करीमनगर: करीमनगर के परमिता हेरिटेज स्कूल में नौवीं कक्षा की छात्रा शुभाश्री साहू ने एक मल्टी-फंक्शन इको-फ्रेंडली एग्रो मशीन तैयार की है जो कृषि क्षेत्र के लिए लाभकारी होगी. उन्हें हाल ही में दिल्ली में सीबीएसई राष्ट्रीय प्रदर्शनी 2022-2023 में सम्मानित किया गया. यह प्रदर्शनी 7 से 9 फरवरी तक आयोजित की गई थी और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई), नई दिल्ली द्वारा आयोजित की गई थी. उनके प्रोजेक्ट को देश भर के सीबीएसई स्कूलों के बीच पर्यावरणीय चिंता के विषय के तहत सर्वश्रेष्ठ प्रोजेक्ट का पुरस्कार दिया गया.
शुभाश्री की इनोवेटिव एग्रो मशीन को पहली बार उनके गुरु और पिता ललित मोहन साहू के मार्गदर्शन में 8 और 9 दिसंबर, 2022 को चिरेक इंटरनेशनल स्कूल, हैदराबाद में आयोजित सीबीएसई क्षेत्रीय-स्तरीय विज्ञान प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया था. पर्यावरणीय चिंता के विषय में प्रथम स्थान प्राप्त करने के बाद, उन्हें सीबीएसई राष्ट्रीय विज्ञान प्रदर्शनी में भाग लेने के लिए चुना गया था. राष्ट्रीय स्तर की प्रदर्शनी में, देश भर में और विदेशों में 35 स्थानों पर क्षेत्रीय राउंड से कुल 552 विजेता टीमों ने भाग लिया.
सीएसआईआर और डीआरडीओ के 20 जजों के एक विशेषज्ञ पैनल ने विजेता घोषित करने से पहले तीन राउंड के लिए प्रत्येक परियोजना की समीक्षा की. शुभाश्री साहू कहती हैं कि इनोवेटिव प्रोजेक्ट को डिजाइन करना और उसके बारे में सोचना मेरे लिए बहुत बड़ी प्रेरणा थी. उन्होंने कहा कि चार मुख्य कारण हैं कि किसान आधुनिक मशीनों का उपयोग क्यों नहीं कर रहे हैं: वे पोर्टेबल नहीं हैं, सस्ती नहीं हैं, प्रकृति में गैर-कार्यात्मक हैं, और पर्यावरण के अनुकूल नहीं हैं, जिससे वायु और ध्वनि प्रदूषण दोनों होते हैं.
ललित मोहन साहू ने कहा कि अगर कोई किसान इस तरह के उपकरण का खर्च उठा सकता है, तब भी उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में 24x7 बिजली की अनुपलब्धता और मशीन की उच्च रखरखाव लागत जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. शुभाश्री को इस कठिनाई का एहसास तब हुआ जब वह गर्मियों की छुट्टियों में अपने गृहनगर ओडिशा गई. जहां उसने किसानों को होने वाली परेशानी देखी. शुभाश्री के पिता ललित मोहन साहू उसी स्कूल में शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं. उन्होंने परियोजना के डिजाइन में सलाह और सुझाव दिए.
शुभाश्री की मशीन का इस्तेमाल खेती के काम किया जा सकता है. इस मशीन की सहायता से धान से चावल के दानों को अलग किया जा सकता है. यह मशीन भूसे और चावल को भी अलग किया जा सकता है. इसी तरह गेहूं की फसल को काटकर मशीन में डाला जाए तो उसमें गेहूं और घास अलग-अलग हो जायेंगे. यह मशीन अनाज को बोरियों में भी भर सकती है. इसके अलावा, अनाज और गेहूं को अलग करने के बाद आने वाले भूसे को अगर एक ही मशीन में डाल दिया जाए, तो इसे मवेशियों के चरने के लिए कट चेस चॉपर की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है.
सब्जियों और फलों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है ताकि मवेशी उन्हें चर सकें. इस मशीन को किसी भी तरह के ईंधन की जरूरत नहीं है. यह मशीन पूरी तरह से सौर ऊर्जा पर चलती है. शुभाश्री और उनके पिता ललित मोहन साहू ने कहा कि छोटा होने के कारण इसे कहीं भी ले जाया जा सकता है. एक अन्य विशेषता यह है कि इसमें प्रयोग होने वाले सभी उपकरण बाहर आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं. फिलहाल इस मशीन को बनाने में 15 हजार रुपये का खर्च आता है.
उनका कहना है कि अगर बड़ी संख्या में ऐसी मशीनें बनाकर बाजार में उतारी जाएं तो वे महज 5 हजार रुपए में ही तैयार हो सकती हैं. स्कूल प्रबंधन ने घोषणा की है कि वे इस मशीन के पेटेंट अधिकार हासिल करने की कोशिश करेंगे.
पढ़ें: Ghulam Nabi Azad Defamatory suit: गुलाम नबी ने जयराम को भेजा ₹ 2 करोड़ के मानहानि का नोटिस