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सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा में लौह अयस्क के खनन की सीमा तय करने पर पर्यावरण मंत्रालय की राय मांगी

इससे पहले, उच्चतम न्यायालय ने इस पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था कि क्या ओडिशा में सीमित लौह अयस्क को ध्यान में रखते हुए वहां खनन पर कोई सीमा तय की जा सकती है. iron ore mining in Odisha, Supreme Court

iron ore mining in Odisha
ओडिशा में लौह अयस्क के खनन की सीमा
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By PTI

Published : Dec 4, 2023, 1:28 PM IST

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से सतत विकास और अंतरपीढ़ीगत समानता को ध्यान में रखते हुए इस सवाल पर अपनी राय देने के लिए कहा कि क्या ओडिशा में लौह अयस्क के खनन पर सीमा तय की जा सकती है. शीर्ष न्यायालय ने केंद्रीय खनन मंत्रालय के हलफनामे पर विचार किया और कहा कि उसके पास पर्यावरण मंत्रालय की राय नहीं है. यह हलफनामा उच्चतम न्यायालय के उस सवाल पर दाखिल किया गया था कि क्या ओडिशा में लौह अयस्क के सीमित भंडार को ध्यान में रखते हुए खनन की कोई सीमा तय की जा सकती है.

भारत के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी परदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, 'हम पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की राय जानना चाहते हैं. यह मंत्रालय विशेषज्ञ संस्था है और यह हमें पर्यावरण पर लौह अयस्क खनन के असर और अंतरपीढ़ीगत समानता की अवधारणा के बारे में बता सकता है.' याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) 'कॉमन कॉज' की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि जिस गति से अभी खनन हो रहा है उसे ध्यान में रखते हुए 25 वर्षों में लौह अयस्क खत्म होने की आशंका है और इसलिए इसकी सीमा तय किए जाने की आवश्यकता है.

इससे पहले, उच्चतम न्यायालय ने इस पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था कि क्या ओडिशा में सीमित लौह अयस्क को ध्यान में रखते हुए वहां खनन पर कोई सीमा तय की जा सकती है. पीठ ने ओडिशा सरकार को चार सप्ताह में एक नया हलफनामा दायर कर चूककर्ता (डिफॉल्टर) खनन कंपनियों से बकाया वसूलने की जानकारियां देने को भी कहा है जिन्हें राज्य में नियमों का उल्लंघन करने का दोषी ठहराया गया था.

उसने राज्य सरकार से खनन कंपनियों की उन संपत्तियों की जानकारियां भी मुहैया कराने को कहा जिन्हें बकाया वसूलने के लिए जब्त किया गया था. ओडिशा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने इस साल 14 अगस्त को कहा था कि राज्य सरकार ने डिफॉल्टर खनन कंपनियों से जुर्माने के रूप में अच्छी-खासी रकम हासिल की है लेकिन अभी उनसे 2,622 करोड़ रुपये वसूले जाने बाकी है. उच्चतम न्यायालय ने 2014 में गैरकानूनी खनन के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर करने वाले एनजीओ की दलीलों पर गौर किया था. याचिकाकर्ता ने कहा था कि कर्ज न चुकाने वाली कंपनियों या उनके प्रवर्तकों को राज्य में भविष्य में कीमती खनिज संसाधनों से जुड़ी किसी भी नीलामी प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति न दी जाए और उनकी संपत्तियों को जब्त कर बकाया वसूल किया जा सकता है.

वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि ओडिशा में लौह अयस्क के सीमित भंडार को ध्यान में रखते हुए उसके खनन पर सीमा होनी चाहिए. ओडिशा सरकार ने कहा है कि राज्य में लौह अयस्क का अनुमानित 9,220 मिलियन टन भंडार है और समय-समय पर किए जा रहे शोध के आधार पर यह बढ़ सकता है। इसके बाद पीठ ने केंद्र से इस मुद्दे पर विचार करने और आठ सप्ताह के भीतर इस पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा था कि क्या राज्य में लौह अयस्क के खनन पर कोई सीमा लगायी जा सकती है.

पढ़ें: बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र का बढ़ना पंजाब पुलिस की शक्तियों पर अतिक्रमण नहीं : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से सतत विकास और अंतरपीढ़ीगत समानता को ध्यान में रखते हुए इस सवाल पर अपनी राय देने के लिए कहा कि क्या ओडिशा में लौह अयस्क के खनन पर सीमा तय की जा सकती है. शीर्ष न्यायालय ने केंद्रीय खनन मंत्रालय के हलफनामे पर विचार किया और कहा कि उसके पास पर्यावरण मंत्रालय की राय नहीं है. यह हलफनामा उच्चतम न्यायालय के उस सवाल पर दाखिल किया गया था कि क्या ओडिशा में लौह अयस्क के सीमित भंडार को ध्यान में रखते हुए खनन की कोई सीमा तय की जा सकती है.

भारत के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी परदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, 'हम पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की राय जानना चाहते हैं. यह मंत्रालय विशेषज्ञ संस्था है और यह हमें पर्यावरण पर लौह अयस्क खनन के असर और अंतरपीढ़ीगत समानता की अवधारणा के बारे में बता सकता है.' याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) 'कॉमन कॉज' की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि जिस गति से अभी खनन हो रहा है उसे ध्यान में रखते हुए 25 वर्षों में लौह अयस्क खत्म होने की आशंका है और इसलिए इसकी सीमा तय किए जाने की आवश्यकता है.

इससे पहले, उच्चतम न्यायालय ने इस पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था कि क्या ओडिशा में सीमित लौह अयस्क को ध्यान में रखते हुए वहां खनन पर कोई सीमा तय की जा सकती है. पीठ ने ओडिशा सरकार को चार सप्ताह में एक नया हलफनामा दायर कर चूककर्ता (डिफॉल्टर) खनन कंपनियों से बकाया वसूलने की जानकारियां देने को भी कहा है जिन्हें राज्य में नियमों का उल्लंघन करने का दोषी ठहराया गया था.

उसने राज्य सरकार से खनन कंपनियों की उन संपत्तियों की जानकारियां भी मुहैया कराने को कहा जिन्हें बकाया वसूलने के लिए जब्त किया गया था. ओडिशा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने इस साल 14 अगस्त को कहा था कि राज्य सरकार ने डिफॉल्टर खनन कंपनियों से जुर्माने के रूप में अच्छी-खासी रकम हासिल की है लेकिन अभी उनसे 2,622 करोड़ रुपये वसूले जाने बाकी है. उच्चतम न्यायालय ने 2014 में गैरकानूनी खनन के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर करने वाले एनजीओ की दलीलों पर गौर किया था. याचिकाकर्ता ने कहा था कि कर्ज न चुकाने वाली कंपनियों या उनके प्रवर्तकों को राज्य में भविष्य में कीमती खनिज संसाधनों से जुड़ी किसी भी नीलामी प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति न दी जाए और उनकी संपत्तियों को जब्त कर बकाया वसूल किया जा सकता है.

वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि ओडिशा में लौह अयस्क के सीमित भंडार को ध्यान में रखते हुए उसके खनन पर सीमा होनी चाहिए. ओडिशा सरकार ने कहा है कि राज्य में लौह अयस्क का अनुमानित 9,220 मिलियन टन भंडार है और समय-समय पर किए जा रहे शोध के आधार पर यह बढ़ सकता है। इसके बाद पीठ ने केंद्र से इस मुद्दे पर विचार करने और आठ सप्ताह के भीतर इस पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा था कि क्या राज्य में लौह अयस्क के खनन पर कोई सीमा लगायी जा सकती है.

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