्बे के सामने बौनी साबित हुई.

वर्ष 1996 में वे इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आईएमए) देहरादून के लिए चयनित हुए. कमीशन हासिल करने के बाद उनकी नियुक्ति 13 जैक राइफल में हुई. जून 1999 में कारगिल युद्ध छिड़ गया. ऑपरेशन विजय के तहत विक्रम बत्रा भी मोर्चे पर गए. उनकी डैल्टा कंपनी को पॉइंट 5140 को कैप्चर करने का आदेश मिला. दुश्मन सेना के ध्वस्त करते हुए विक्रम बत्रा और उनके साथियों ने पॉइंट 5140 की चोटी को कब्जे में कर लिया.

बत्रा ने युद्ध के दौरान कई दुस्साहसिक फैसले लिए. जुलाई, 1999 की 7 तारीख थी. कई दिनों से मोर्चे पर डटे विक्रम बत्रा को उनके ऑफिसर्स ने आराम करने की सलाह दी थी, जिसे वे नजर अंदाज करते रहे. इसी दिन वे पॉइंट 4875 पर युद्ध के दौरान शहादत को चूम गए, लेकिन इससे पहले वे भारतीय सेना के समक्ष आने वाले सारे अवरोध दूर कर चुके थे. युद्ध के दौरान उनका नारा ये दिल मांगे मोर था. उन्होंने इसे सच कर दिखाया. कैप्टन बत्रा के शौर्य के किस्से सदा अमर रहेंगे.

ये भी पढ़ें: वीरभूमि का जांबाज योद्धा, जिसने अपने सैनिकों को बचाने के लिए दी थी खुद की शहादत

Last Updated : Sep 9, 2021, 4:00 PM IST
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